दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- उदाहरण सहित भारतीय लोक नृत्य का परिचय दीजिये।
- भारतीय लोक नृत्य आधुनिक प्रभावों से कैसे प्रभावित होते हैं- चर्चा कीजिये।
- लोक नृत्यों की मौलिकता सुनिश्चित करने के लिये उन्हें कैसे सुरक्षित रखा जा सकता है- चर्चा कीजिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये ।
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लोक नृत्य एक पारंपरिक नृत्य शैली है जो एक विशिष्ट सांस्कृतिक या जातीय समूह से उत्पन्न होती है और पीढ़ियों से चली आ रही है। यह अक्सर समुदाय के रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों और रोजमर्रा की ज़िदगी को दर्शाती है, अपनी पहचान व्यक्त करने, घटनाओं का जश्न मनाने एवं सांस्कृतिक विरासत को प्रसारित करने में सहायता करते हैं।
जैसे- भांगड़ा (पंजाब), गरबा (गुजरात), कथकली (केरल), घूमर (राजस्थान), बिहू (असम), लावणी (महाराष्ट्र), डांडिया रास (गुजरात और राजस्थान), छाऊ (पश्चिम बंगाल, झारखंड, ओडिशा), आदि।
भारतीय लोक नृत्यों पर आधुनिक प्रभावों का असर:
- समकालीन संगीत के साथ सम्मिश्रण: आधुनिक लोक-नृत्य प्रदर्शन अक्सर पारंपरिक लय को बदलते हुए समकालीन संगीत शैलियों को शामिल करते हैं।
- "डांडिया रास-EDM" सम्मिश्रण, जहाँ पारंपरिक डांडिया रास के नृत्य को नवरात्रि कार्यक्रमों जैसे संगीत समारोहों में इलेक्ट्रॉनिक नृत्य संगीत (EDM) बीट्स के साथ सिंक्रनाइज़ किया जाता है।
- तकनीकी तत्त्वों का समावेश: प्रकाश, ध्वनि प्रभाव और प्रक्षेपण मानचित्रण के उपयोग ने लोक नृत्यों के दृश्य एवं श्रवण अनुभव को बदल दिया है।
- गरबा नृत्य प्रदर्शन के समसामयिक रूपांतरों में LED लाइटें शामिल हैं, जो मंत्रमुग्ध कर देने वाले दृश्य प्रभाव पैदा करती हैं।
- पोशाक डिज़ाइन पर प्रभाव: आधुनिक फैशन रुझानों ने पारंपरिक वेशभूषा, रंग, कपड़े और सहायक सामग्री के डिज़ाइन को प्रभावित किया है।
- नृत्य के सार को संरक्षित करते हुए, एक आधुनिक स्पर्श जोड़ते हुए, समसामयिक डिज़ाइनों के साथ घूमर वेशभूषा को नया रूप दिया गया।
- सोशल मीडिया के माध्यम से वैश्विक प्रदर्शन: सोशल मीडिया प्लेटफार्मों ने लोक नृत्य प्रेमियों को अपने प्रदर्शन को वैश्विक दर्शकों के साथ साझा करने में सक्षम बनाया है।
- पंजाबी समुदायों के गिद्दा प्रदर्शन के वीडियो ऑनलाइन साझा किये गए, जिन्हें दुनिया भर के लोगों से सराहना मिली।
- फिटनेस तत्त्वों का समावेश: कुछ पारंपरिक नृत्य शैलियों में फिटनेस तत्त्वों को शामिल करने के लिये संशोधन किया गया है, जिससे वे शैलियाँ स्वास्थ्य के प्रति जागरूक व्यक्तियों के लिये आकर्षक बन गई हैं।
- भांगड़ा दिनचर्या में ज़ुम्बा-शैली को शामिल करना, नृत्य में कसरत के पहलू को शामिल करना भी समसामयिक रूपांतरों के उदाहरण हैं।
- कोरियोग्राफिक नवाचार: रचनात्मकता को बढ़ाते हुए समकालीन कोरियोग्राफी तकनीकों को पारंपरिक नृत्य शैलियों में एकीकृत किया गया है।
- कोरियोग्राफर अभिनव प्रदर्शन बनाने के लिये कथकली की अभिव्यंजक कहानी को समकालीन नृत्य के साथ जोड़ते हैं।
- पर्यटन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान: आधुनिक प्रभावों ने लोक नृत्य मंडलियों को पर्यटकों और अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों के लिये अपने प्रदर्शन को अनुकूलित करने के लिये प्रोत्साहित किया है।
- वैश्विक मंच पर भारतीय विरासत को प्रदर्शित करने के लिये G20 शिखर सम्मेलन में लोक नर्तकों ने कथकली, ओडिसी और अन्य पारंपरिक नृत्य प्रस्तुत किये।
सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिये लोक नृत्यों की मौलिकता को बनाए रखना आवश्यक है:
- सरकारी समर्थन और मान्यता: लोक नृत्यों की स्थिति को बेहतर करने के लिये सरकारी निकायों से आधिकारिक मान्यता और समर्थन प्राप्त करें।
- राजस्थान के घूमर नृत्य को राज्य के आधिकारिक नृत्य के रूप में मान्यता मिली, जिससे इसके संरक्षण को बढ़ावा मिला।
- लोक नृत्य प्रतियोगिताएँ: ऐसी प्रतियोगिताओं का आयोजन करें जो नृत्यों की प्रामाणिकता बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित करें, प्रतिभागियों को पारंपरिक नृत्यकला का पालन करने के लिये प्रोत्साहित करें।
- केरल में वार्षिक अखिल भारतीय नृत्य महोत्सव में पारंपरिक लोक नृत्य शामिल होते हैं, जो प्रदर्शन में सटीकता को प्रोत्साहित करते हैं।
- सामुदायिक भागीदारी: लोक नृत्यों को युवा पीढ़ी तक पहुँचाने में स्थानीय समुदाय के लोगों, विशेषकर बुजुर्गों को शामिल करें।
- महाराष्ट्र में वारली जनजाति सांप्रदायिक समारोहों और पारिवारिक शिक्षाओं के माध्यम से अपना वारली नृत्य जारी रखती है।
- लाइव प्रदर्शनों को संगृहीत करना: भविष्य के संदर्भ और शोध के लिये एक संग्रह बनाने के लिये लोक नृत्यों के लाइव प्रदर्शनों को रिकॉर्ड करें।
- भारत के विभिन्न राज्यों में आयोजित राष्ट्रीय लोक नृत्य महोत्सव विविध लोक नृत्य शैलियों को प्रदर्शित करता है और उन्हें दस्तावेज़ीकरण के लिये संगृहीत करता है।
आधुनिक प्रभावों ने भारतीय लोक नृत्यों को संरक्षित और परिवर्तित किया है, जिससे बदलते सांस्कृतिक परिदृश्य में उनकी निरंतर प्रासंगिकता सुनिश्चित हुई है। परंपरा और नवीनता के मिश्रण ने एक गतिशील नृत्य दृश्य में योगदान दिया है जो स्थानीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दर्शकों की एक विस्तृत शृंखला को आकर्षित करता है।