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  • 21 Aug 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस-31. विधानमंडलों द्वारा संवैधानिक ढाँचे को कमज़ोर करने तथा दल-बदल विरोधी उपायों को दरकिनार करने हेतु नए तरीकों को अपनाये जाने के क्रम में दल-बदल विरोधी कानून का पूरी तरह से पुनर्मूल्यांकन करने के साथ इस संदर्भ में संभावित उपायों को प्रस्तावित करने की तत्काल आवश्यकता है। चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • दल-बदल विरोधी कानून के कुछ हालिया दुरुपयोगों का परिचय दीजिये।
    • उदाहरण के साथ चर्चा कीजिये कि विधानमंडलों द्वारा दल-बदल विरोधी कानून को दरकिनार करने हेतु कौन से नए तरीके अपनाए जाते हैं?
    • इसके समाधान हेतु संभावित उपायों पर चर्चा कीजिये।
    • तद्नुसार निष्कर्ष दीजिये।

    दल-बदल विरोधी कानून राजनीतिक दल-बदल को रोकने से संबंधित है। 52वें संविधान संशोधन, 1985 के द्वारा दसवीं अनुसूची के माध्यम से संविधान में इसे शामिल किया गया था।

    महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश की हालिया घटनाओं ने इस कानून के संभावित दुरुपयोग के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी हैं।

    दल-बदल विरोधी कानून का हालिया दुरुपयोग जो संवैधानिक ढांचे को कमज़ोर करता है:

    • "तकनीकी इस्तीफे" का सहारा: विधायक दल बदलने और सत्तारूढ़ दल या गठबंधन में शामिल होने के लिये अपनी सीटों से इस्तीफा दे सकते हैं।
      • वर्ष 2019 में कर्नाटक में कई कांग्रेस विधायकों ने इस्तीफा दे दिया, जिससे कांग्रेस-JD(S) गठबंधन सरकार गिर गई। इससे अंततः भाजपा के लिये सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्त हो गया।
    • "विधायी दल" का गठन: विधायक एक ही राजनीतिक दल के तहत एक नया विधायी दल बना सकते हैं, जिससे उन्हें स्वतंत्र रूप से कार्य करने एवं संभावित रूप से पार्टी की आधिकारिक लाइन के खिलाफ मतदान करने की अनुमति मिलती है।
      • वर्ष 2020 में सचिन पायलट और अन्य विधायकों ने राजस्थान में "कांग्रेस विधायक दल" का गठन किया, जिससे सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के लिये राजनीतिक संकट पैदा हो गया।
    • प्रॉक्सी वोटिंग: कुछ विधायक अनुपस्थित सहयोगियों की ओर से वोट डाल सकते हैं, जिससे वे पार्टी की एकता को बनाए रखते हुए परिणामों में हेरफेर करने में सक्षम हो सकते हैं।
      • वर्ष 2019 में गोवा विधानसभा फ्लोर टेस्ट के दौरान प्रॉक्सी वोटिंग के आरोप लगाए गए थे, जहाँ भाजपा ने विपक्ष से कम सीटें होने के बावजूद सरकार बनाई थी।
    • व्हिप का उपयोग और अयोग्यता: विधायिकाएँ पार्टी लाइनों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये व्हिप (पार्टी निर्देश) जारी करने में हेरफेर कर सकती हैं, जिसका पालन न करने पर अयोग्यता हो सकती है।
      • वर्ष 2019 में भाजपा के साथ गठबंधन करने के JD(U) के फैसले का विरोध करने के बाद शरद यादव को पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण राज्यसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया था।
    • अस्थायी निलंबन: विधायकों को पार्टी से निलंबित किया जा सकता है, जिससे उन्हें तकनीकी रूप से पार्टी के दिशानिर्देशों का उल्लंघन किये बिना विशिष्ट मुद्दों पर स्वतंत्र रूप से मतदान करने की अनुमति मिल सके।
      • वर्ष 2019 में AIADMK के सांसदों के एक समूह को पार्टी से निलंबित कर दिया गया था, लेकिन अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान वे संसद के स्वतंत्र सदस्य बने रहे।
    • चुनाव के बाद दल-बदल: निर्वाचित होने के बाद विधायक दल-बदल कर सकते हैं। ये दल-बदल विरोधी कानूनों से बचने के लिये चुनाव के समय और विधायक के रूप में शपथ लेने के बीच के अंतर का फायदा उठा सकते हैं।
      • वर्ष 2016 में नवजोत सिंह सिद्धू ने पंजाब विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी से इस्तीफा दे दिया और बाद में कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए।

    दल-बदल विरोधी कानून का पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता:

    • राजनीतिक अस्थिरता को रोकना: राजनीतिक सत्ता में बार-बार बदलाव से सरकारों में अस्थिरता हो सकती है, जिससे शासन और नीति कार्यान्वयन प्रभावित हो सकता है।
    • लोकतांत्रिक जनादेश को संरक्षित करना: निर्वाचित प्रतिनिधियों का दल बदलना उन मतदाताओं के विश्वास को धोखा देने के रूप में देखा जा सकता है जिन्होंने उन्हें पार्टी संबद्धता के आधार पर चुना था।
    • पार्टी की स्वायत्तता की रक्षा करना: दल-बदल विरोधी कानून कभी-कभी सांसदों की अंतरात्मा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करता है, जिससे पार्टियों का आंतरिक लोकतंत्र सीमित हो जाता है।
    • क्रॉसवोटिंग को हल करना: चुनावों में क्रॉसवोटिंग एक स्वतंत्र और निष्पक्ष लोकतांत्रिक प्रक्रिया की अवधारणा को कमज़ोर करती है।
    • विधायी दक्षता सुनिश्चित करना: पार्टी बदलने के कारण बार-बार होने वाले व्यवधान, विधायी कार्य में बाधा डाल सकते हैं जिससे निर्णय लेने में देरी हो सकती है।
    • पारदर्शिता बनाए रखना: बार-बार दल-बदल से राजनीतिक प्रक्रियाओं की पारदर्शिता कमज़ोर हो सकती है।

    आवश्यक सुधार:

    • दल-बदल विरोधी कानून पर हलीम समिति (1998): इसने इस कानून में निम्नलिखित वाक्यांशों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने की सिफारिश की:
      • राजनीतिक दल तथा स्वेच्छा से किसी राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ना।
    • संविधान समीक्षा आयोग (2002): दल बदलने वालों के शेष कार्यकाल की अवधि तक सार्वजनिक पद धारण करने पर प्रतिबंध लगाना।
      • दल बदलने वालों को मंत्रिमंडल से अयोग्य घोषित करना (धारा 10)।
    • मतदान में पारदर्शिता (धारा 3 और 4): पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के क्रम में पार्टी विभाजन एवं विलय के मामलों में रिकॉर्ड मतदान की आवश्यकता है।
    • अध्यक्ष के निर्णय को समयबद्ध करना: अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेने हेतु अध्यक्ष के लिये एक समय सीमा (उदाहरण के लिये, 3 महीने) का निर्धारण करना।
      • विश्वनाथ श्रीखंडे बनाम महाराष्ट्र विधानसभा (2021) में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि अध्यक्ष का निर्णय निष्पक्षता एवं पारदर्शिता सुनिश्चित करते हुए वस्तुनिष्ठ तथा तर्कसंगत होना चाहिये।
    • अपवादों के दायरे को कम करना: अयोग्यता के मौजूदा अपवादों (जैसे राष्ट्रपति चुनावों में पार्टी के निर्देशों के विरुद्ध मतदान) का फायदा उठाया जा सकता है।
      • यह सुनिश्चित करने के लिये अपवादों के दायरे को सीमित करना आवश्यक है कि वह राजनीतिक हित के बजाय विवेक से संबंधित हों।
    • पार्टी विभाजन और विलय की परिभाषा: पार्टी विभाजन और विलय को परिभाषित करने में अस्पष्टता के कारण अलग-अलग व्याख्याएँ हो सकती हैं।
      • पार्टी विभाजन और विलय के निर्धारण के लिये स्पष्ट एवं वस्तुनिष्ठ मानदंड तैयार करना आवश्यक है, जिससे हेरफेर की गुंजाइश कम हो सके।
    • पार्टी नीतियों के आधार पर दल-बदल पर अधिक स्पष्टता [धारा 2(1) (b)] : व्यक्तिनिष्ठता को कम करते हुए, पार्टी की नीतियों के आधार पर दल-बदल की अयोग्यता और मानदंड को परिभाषित करना।
    • दल-बदल विरोधी मामलों के लिये स्वतंत्र अधिकरण (धारा 8 और 10): दल-बदल विरोधी मामलों का फैसला करने के लिये कानूनी विशेषज्ञों और सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को शामिल करते हुए एक स्वतंत्र अधिकरण की स्थापना करना।

    "दल-बदल विरोधी कानून, लोकतांत्रिक संस्थानों की पवित्रता को बनाए रखने के लिये एक महत्त्वपूर्ण तंत्र के रूप में कार्य करता है। हालांकि इसकी प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिये एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है। इसके दुरुपयोग को रोकने के लिये इसके सतर्क प्रवर्तन एवं विवेकपूर्ण व्याख्या के साथ समय-समय पर इसकी समीक्षा करना शामिल है।

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