दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- स्वदेशी आंदोलन के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- भारतीय राष्ट्रवाद एवं प्रतिरोध तथा जन आंदोलन के नए रूपों पर इसके प्रभावों की चर्चा कीजिये। साथ ही, चर्चा कीजिये कि इस आंदोलन ने भारत में साहित्य, कला एवं संस्कृति के विकास को किस प्रकार प्रभावित किया?
- चर्चा किये गए मुख्य बिंदुओं को संक्षेप में बताते हुए निष्कर्ष लिखिये।
|
स्वदेशी आंदोलन, जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्त्वपूर्ण भाग रहा, ने भारतीय राष्ट्रवाद के विकास के साथ प्रतिरोध तथा जन आंदोलन के नए रूपों के उद्भव पर गहरा प्रभाव डाला। इसने निष्क्रिय प्रतिरोध से सक्रिय भागीदारी की ओर महत्त्वपूर्ण परिवर्तन को प्रेरित किया, जिससे भारतीयों में सामूहिक चेतना की भावना जागृत हुई एवं साहित्य, कला तथा संस्कृति सहित समाज के विभिन्न आयामों के विकास में योगदान मिला।
स्वदेशी आंदोलन, जो 1905 में बंगाल के विभाजन के प्रतिरोध में उदित हुआ, का उद्देश्य स्वदेशी उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा देना तथा ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार करना था। इस आंदोलन ने कई मायनों में भारतीय राष्ट्रवाद को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जैसे:
- राष्ट्रीय पहचान को मज़बूत करना: इस आंदोलन ने क्षेत्रीय और धार्मिक मतभेदों से ऊपर उठकर राष्ट्रीय गौरव एवं पहचान की भावना विकसित की। भारत में निर्मित वस्तुओं का उपयोग करने के आह्वान ने आत्मनिर्भरता के लिये एक साझा प्रतिबद्धता को बढ़ावा दिया, जिससे समाज के विभिन्न क्षेत्रों को एक सामान्य उद्देश्य के तहत एकजुट किया गया।
- बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय (जिन्होंने "वंदे मातरम" (भारत का राष्ट्रीय गीत), आनंदमठ और देवी चौधरानी जैसे ऐतिहासिक उपन्यास लिखे) ने स्वतंत्रता सेनानियों की वीरता एवं बलिदान को चित्रित किया।
- निष्क्रिय प्रतिरोध एवं जन आंदोलन: स्वदेशी आंदोलन ने जन आंदोलन के साथ जमीनी स्तर पर सक्रियता की शक्ति का भी प्रदर्शन किया। ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार, सार्वजनिक रैलियों एवं विरोध प्रदर्शनों ने आम नागरिकों की दमनकारी नीतियों को सामूहिक रूप से चुनौती देने की क्षमता का प्रदर्शन किया। निष्क्रिय प्रतिरोध पर आंदोलन के ज़ोर ने राजनीतिक एवं सामाजिक परिवर्तन प्राप्त करने में एकता तथा शांतिपूर्ण विरोध की ताकत को प्रदर्शित किया।
- सरोजिनी नायडू (जिन्होंने "द गिफ्ट ऑफ इंडिया" और "द इंडियन वीवर्स" जैसी कविताएँ लिखीं) ने भारत की विविधता एवं समृद्धि पर गर्व व्यक्त किया। उन्होंने एक वक्ता और आयोजक के रूप में स्वदेशी आंदोलन में भी सक्रिय रूप से भाग लिया।
- नए नेतृत्व का विकसित होना: इस आंदोलन ने बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चंद्र पाल और लाला लाजपत राय जैसे नेताओं के लिये एक मंच प्रदान किया, जिन्होंने अपनी सक्रिय भागीदारी के माध्यम से प्रसिद्धि हासिल की। इन नेताओं ने भारतीय राष्ट्रवाद को आकार देने तथा भावी पीढ़ियों को प्रेरित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- बाल गंगाधर तिलक (जिन्होंने केसरी और मराठा समाचार पत्रों का संपादन किया) ने राष्ट्रवादी विचारों का प्रचार करने के साथ ब्रिटिश नीतियों की आलोचना की थी। उन्होंने गणपति उत्सव और शिवाजी उत्सव की भी शुरूआत की, जिसने महाराष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत को पुनर्जीवित किया तथा लोगों में राष्ट्रवादी उत्साह जागृत किया।
- राष्ट्रीय संस्थानों का गठन: स्वदेशी आंदोलन के कारण अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कॉन्ग्रेस और अखिल भारतीय छात्र संघ जैसे विभिन्न राष्ट्रीय संस्थानों की स्थापना हुई। इन संस्थानों ने न केवल ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ संघर्ष में भूमिका निभाई बल्कि भविष्य के राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों की नींव भी रखी।
- स्वदेशी सिद्धांतों को अपनाना: स्वदेशी वस्तुओं को अपनाना इस आंदोलन का केंद्रीय सिद्धांत था। इसने ब्रिटिश वस्तुओं पर निर्भरता कम करने तथा आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहित करने के लिये स्वदेशी उत्पादों एवं संसाधनों के उपयोग को बढ़ावा दिया। इस सिद्धांत ने पारंपरिक भारतीय उद्योगों, शिल्प कौशल एवं कृषि को बढ़ावा दिया तथा स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं और सांस्कृतिक प्रथाओं को पुनर्जीवित किया। स्वदेशी सिद्धांतों को अपनाने से राष्ट्रीय गौरव एवं आत्मनिर्भरता की भावना में योगदान मिला।
स्वदेशी आंदोलन का साहित्य, कला एवं संस्कृति पर प्रभाव:
- साहित्य और पत्रकारिता: इस आंदोलन ने राष्ट्रवादी साहित्य एवं पत्रकारिता को बढ़ावा दिया। "वंदे मातरम" और "अमृत बाज़ार पत्रिका" जैसे समाचार पत्रों ने राष्ट्रवादी आदर्शों का प्रचार किया तथा इस उद्देश्य के लिये जनता का समर्थन जुटाया। रबींद्रनाथ टैगोर एवं बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय जैसे प्रसिद्ध लेखकों ने अपने लेखन के माध्यम से इसमें योगदान दिया।
- कलात्मक अभिव्यक्ति: स्वदेशी आंदोलन ने कलाकारों को अपनी कला में राष्ट्रवादी विषयों को चित्रित करने के लिये प्रेरित किया। अवनींद्रनाथ टैगोर जैसे चित्रकारों ने पारंपरिक भारतीय कला रूपों से प्रेरणा लेते हुए "स्वदेशी कला" रूपों को अपनाया। राष्ट्रवाद एवं कलात्मक अभिव्यक्ति के इस संलयन से एक विशिष्ट दृश्य भाषा का विकास हुआ ।
- सांस्कृतिक पुनरुद्धार: इस आंदोलन ने स्वदेशी सांस्कृतिक प्रथाओं को पुनर्जीवित करने में भूमिका निभाई। पारंपरिक त्योहारों, शिल्प एवं प्रदर्शन कलाओं को विदेशी प्रभुत्व के खिलाफ प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में प्रमुखता मिली।
- शैक्षिक सुधार: स्वदेशी कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रवादी चेतना के निर्माण में शिक्षा के महत्त्व को पहचाना। इस आंदोलन के कारण राष्ट्रवादी शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना हुई, जिससे भारतीय भाषाओं, इतिहास एवं संस्कृति के अध्ययन को बढ़ावा मिला।
स्वदेशी आंदोलन ने एकता, जन आंदोलन एवं नए नेतृत्व के उद्भव को बढ़ावा देकर भारतीय राष्ट्रवाद के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसका प्रभाव साहित्य, कला एवं संस्कृति पर पड़ा, जिससे इन क्षेत्रों में राष्ट्रीय गौरव और पहचान की भावना फिर से जागृत हुई। इस आंदोलन के दौरान "भारत माता" जैसे प्रतिष्ठित प्रतीकों का उपयोग आंदोलन को गति देने के लिये किया गया था।