दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में चक्रवातों से संबंधित मुद्दे, उनकी आवृत्ति, तीव्रता और प्रभाव को संक्षिप्त रूप से बताते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- भारत में मज़बूत आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली और चक्रवात प्रतिरोधी ढाँचे के बीच अंतराल पर विस्तार से चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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पवनों का परिवर्तनशील और अस्थिर चक्र, जिसके केंद्र में निम्न वायुदाब तथा बाहर उच्च वायुदाब होता है, ‘चक्रवात’ कहलाता है। चक्रवात सामान्यत: निम्न वायुदाब का केंद्र होता है, इसके चारों ओर समवायुदाब रेखाएँ संकेंद्रित रहती हैं तथा परिधि या बाहर की ओर उच्च वायुदाब रहता है, जिसके कारण हवाएँ चक्रीय गति से परिधि से केंद्र की ओर चलने लगती हैं।
- लगभग 7,500 किमी की विस्तृत तटरेखा वाला भारत, चक्रवातों के प्रति संवेदनशील है और यह चक्रवात जीवन, संपत्ति और बुनियादी ढाँचे के विनाश का कारण बन सकते हैं। भारत, विश्व में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के प्रति सबसे संवेदनशील देशों में से एक है, क्योंकि वैश्विक स्तर पर आने वाले चक्रवातों में इसकी हिस्सेदारी लगभग 10% है।
वैश्विक जलवायु परिवर्तन के कारण चक्रवातों की तीव्रता और आवृत्ति में वृद्धि हो रही है क्योंकि समुद्री सतह का उच्च तापमान चक्रवात के निर्माण और तीव्रता के लिये अधिक ऊर्जा और आर्द्रता प्रदान करता है।
भारत की मज़बूत आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली:
भारत ने चक्रवात की प्रतिक्रिया के लिये मज़बूत और प्रभावी प्रणाली विकसित की है, जिससे जन-धन की हानि को रोका जाता है। इस प्रणाली में विभिन्न घटक शामिल हैं जैसे:
- प्रारंभिक चेतावनी और पूर्वानुमान प्रणाली: भारत के पास उपग्रहों, रडार और अन्य उपकरणों का एक नेटवर्क है जो चक्रवात गतिविधि की निगरानी और ट्रैकिंग करते हैं जिससे लोगों को समय पर अलर्ट और अपडेट प्रदान किया जाता है।
- भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) वैज्ञानिक मानदंडों और अंतर्राष्ट्रीय मानकों के आधार पर चक्रवात की चेतावनी जारी करने के लिये जिम्मेदार है।
- राहत और आश्रय अवसंरचना: भारत के पास एक अच्छी तरह से प्रशिक्षित और सुसज्जित आपदा प्रबंधन बल है जो प्रभावित क्षेत्रों से लोगों को निकालने और प्रभावित समुदायों को राहत और सहायता प्रदान करने के लिये राज्य और स्थानीय अधिकारियों के साथ समन्वय करता है।
- राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF), आपदा प्रतिक्रिया हेतु विशेष एजेंसी है और यह अन्य बलों के साथ मिलकर कार्य करता है।
- चक्रवात बिपरजॉय के दौरान एनडीआरएफ ने 37,000 से अधिक लोगों को बचाया और इस दौरान केवल 3 लोगों की मौत हुई।
- संचार और जागरूकता: भारत के पास व्यापक संचार प्रणाली है जिससे विभिन्न हितधारकों और मीडिया प्लेटफार्मों तक चक्रवात की जानकारी और निर्देश प्रसारित होते हैं। इस प्रणाली में विभिन्न भाषाओं और प्रारूपों में लोगों तक पहुँचने के लिये रेडियो, टेलीविजन, मोबाइल फोन, सोशल मीडिया आदि जैसे कई चैनलों का उपयोग किया जाता है।
चक्रवात प्रतिरोधी ढाँचे का अभाव:
मज़बूत प्रतिक्रियाशील आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली होने के बावजूद, भारत में चक्रवात प्रतिरोधी ऐसे मज़बूत ढाँचे का अभाव है जिससे चक्रवातों से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता हो। चक्रवात अनुकूल ढाँचा ऐसे भौतिक, सामाजिक, आर्थिक और संस्थागत पहलुओं को संदर्भित करता है जो चक्रवात की चुनौतियों का सामना करने, इसका अनुकूलन करने और उनसे उबरने की क्षमता से संबंधित है। भारत की चक्रवात प्रतिरोधक क्षमता में कुछ कमियाँ हैं जैसे:
- ढाँचागत अनुकूलन: भारत का तटीय बुनियादी ढाँचा जैसे कि इमारतें, सड़कें, पुल, बंदरगाह, बिजली लाइनें आदि चक्रवातों के कारण उत्पन्न होने वाली तेज़ पवनों की गति और तूफ़ान का सामना करने के लिये सक्षम नहीं हैं। इससे चक्रवातों के दौरान और उसके बाद में व्यापक क्षति होने के साथ आवश्यक सेवाओं में व्यवधान होता है। इसके अलावा भारत के तटीय पारिस्थितिकी तंत्र के विभिन्न घटक जैसे मैंग्रोव, मूंगा चट्टानें, आर्द्रभूमि आदि मानवीय गतिविधियों जैसे वनों की कटाई, प्रदूषण, अतिदोहन आदि के कारण नष्ट होते जा रहे हैं। ये पारिस्थितिकी तंत्र प्राकृतिक तटबंधों के रूप में कार्य करते हैं जो तरंग ऊर्जा को अवशोषित करके चक्रवातों के प्रभाव को कम करने के साथ तट के कटाव को रोकते हैं।
- वर्ष 2021 में आने वाले चक्रवात, गुलाब के कारण हुई वर्षा से विशाखापत्तनम हवाई अड्डा लगभग जलमग्न हो गया था।
- सामाजिक अनुकूलन: भारत की तटीय आबादी गरीबी, असमानता, अशिक्षा, बुनियादी सुविधाओं तक पहुँच की कमी, स्वास्थ्य देखभाल की कमी, सामाजिक सुरक्षा के अभाव आदि जैसे कारकों के कारण चक्रवात के खतरों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। ये कारक चक्रवात से निपटने या उबरने की उनकी क्षमता को सीमित करते हैं।
- आर्थिक अनुकूलन: भारत की तटीय अर्थव्यवस्था कृषि, मत्स्य पालन, पर्यटन, उद्योग इत्यादि जैसे क्षेत्रों पर अत्यधिक निर्भर है जो चक्रवात के प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील हैं। चक्रवात से फसलों, पशुधन,बुनियादी ढाँचे आदि को नुकसान होता है। इससे लाखों लोगों की आजीविका और आय प्रभावित होती है जो अपने अस्तित्व के लिये इन क्षेत्रों पर निर्भर होते हैं। इसके अलावा चक्रवात आपूर्ति श्रृंखलाओं, बाज़ारों, निवेशों आदि को बाधित करके इन क्षेत्रों की वृद्धि और विकास में भी बाधा डालते हैं।
चक्रवातों के दौरान उत्पन्न होने वाली चुनौतियों का सामना करने में भारत की मज़बूत प्रतिक्रियाशील आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली निस्संदेह सराहनीय है और इससे काफी लोगों की जान बचाई गई है। हालाँकि चक्रवात प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे का अभाव अभी भी एक गंभीर चुनौती बनी हुई है। इस मुद्दे के समाधान हेतु उन्नत बुनियादी ढाँचे की योजना बनाने, पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण में निवेश करने, सक्रिय सामुदायिक भागीदारी और जागरूकता कार्यक्रमों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। मज़बूत प्रतिक्रियाशील आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली के साथ उन्नत बुनियादी ढाँचे के निर्माण से भारत अपने तटीय समुदायों की सुरक्षा और कल्याण सुनिश्चित करते हुए, चक्रवातों की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता से प्रभावी ढंग से निपट सकता है।