दिवस-30. बौद्ध धर्म और जैन धर्म के बीच इनकी उत्पत्ति, शिक्षाओं, प्रथाओं एवं संप्रदायों के संदर्भ में समानताओं तथा अंतरों पर चर्चा कीजिये। इन दोनों धर्मों ने प्राचीन भारत के सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित किया? (250 शब्द)
19 Aug 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | संस्कृति
हल करने का दृष्टिकोण:
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बौद्ध धर्म और जैन धर्म दो प्राचीन धर्म हैं जिनका छठी शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास भारत में उदय हुआ था। इन दोनों को श्रमणिक परंपराओं के रूप में माना जाता है, जिसका अर्थ है कि उन्होंने वेदों और ब्राह्मणवादी अनुष्ठानों के अधिकार को खारिज कर दिया तथा त्याग, तपस्या एवं नैतिक आचरण के मार्ग की वकालत की। हालाँकि, बौद्ध धर्म और जैन धर्म के बीच इनकी उत्पत्ति, शिक्षाओं, प्रथाओं एवं संप्रदायों के संदर्भ में प्रमुख अंतर भी हैं।
उत्पत्ति:
बौद्ध धर्म | जैन धर्म |
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शिक्षाएँ:
बौद्ध धर्म | जैन धर्म |
बौद्ध धर्म सिखाता है कि जीवन में दुख है और दुख का मूल कारण अज्ञानता तथा अनित्य घटनाओं के प्रति लगाव है। दुख को समाप्त करने का तरीका चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्गों का पालन करना है, जो मनुष्य को अज्ञानता और लगाव की समाप्ति के साथ निर्वाण की प्राप्ति की ओर ले जाता है, जिसका अर्थ है "विलुप्त होना" या "बाहर निकलना"। निर्वाण बौद्ध धर्म का अंतिम लक्ष्य है, जो सभी अशुद्धियों और पुनर्जन्मों से शांति तथा मुक्ति की स्थिति है। |
जैन धर्म सिखाता है कि जीवन बंधन है और बंधन का मूल कारण कर्म (क्रिया) एवं मोह (भ्रम) है जो आत्मा (जीव) को पदार्थ (अजीव) से जोड़ता है। बंधन को समाप्त करने का तरीका पाँच प्रतिज्ञाओं और त्रिरत्नों का पालन करना है, जिससे कर्म एवं मोह की शुद्धि होती है तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है, जिसका अर्थ है "मुक्ति" । मोक्ष, जैन धर्म का अंतिम लक्ष्य है और यह आनंद तथा सर्वज्ञता की स्थिति है जिसमें आत्मा सभी पदार्थों एवं पुनर्जन्मों से मुक्त हो जाती है। |
प्रथाएँ:
बौद्ध धर्म | जैन धर्म |
बौद्ध धर्म ज्ञान (प्रज्ञा) और करुणा (करुणा) को विकसित करने के साधन के रूप में ध्यान पर ज़ोर देता है, जो निर्वाण प्राप्त करने के लिये आवश्यक हैं। ध्यान के विभिन्न रूप हो सकते हैं जैसे चेतना (सती), एकाग्रता (समाधि), अंतर्दृष्टि (विपश्यना) या प्रेमपूर्ण दयालुता (मैत्री)। बौद्ध धर्म में अनुयायियों एवं मठवासियों के लिये नैतिक उपदेश निर्धारित किये गए हैं जिसमें हत्या, चोरी, झूठ बोलना, यौन दुराचार और नशा आदि से बचना शामिल है। बौद्ध धर्म उदारता (दान), नैतिकता (शील), धैर्य (शांति), प्रयास (वीर्य), एकाग्रता (समाधि) और ज्ञान (प्रज्ञा) को ऐसे गुणों के रूप में प्रोत्साहित करता है जो आत्मज्ञान की ओर ले जाते हैं। |
जैन धर्म अहिंसा को एक सर्वोच्च गुण के रूप में महत्त्व देता है जो सभी जीवित प्राणियों को समाहित करता है। अहिंसा का अभ्यास विचार, वाणी और क्रिया के माध्यम से किया जा सकता है। जैन धर्म सामान्य अनुयायियों (अणुव्रत) और मठवासियों (महाव्रत) के लिये नैतिक व्रत भी निर्धारित करता है, जिसमें हिंसा, झूठ बोलना, चोरी करना, यौन गतिविधि और लगाव से दूर रहना आदि शामिल है। जैन धर्म तपस्या (तप), समभाव (समता), वैराग्य (वैराग्य), आत्म-नियंत्रण (साम्य), ज्ञान (ज्ञान), विश्वास (श्रद्धा) और आचरण (चरित्र) को ऐसे गुणों के रूप में प्रोत्साहित करता है जो मुक्ति की ओर ले जाते हैं। |
संप्रदाय:
बौद्ध धर्म: बौद्ध धर्म दो प्रमुख संप्रदायों में विभाजित है: हीनयान और महायान।
जैन धर्म: जैन धर्म दो प्रमुख संप्रदायों में विभाजित है: दिगंबर और श्वेतांबर।
सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन पर प्रभाव:
बौद्ध धर्म और जैन धर्म (कुछ दार्शनिक एवं नैतिक सिद्धांतों में समानता के साथ) अपनी शिक्षाओं, प्रथाओं तथा संप्रदायों के संदर्भ में भिन्न थे। उन्होंने अहिंसा, करुणा व नैतिक जीवन के मूल्यों को बढ़ावा देकर प्राचीन भारतीय समाज पर एक अमिट छाप छोड़ी। कला, भाषा और सामाजिक सुधार पर उनके प्रभाव ने प्राचीन भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत में योगदान दिया तथा इस क्षेत्र के आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक परिदृश्य को समृद्ध किया।