16 Aug 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | सामाजिक न्याय
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- उच्च शिक्षा में आत्महत्या से संबंधित आँकड़ों को बताते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- छात्रों में आत्महत्या हेतु उत्तरदायी कारकों पर चर्चा कीजिये।
- भारत में आत्महत्या के मामलों को रोकने के उपायों पर चर्चा कीजिये।
- यथोचित निष्कर्ष दीजिये।
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शिक्षा मंत्रालय द्वारा राज्यसभा में प्रस्तुत हालिया आँकड़ों के अनुसार, 2018 से IITs (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान) में छात्र आत्महत्या के 33 मामले सामने आए हैं।
भारत में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में आत्महत्या के बढ़ते मामलों के कारक:
- शैक्षणिक दबाव: परीक्षाओं में उत्कृष्टता प्राप्त करने और उच्च ग्रेड बनाए रखने का तीव्र शैक्षणिक दबाव छात्रों के तनाव और चिंता में योगदान देने वाले प्राथमिक कारकों में से एक है।
- नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेज (NIMHANS) द्वारा किये गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में 89% छात्र किसी न किसी स्तर पर परीक्षा संबंधी तनाव का सामना करते हैं।
- प्रतिस्पर्धी माहौल: उच्च शिक्षण संस्थानों में अत्यधिक प्रतिस्पर्धी माहौल छात्रों के बीच तनाव के स्तर को बढ़ाता है।
- इंडियन जर्नल ऑफ साइकाइट्री में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, प्रतिस्पर्धा और उम्मीदों पर खरा न उतरने का डर छात्रों द्वारा बताए गए महत्त्वपूर्ण तनाव थे।
- मानसिक स्वास्थ्य सहायता का अभाव: मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों से जुड़ा कलंक और परिसरों में पर्याप्त मानसिक स्वास्थ्य सहायता सेवाओं की कमी अक्सर छात्रों को मदद लेने से हतोत्साहित करती है।
- NIMHANS सर्वेक्षण में बताया गया कि तनाव का अनुभव करने वाले केवल 7% छात्रों ने पेशेवर मदद माँगी।
- अलगाव और अकेलापन: कई छात्र (विशेष रूप से विभिन्न क्षेत्रों से आने वाले) नए वातावरण और समर्थन प्रणाली की अनुपस्थिति के कारण अलगाव और अकेलेपन की भावनाओं का सामना करते हैं।
- इंडियन जर्नल ऑफ साइकाइट्री द्वारा किये गए एक अध्ययन में पाया गया कि अकेलापन छात्रों द्वारा बताई गई प्रमुख मनोवैज्ञानिक समस्याओं में से एक है।
- वित्तीय बोझ: वित्तीय तनाव, विशेष रूप से कम आय पृष्ठभूमि वाले छात्रों के लिये, मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों और आत्महत्या की प्रवृत्ति में एक महत्त्वपूर्ण योगदान कारक हो सकता है।
- टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) द्वारा किये गए एक सर्वेक्षण से पता चला है कि मुंबई में 59% छात्र वित्तीय तनाव से पीड़ित थे।
इस समस्या से निपटने के उपाय:
- परामर्श और मानसिक स्वास्थ्य सहायता सेवाएँ स्थापित करना: उच्च शिक्षण संस्थानों को प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिकों और परामर्शदाताओं से युक्त समर्पित परामर्श केंद्र स्थापित करने चाहिये।
- भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बॉम्बे का छात्र कल्याण केंद्र छात्रों को मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान करने वाली ऐसी पहल का एक उदाहरण है।
- मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता और शिक्षा को बढ़ावा देना: मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता अभियान और कार्यशालाएँ आयोजित करने से मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों के लिये मदद मांगने को कलंकित न मानने में मदद मिल सकती है।
- अमृता विश्व विद्यापीठम का अमृता पुरी परिसर छात्रों के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिये मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करता है।
- शैक्षणिक सहायता सेवाओं को मज़बूत करना: शैक्षणिक सहायता कार्यक्रमों को लागू करने से छात्रों पर दबाव कम होने के साथ उन्हें शैक्षणिक चुनौतियों से निपटने में मदद मिल सकती है।
- सेंट स्टीफंस कॉलेज, दिल्ली में लर्निंग रिसोर्स सेंटर, छात्रों को ट्यूशन सेवाएँ प्रदान करने वाले अकादमिक सहायता केंद्र का एक उदाहरण है।
- सहकर्मी समर्थन और जागरूकता अभियान: मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े कलंक को कम करने के लिये सहकर्मी समर्थन नेटवर्क को प्रोत्साहित करने के साथ जागरूकता अभियान आयोजित करना आवश्यक है।
- दिल्ली विश्वविद्यालय में "चलचित्र" पहल छात्रों को खुलेपन और समझ की संस्कृति को बढ़ावा देते हुए, लघु फिल्मों के माध्यम से अपने अनुभवों और संघर्षों को साझा करने के लिये प्रोत्साहित करती है।
- समग्र पाठ्यक्रम और तनाव में कमी: जीवन कौशल, तनाव प्रबंधन और भावनात्मक बुद्धिमत्ता को शामिल करने के लिये शैक्षणिक पाठ्यक्रम को संशोधित करना चाहिये।
- दिल्ली के सरकारी स्कूलों में शुरू किया गया "हैप्पीनेस करिकुलम" भलाई, जागरूकता और मूल्यों पर ज़ोर देता है, जिसका लक्ष्य सीखने का एक अनुकूल माहौल बनाना है।
- संकाय प्रशिक्षण और भागीदारी: छात्रों में संकट के संकेतों की पहचान करने और समय पर सहायता प्रदान करने के लिये संकाय सदस्यों को प्रशिक्षित करना आवश्यक है।
- कर्नाटक में "निमहंस हेल्थ इन लर्निंग प्रोग्राम" छात्रों में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को पहचानने और हल करने के लिये शिक्षकों को प्रशिक्षित करने पर केंद्रित है।
भारत सरकार ने हाल ही में राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति, 2023 की घोषणा की। यह रणनीति मोटे तौर पर अगले तीन वर्षों के भीतर आत्महत्या के लिये प्रभावी निगरानी तंत्र स्थापित करने का प्रयास करती है।