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  • 18 Aug 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    दिवस-29. भारत (विशेष रूप से विभिन्न जलवायु परिस्थितियों वाले क्षेत्रों में) में खाद्य सुरक्षा तथा कृषि विविधता को बढ़ावा देने में कदन्न (millets) की क्या भूमिका है? (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • कदन्न (मोटा अनाज) की विशेषताओं के बारे में बताइये।
    • चर्चा कीजिये कि खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने में मोटा अनाज की क्या भूमिका है?
    • चर्चा कीजिये कि मोटा अनाज से भारत में कृषि विविधता को कैसे बढ़ावा मिलेगा।
    • देश में मोटा अनाज को बढ़ावा देने के लिये किये गए कुछ सरकारी प्रयासों की चर्चा कीजिये।
    • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

    2023 को अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष मनाने के भारत के प्रस्ताव को वर्ष 2018 में खाद्य और कृषि संगठन (FAO) द्वारा अनुमोदित किया गया था तथा संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित किया है।

    • कदन्न के तहत समशीतोष्ण, उपोष्णकटिबंधीय और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के शुष्क भागों में होने वाली विभिन्न मोटे अनाज की फसलों को शामिल किया जाता है।
    • भारत में उपलब्ध कुछ सामान्य कदन्न में रागी, ज्वार और बाजरा शामिल हैं।

    भारत में खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने में मोटे अनाज की भूमिका:

    • पोषण संबंधी विविधता और पहुँच: मोटे अनाज फाइबर, विटामिन और खनिज जैसे पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। ये कुपोषण और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिये आवश्यक हैं।
      • राष्ट्रीय पोषण संस्थान (NIN) के अनुसार, रागी जैसे मोटे अनाज में अन्य अनाजों की तुलना में कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है जिससे यह हड्डियों के लिये अधिक फायदेमंद होता है।
    • जलवायु परिवर्तनशीलता के प्रति लचीलापन: मोटे अनाज के उत्पादन में जल की कम आवश्यकता होती है और यह कठोर जलवायु परिस्थितियों में भी उत्पादित हो सकते हैं। सूखे और उच्च तापमान के प्रति इनकी सहनशीलता इन्हें जलवायु परिवर्तनशीलता वाले क्षेत्रों के लिये उपयुक्त बनाती है।
      • उदाहरण के लिये महाराष्ट्र जैसे राज्यों में बाजरा और ज्वार जैसे मोटे अनाजों ने किसानों को सूखे के दौरान होने वाली जल की कमी से निपटने में मदद की है।
    • किसानों की आजीविका को बढ़ावा मिलना: मोटे अनाज की खेती से छोटे और सीमांत किसानों के लिये आय का एक अतिरिक्त स्रोत मिलता है। इनका फसल चक्र कम होने के साथ इन्हें कम इनपुट की आवश्यकता होती है, जिससे लागत में भी कमी आती है।
      • कर्नाटक के सूखाग्रस्त जिलों में मोटे अनाज की कृषि को बढ़ावा देने वाली पहलों ने किसानों को सशक्त बनाने के साथ उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार किया है।
    • जैवविविधता का संरक्षण: मोटे अनाज से कृषि जैव विविधता और फसल चक्र में योगदान मिलता है, जिससे कीटों के प्रकोप एवं बीमारियों के जोखिम में कमी आ सकती है।
      • तेलंगाना में डेक्कन डेवलपमेंट सोसाइटी के प्रयासों से जैव विविधता को बनाए रखने में मोटे अनाज की स्थानीय किस्मों की भूमिका पर प्रकाश डाला गया है।
    • स्थिरता और खाद्य संप्रभुता: अपने प्राकृतिक अनुकूलन के कारण रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों की आवश्यकता को कम करके इनसे सतत एवं टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा मिलता है।
      • भारत सरकार के राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन ने खाद्य संप्रभुता बढ़ाने तथा स्थायी खाद्य सुरक्षा प्राप्त करने के लिये मोटे अनाज को महत्त्वपूर्ण माना है।
    • ग्रामीण आजीविका: इससे कृषकों की खाद्य सुरक्षा के साथ आजीविका सुनिश्चित होती है।

    भारत में कृषि विविधता को बढ़ावा देने में मोटे अनाज की भूमिका:

    • सूखा सहनशीलता: मोटे अनाज की फसलों की जड़ें गहरी होती हैं जिससे इनके पौधों की जडें मृदा की गहरी परतों के जल तक पहुंचने में सक्षम होती हैं और यह अनियमित वर्षा वाले क्षेत्रों के लिये उपयुक्त हो जाती हैं।
      • फॉक्सटेल बाजरा (कांगनी) की खेती तमिलनाडु जैसे राज्यों में की जाती है, जहाँ जल की कमी एक मुख्य चुनौती है।
    • फसल चक्र और मृदा स्वास्थ्य: फसल चक्र प्रणाली में बाजरा को शामिल करने से सिंथेटिक उर्वरकों की आवश्यकता में कमी आने से मृदा के स्वास्थ्य में सुधार होता है।
      • महाराष्ट्र और कर्नाटक में उगाई जाने वाली ज्वार का उपयोग मृदा की उर्वरता में सुधार हेतु किया जाता है।
    • अनुकूलनशीलता: मोटा अनाज शुष्क और अर्ध-शुष्क जैसे विविध कृषि-जलवायु परिस्थितियों के लिये उपयुक्त है।
      • उदाहरण के लिये बाजरा, राजस्थान का प्रमुख अनाज है जो अपनी शुष्क जलवायु के लिये जाना जाता है।
    • पर्यावरण पर कम नकारात्मक प्रभाव: चावल और गेहूँ की तुलना में मोटे अनाज में कार्बन एवं जल फुटप्रिंट कम होता है। कम इनपुट आवश्यकताओं से इनसे टिकाऊ कृषि पद्धतियों में योगदान मिलता है।
    • स्थानीय खाद्य प्रणालियाँ: बाजरा स्थानीय आहार और खाद्य प्रणालियों का अभिन्न अंग हैं। स्थानीय पाक परंपराओं का समर्थन करते हुए, ज्वार और बाजरा का महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में मुख्य खाद्य पदार्थों के रूप में उपभोग किया जाता है।

    देश में मोटे अनाजों को बढ़ावा देने हेतु किये गए सरकारी प्रयास:

    • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM) - रागी और पोषक-अनाज घटक: NFSM के तहत मोटे अनाज सहित पोषक-अनाज को बढ़ावा देने पर बल दिया गया है। इसमें राज्यों को बीज वितरण, प्रदर्शन भूखंड और प्रशिक्षण जैसी विभिन्न गतिविधियों के लिये वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
    • राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA): NMSA कृषि उत्पादकता और स्थिरता को बढ़ाने के लिये मोटे अनाज की कृषि सहित जलवायु-लचीली प्रथाओं को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
    • परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY): PKVY जैविक कृषि को बढ़ावा देने के साथ किसानों को टिकाऊ कृषि के लिये मोटे अनाज की खेती सहित पर्यावरण-अनुकूल प्रथाओं को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करने पर केंद्रित है।
    • सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में मोटे अनाज को शामिल करना: कुछ राज्य समाज के कमज़ोर वर्गों को पौष्टिक और किफायती भोजन विकल्प उपलब्ध कराने के लिये PDS में मोटे अनाज को शामिल कर रहे हैं।
    • राष्ट्रीय पोषण मिशन (पोषण अभियान): मोटे अनाज को पौष्टिक भोजन विकल्प माना जाता है तथा कुपोषण से निपटने के लिये इस मिशन के तहत इसे बढ़ावा दिया जाता है।
    • मोटा अनाज पार्क: कुछ राज्यों ने मोटे अनाज की खेती के लाभों को प्रदर्शित करने तथा किसानों को उनकी खेती की तकनीकों के बारे में शिक्षित करने के लिये मोटा अनाज पार्क और प्रदर्शन भूखंड स्थापित किये हैं।
    • अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों के माध्यम से प्रचार: भारत सरकार मोटा अनाज के महत्त्व को उजागर करने के लिये वैश्विक मंचों पर मोटा अनाज को बढ़ावा देती है।

    केंद्रीय बजट 2023-24 में मोटे अनाज को 'श्री अन्न' कहा गया है। यह भारत में एक विविध और जलवायु-अनुकूल फसल का विकल्प है, जो विभिन्न जलवायु परिस्थितियों वाले विभिन्न क्षेत्रों में जल की कमी, मृदा स्वास्थ्य एवं पोषण से संबंधित चुनौतियों का समाधान पेश करता है।

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