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  • 19 Aug 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस-30. न्यायिक सक्रियता और न्यायिक अतिरेक की अवधारणाओं की चर्चा करते हुए इनके बीच अंतर बताइये। सरकार की शाखाओं के बीच शक्ति संतुलन बनाए रखने एवं विधि का शासन सुनिश्चित करने में इनके महत्त्व पर प्रकाश डालिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • न्यायिक सक्रियता और न्यायिक अतिरेक को परिभाषित कीजिये।
    • इन दोनों शब्दों में अंतर बताइये। इसके अलावा न्यायिक सक्रियता तथा न्यायिक अतिरेक के प्रासंगिक उदाहरण देते हुए इनका महत्त्व भी बताइये।
    • संतुलित दृष्टिकोण के साथ निष्कर्ष लिखिये।

    न्यायिक सक्रियता व्यक्तिगत अधिकारों, सामाजिक न्याय या सार्वजनिक हित की रक्षा या विस्तार के लिये अपनी न्यायिक शक्ति का उपयोग करने की न्यायाधीशों की प्रवृत्ति को संदर्भित करती है, भले ही इसका मतलब कानून के अक्षर या संविधान के मूल इरादे से परे जाना हो। दूसरी ओर न्यायिक अतिरेक उस स्थिति को संदर्भित करता है जब न्यायाधीश अपने संवैधानिक अधिकार से आगे निकल जाते हैं और विधायी या कार्यकारी शाखाओं के कार्य में हस्तक्षेप करते हैं या नीति निर्धारण के क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं।

    न्यायिक सक्रियता को आमतौर पर एक सकारात्मक और प्रगतिशील घटना के रूप में देखा जाता है, क्योंकि यह न्यायपालिका को सरकार के अन्य अंगों पर नियंत्रण एवं संतुलन के रूप में कार्य करने तथा कानून के शासन व मानवाधिकारों को बनाए रखने में सक्षम बनाता है। हालाँकि न्यायिक अतिरेक को एक नकारात्मक और प्रतिगामी घटना माना जाता है क्योंकि इससे शक्तियों के पृथक्करण तथा लोकतांत्रिक जवाबदेही का सिद्धांत कमज़ोर होने के साथ कानूनी अनिश्चितता एवं अस्थिरता पैदा होती है।

    भारत में न्यायिक सक्रियता के कुछ उदाहरण:

    • केशवानंद भारती मामले (1973) में मूल ढाँचा सिद्धांत' की उत्पत्ति हुई, जिसके द्वारा सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान की मूल विशेषताओं का उल्लंघन करने वाले किसी भी संविधान संशोधन की समीक्षा करने की अपनी शक्ति को महत्त्व दिया।
    • किसी भी नागरिक या समूह को किसी भी व्यक्ति या व्यक्तियों के वर्ग के संवैधानिक या कानूनी अधिकारों को लागू करने के लिये न्यायालयों तक पहुँचने में सक्षम बनाने के लिये एक तंत्र के रूप में जनहित याचिका (PIL) की शुरूआत की गई।
    • विभिन्न ऐतिहासिक निर्णयों के माध्यम से शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण, आजीविका आदि जैसे विभिन्न सामाजिक-आर्थिक अधिकारों को शामिल करने के लिये अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के दायरे का विस्तार किया गया।
    • न्यायिक स्वतंत्रता और अखंडता सुनिश्चित करने के एक तरीके के रूप में, उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये कॉलेजियम प्रणाली की शुरुआत की गई।

    भारत में न्यायिक अतिरेक के कुछ उदाहरण:

    • राष्ट्रगान मामले (2016) में देशभक्ति को थोपना, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने सभी सिनेमाघरों के लिये हर फिल्म की स्क्रीनिंग से पहले राष्ट्रगान बजाना तथा सभी उपस्थित लोगों के लिये खड़े होकर सम्मान दिखाना अनिवार्य कर दिया।
      • हालाँकि बाद के एक फैसले में इस आदेश को अप्रभावी कर दिया गया।
    • दिवाली (2017) के दौरान पटाखों पर प्रतिबंध लगाना, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने पर्यावरण और स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए दिल्ली-NCR क्षेत्र में पटाखों की बिक्री एवं उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया।
    • पुलिस सुधारों पर आदेश (2006), जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने बिना किसी विधायी समर्थन के पुलिस प्रशासन के विभिन्न पहलुओं जैसे कार्यकाल की सुरक्षा, चयन प्रक्रिया, जवाबदेही तंत्र आदि पर केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश जारी किये।

    शक्ति संतुलन बनाए रखने में न्यायिक सक्रियता और न्यायिक अतिरेक का महत्त्व:

    • न्यायिक सक्रियता महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह सरकार के अन्य अंगों की कमियों को दूर करने या विफलताओं को हल करने में मदद करती है, खासकर जब वे अपने संवैधानिक कर्तव्यों को निभाने में असमर्थ या अनिच्छुक होते हैं। यह संविधान में निहित मौलिक अधिकारों और मूल्यों की रक्षा तथा प्रचार करने एवं समाज की बदलती जरूरतों तथा आकांक्षाओं को पूरा करने में भी सहायक है।
    • न्यायिक अतिरेक सरकार की शाखाओं के बीच शक्ति संतुलन के लिये खतरा पैदा करता है और इससे ऐसी स्थिति पैदा हो सकती है जहाँ सरकार का एक अंग दूसरों पर हावी हो जाता है या उन पर शासन करता है। यह न्यायपालिका की वैधता एवं विश्वसनीयता को भी नष्ट कर देता है, क्योंकि इसे मनमाने ढंग से या राजनीतिक रूप से कार्य करने के रूप में देखा जा सकता है।
      • इससे विभिन्न कानूनों और नीतियों के बीच भ्रम एवं संघर्ष भी पैदा हो सकता है तथा उनके प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न हो सकती है।

    इसलिये यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि जहाँ न्यायिक सक्रियता लोकतंत्र तथा न्याय सुनिश्चित करने के लिये वांछनीय और आवश्यक है, वहीं न्यायिक अतिरेक लोकतंत्र एवं न्याय व्यवस्था को कमज़ोर करता है। न्यायपालिका को अपनी सीमाओं के साथ-साथ सरकार के अन्य अंगों का सम्मान करते हुए सावधानी एवं संयम के साथ अपनी शक्ति का प्रयोग करना चाहिये।

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