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  • 21 Aug 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    दिवस-31. वैज्ञानिक प्रगति द्वारा पारंपरिक मान्यताओं को चुनौती मिलने वाले आधुनिक समाज में धार्मिक और तार्किक दृष्टिकोण का अस्तित्व एक साथ कैसे बना रह सकता है? विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • धर्म एवं तार्किकता को परिभाषित कीजिये।
    • चर्चा कीजिये कि आधुनिक समाज में धार्मिक और तार्किक दृष्टिकोण का अस्तित्व एक साथ कैसे बना रह सकता है?
    • ऐसे कुछ मतभेदों पर चर्चा कीजिये जहाँ धर्म और तर्क एक दूसरे के विपरीत होते हैं।
    • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

    धर्म" का आशय विश्वासों, प्रथाओं और मूल्यों की एक प्रणाली से है जिसमें अक्सर आध्यात्मिक और नैतिक पहलुओं को शामिल किया जाता है। "तर्कसंगतता" का अर्थ तर्क और साक्ष्य के आधार पर आलोचनात्मक, तार्किक एवं निष्पक्ष रूप से सोचने की क्षमता से है।

    उदाहरण के लिये ईश्वर में यह जाने बिना विश्वास करना कि उनके पास शक्ति क्यों है, धर्म का संकेत है। लेकिन क्यों के बारे में सोचना और अपने निर्णय का उपयोग करना तर्कसंगत दृष्टिकोण है।

    आधुनिक समाज में धार्मिक और तार्किक दृष्टिकोण का अस्तित्व एक साथ बना रह सकता है:

    • पारंपरिक ज्ञान और वैज्ञानिक प्रगति: वेदों जैसे प्राचीन ग्रंथों में खगोल विज्ञान, गणित एवं चिकित्सा के बारे में जानकारी शामिल है, जो आध्यात्मिक और तर्कसंगत ज्ञान के सह-अस्तित्व का संकेत देते हैं।
    • आध्यात्मिक दर्शन एवं आलोचनात्मक सोच: भारत की समृद्ध दार्शनिक परंपराएँ जैसे अद्वैत वेदांत और बौद्ध दर्शन, तर्क तथा चिंतन पर ज़ोर देती हैं।
    • योग अभ्यास: ये अभ्यास तर्कसंगत तकनीकों के माध्यम से मानसिक कल्याण एवं आत्म-जागरूकता को बढ़ावा देते हैं, जबकि इनमें अभी भी आध्यात्मिक मूल को अपनाया जाता है।
    • नैतिक नेतृत्व: महात्मा गांधी का अहिंसक आंदोलन, जो हिंदू सिद्धांतों में गहराई से निहित था, सामाजिक परिवर्तन के लिये तर्कसंगत रणनीतियों पर भी आधारित था।
    • पंथनिरपेक्षता और बहुलवाद: भारत का संविधान पंथनिरपेक्षता पर बल देता है, जो एक ही राष्ट्र के अंदर विविध धार्मिक मान्यताओं के सह-अस्तित्व पर आधारित है। यह धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण विभिन्न धर्मों के बीच तर्कसंगत बहस और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को बढ़ावा देता है।
    • शैक्षिक प्रयास: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IITs) और भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIMs) जैसे संस्थान तर्कसंगत शिक्षा तथा सांस्कृतिक मूल्यों के सह-अस्तित्व को प्रदर्शित करते हुए, भारत की आध्यात्मिक विरासत एवं कठोर शैक्षणिक कार्यक्रमों के मिश्रण के परिचायक हैं।

    धार्मिक और तार्किक दृष्टिकोण के सह-अस्तित्व में कठिनाइयाँ हो सकती हैं, जैसे:

    • अंधविश्वास: प्रगति के बावजूद पशु बलि जैसी कुछ प्रथाएँ (जिनका कोई तर्कसंगत आधार नहीं है) कुछ धार्मिक अनुष्ठानों में जारी हैं, जो अंधविश्वासों को बनाए रखने के साथ तार्किक दृष्टिकोण को कमज़ोर करती हैं।
    • लैंगिक असमानता: कुछ धार्मिक परंपराओं में लिंग-आधारित भेदभाव बना हुआ है, जो समानता के तर्कसंगत सिद्धांतों में बाधा डालता है।
    • सामाजिक रूढ़िवादिता: जाति-आधारित भेदभाव और LGBTQIA+ के अधिकारों जैसे सामाजिक सुधारों के प्रतिरोध के उदाहरणों के रूप में धार्मिक मान्यताओं को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है।
    • विज्ञान और धार्मिक दृष्टिकोण के बीच संघर्ष: जहाँ धार्मिक मान्यताओं और वैज्ञानिक खोजों के बीच संघर्ष की स्थिति देखने को मिलती हैं (जैसे उद्विकास या जलवायु परिवर्तन से संबंधित बहस) वहाँ धार्मिक शिक्षाओं एवं तर्कसंगत वैज्ञानिक समझ के बीच संभावित संघर्ष उत्पन्न होता है।
    • परंपरागत प्रथाएँ: परंपरागत प्रथाओं की प्रासंगिकता या औचित्य पर सवाल उठाए बिना उनका कठोर पालन करना प्रगति में बाधक बन सकता है तथा इससे आलोचनात्मक सोच हतोत्साहित हो सकती है, जिससे तर्कसंगतता के सिद्धांतों का खंडन होता है।

    "धर्म के बिना विज्ञान लंगड़ा है, विज्ञान के बिना धर्म अंधा है"- आइंस्टीन। इसमें यह विचार समाहित है कि जीवन, नैतिकता और मानव अनुभव की व्यापक समझ के लिये धर्म तथा तर्कसंगतता दोनों को एकीकृत करने वाला एक संतुलित दृष्टिकोण आवश्यक है। यह व्यक्तियों को तर्क एवं आध्यात्मिकता के सामंजस्यपूर्ण एकीकरण को विकसित करने हेतु (यह मानते हुए कि दोनों पहलू अधिक समृद्ध और सार्थक जीवन में योगदान करते हैं) प्रोत्साहित करता है।

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