23 Aug 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | सामाजिक न्याय
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- सरोगेसी के बारे में बताइये।
- सरोगेसी अधिनियम, 2021 के प्रमुख प्रावधानों पर चर्चा कीजिये।
- विविध सांस्कृतिक, आर्थिक एवं भौगोलिक संदर्भों में इसकी कुछ चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
- आगे की राह बताइये।
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सरोगेसी एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक महिला (जिसे सरोगेट माँ कहा जाता है) किसी अन्य महिला (जो आमतौर पर गर्भधारण नहीं कर सकती है) या युगल (जिन्हें इच्छित माता-पिता या कमीशनिंग माता-पिता कहा जाता है) के लिये बच्चे को जन्म देने हेतु सहमत होती है।
- भारत में सरोगेसी अधिनियम, 2021 के तहत सरोगेट माताओं के शोषण को रोकने तथा उनके कल्याण एवं अधिकारों को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से कई प्रमुख प्रावधान किये गए हैं।
सरोगेसी अधिनियम, 2021 के मुख्य बिंदु:
- परोपकारी सरोगेसी पर बल देना: सरोगेसी अधिनियम, 2021 परोपकारी सरोगेसी पर केंद्रित है, जो वाणिज्यिक सरोगेसी पर रोक लगाता है जिसमें सरोगेट माताओं का आर्थिक रूप से शोषण हो सकता है।
- व्यावसायिक सरोगेसी पर रोक लगाने से वित्तीय लाभ के लिये सरोगेट माताओं के संभावित शोषण को रोका जा सकता है।
- पात्रता और सूचित सहमति: इस कानून में एक ऐसे जोड़े (पुरुष और महिला) को एक विवाहित भारतीय के रूप में परिभाषित किया गया है जिसमें महिला की आयु 23 से 50 वर्ष तथा पुरुष की आयु 26 से 55 वर्ष के बीच होनी चाहिए।
- हालाँकि यह कानून एकल महिलाओं को सरोगेसी का सहारा लेने की अनुमति देता है, लेकिन उसकी उम्र 35 से 45 वर्ष के बीच होने के साथ वह या तो विधवा या तलाकशुदा होनी चाहिए।
- हालाँकि एकल पुरुष इसका पात्र नहीं हैं।
- इसमें सरोगेट माताओं की सहमति को अनिवार्य बनाने के साथ उन्हें इस प्रक्रिया की स्पष्ट समझ प्रदान करने पर बल दिया गया है।
- चिकित्सा व्यय के लिये बीमा कवरेज: इस अधिनियम में गर्भावस्था के दौरान तथा बाद में सरोगेट माताओं के चिकित्सा व्यय के लिये बीमा कवरेज को अनिवार्य बनाया गया है।
- एक से अधिक सरोगेसी की अनुमति नहीं: इस अधिनियम के तहत गर्भधारण से जुड़े संभावित जोखिमों से सरोगेट माताओं को बचाने के क्रम में उनकी शारीरिक और भावनात्मक भलाई हेतु एक सरोगेसी की अनुमति दी गई है।
- एक से अधिक गर्भधारण का सरोगेट माताओं के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इस प्रावधान का उद्देश्य उनके दीर्घकालिक कल्याण की रक्षा करना है।
- सरोगेट माताओं के लिये ट्रस्ट फंड: उचित खर्चों की प्रतिपूर्ति के अलावा इस अधिनियम में सरोगेट माताओं के लाभ हेतु एक ट्रस्ट फंड स्थापित करने का प्रावधान है।
- यह पहल उनके योगदान को स्वीकार करते हुए, बुनियादी प्रतिपूर्ति से परे एक सुरक्षा जाल प्रदान करती है।
- गर्भावस्था को समाप्त करने का अधिकार: इस अधिनियम के तहत जीवन या स्वास्थ्य को खतरा होने की स्थिति में सरोगेट माताओं को गर्भपात कराने का अधिकार प्रदान किया गया है।
- गर्भावस्था से ऐसी स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं जो सरोगेट माँ के स्वास्थ्य के लिये गंभीर जोखिम पैदा कर सकती हैं।
- राष्ट्रीय और राज्य सरोगेसी बोर्ड: इस प्रक्रिया की निगरानी, पारदर्शिता, जवाबदेही एवं इन प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित करने हेतु इस अधिनियम में इन बोर्डों की स्थापना का प्रावधान है। ये बोर्ड सरोगेट माताओं के हितों की सुरक्षा में योगदान देते हैं।
सामाजिक मानदंडों, आर्थिक स्थितियों एवं क्षेत्रीय असमानताओं में भिन्नता के कारण इस संबंध में कई चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं:
- सांस्कृतिक विविधता: पारिवारिक संरचना, प्रजनन एवं महिलाओं की भूमिकाओं के संबंध में विभिन्न सांस्कृतिक मानदंड समुदायों के अंदर सरोगेसी की स्वीकृति को प्रभावित कर सकते हैं।
- पारंपरिक समुदाय सरोगेसी को अपने सांस्कृतिक मूल्यों के विरुद्ध मान सकते हैं, जिससे इसका कार्यान्वयन कठिन हो जाता है।
- आर्थिक असमानताएँ: पूरे भारत में आर्थिक परिस्थितियाँ काफी भिन्न हैं। कम आय वाले क्षेत्रों में महिलाएँ पैसे कमाने के लिये सरोगेसी का विकल्प चुन सकती हैं।
- वित्तीय कठिनाई, संभावित स्वास्थ्य जोखिमों के बावजूद महिलाओं को सरोगेसी में शामिल होने के लिये प्रेरित कर सकती है।
- जानकारी तक पहुँच: कानूनी प्रावधानों एवं अधिकारों के बारे में जागरूकता की कमी के कारण सरोगेट माताएँ अपने अधिकारों को पूरी तरह से नहीं समझ पाती हैं।
- जानकारी तक सीमित पहुँच वाले दूरदराज क्षेत्रों में सरोगेट माताओं को अपने अधिकारों के बारे में पूरी जानकारी नहीं होती है।
- स्वास्थ्य देखभाल संबंधी असमानताएँ: स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढाँचे में भिन्नताएँ गर्भावस्था के दौरान और बाद में सरोगेट माताओं को मिलने वाली चिकित्सा देखभाल की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती हैं।
- ग्रामीण क्षेत्रों में सरोगेट माताओं को उचित चिकित्सा सुविधाओं तक पहुँचने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जिससे उनके स्वास्थ्य और कल्याण पर असर पड़ सकता है।
- क्षेत्रीय प्रथाएँ और मान्यताएँ: स्थानीय रीति-रिवाज और प्रथाएँ सरोगेसी के प्रति दृष्टिकोण को प्रभावित कर सकती हैं, जिससे इस अधिनियम की स्वीकृति तथा इसका प्रवर्तन प्रभावित हो सकता है।
- बच्चे के जन्म के संबंध में जटिल पारंपरिक मान्यताओं वाले क्षेत्र सरोगेसी के प्रति प्रतिरोधी हो सकते हैं, जिससे इनके प्रवर्तन में बाधा आ सकती है।
- भाषा और साक्षरता बाधाएँ: भाषा संबंधी बाधाएँ और कम साक्षरता दर, कानूनी प्रावधानों तथा अधिकार को समझने में सरोगेट माताओं के लिये बाधक बन सकती हैं।
- इससे कानूनी दस्तावेज़ों को समझने में असमर्थ सरोगेट माताओं को नुकसान हो सकता है।
आगे की राह:
- कर्नाटक उच्च न्यायालय ने सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के प्रावधानों के तहत सरोगेट बच्चा पैदा करने के क्रम में कानूनी बाधाओं का सामना कर रहे एक जोड़े की मदद के लिये "ट्रिपल टेस्ट" विकसित किया है जैसे-
- पति का आनुवंशिक परीक्षण करना ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि पैदा होने वाले बच्चे में कोई विकार न हो।
- बच्चे को संभालने की क्षमता का पता लगाने के लिये दंपत्ति का शारीरिक परीक्षण करना।
- दम्पत्तियों की आर्थिक स्थिति का परीक्षण करना ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि बच्चे का भविष्य सुरक्षित है।
- प्रसवोत्तर अवसाद का समाधान करना: सरकार का दायित्व प्रसवोत्तर अवसाद को पहचानना तथा उसका समाधान करना है। इसके अलावा इस प्रक्रिया में शामिल दोनों माताओं के लिये मातृत्व लाभ सुलभ होने चाहिए।
- सरोगेसी विकल्पों का क्रमिक विस्तार: सावधानीपूर्वक सुरक्षा उपायों को ध्यान में रखते हुए समय के साथ सरोगेसी के दायरे को उत्तरोत्तर विस्तारित करने की संभावना है। इसका उद्देश्य उन व्यक्तियों को लाभ पहुँचाना है जो माता-पिता बनने की खुशी से वंचित हैं।
सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के तहत सरोगेट माताओं के कल्याण की सुरक्षा हेतु संभावित सुधार प्रस्तावित किये गए हैं लेकिन भारत में सरोगेट माताओं के लिये वांछित परिणाम सुनिश्चित करना इसके मज़बूत कार्यान्वयन, उचित प्रवर्तन के साथ नियमित निगरानी पर निर्भर करेगा।