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  • 15 Aug 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकी

    दिवस-26. जियोइंजीनियरिंग को बताते हुए जलवायु परिवर्तन से निपटने के क्रम में इसके संभावित लाभ और चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • जियोइंजीनियरिंग को बताते हुए जलवायु परिवर्तन को हल करने में इसकी भूमिका को बताते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • जियोइंजीनियरिंग से जुड़े संभावित लाभों और चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
    • जियोइंजीनियरिंग को अपनाने के क्रम में सावधानी और ज़िम्मेदार प्रबंधन की आवश्यकता को दोहराते हुए निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    जियोइंजीनियरिंग का तात्पर्य जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के उद्देश्य से पृथ्वी की जलवायु प्रणाली में जानबूझकर और बड़े पैमाने पर हस्तक्षेप करने से है। इसमें वायुमंडल से ग्रीनहाउस गैसों को हटाने या ग्लोबल वार्मिंग का मुकाबला करने के लिये पृथ्वी के विकिरण संतुलन को बदलने के लिये डिज़ाइन की गई तकनीकों की श्रृंखला शामिल है। जियोइंजीनियरिंग को प्रमुख रूप से दो मुख्य प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है: सौर विकिरण प्रबंधन (SRM) और कार्बन डाइऑक्साइड निष्कासन (CDR)।

    • सौर विकिरण प्रबंधन (SRM): जियोइंजीनियरिंग तकनीकों की इस श्रेणी का उद्देश्य सौर ऊर्जा के एक हिस्से को पृथ्वी की सतह से दूर प्रतिबिंबित करना है, जिससे वातावरण में ऊष्मा की मात्रा कम हो जाती है।
    • कार्बन डाइऑक्साइड निष्कासन (CDR): CDR तकनीकों का उद्देश्य वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित और इसे विभिन्न रूपों में संग्रहीत करना है। कुछ सीडीआर विधियों में निम्नलिखित शामिल हैं:
      • वनीकरण और पुनर्वनीकरण: प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने के लिये पेड़ लगाना।
      • बायोएनर्जी के साथ कार्बन कैप्चर एवं स्टोरेज (BECCS) को अपनाना: इसमें बायोएनर्जी के लिये फसलें उगाना, बायोमास को ऊर्जा में परिवर्तित करना तथा भूमिगत भंडारण के लिये कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को कैप्चर करना शामिल है।
      • प्रत्यक्ष वायु कैप्चर: इसके तहत वातावरण से सीधे कार्बन डाइऑक्साइड को कैप्चर करने और इसे भूवैज्ञानिक संरचनाओं में संग्रहीत करने के लिये प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना शामिल है।

    जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिये जियोइंजीनियरिंग के संभावित लाभ:

    • तीव्र प्रतिक्रिया: जियोइंजीनियरिंग से वैश्विक तापमान वृद्धि को सीमित करने की तत्काल आवश्यकता के लिये अपेक्षाकृत तीव्र प्रतिक्रिया की जा सकती है (खासकर उन परिदृश्यों में जहाँ पारंपरिक उत्सर्जन में कमी करने के प्रयास प्रभावी नहीं होते हैं)।
    • जलवायु स्थिरीकरण: SRM तकनीक से तापमान को कम करके और चरम मौसम की घटनाओं के प्रभाव को कम करके जलवायु को अस्थायी रूप से स्थिर करने में मदद मिल सकती है।
    • अनुकूलन: जियोइंजीनियरिंग से क्षेत्रीय जलवायु प्रभावों को हल करने में सहायता मिलती है और संभावित रूप से इसे विशिष्ट क्षेत्रों या परिस्थितियों के अनुरूप बनाया जा सकता है।

    जियोइंजीनियरिंग से संबंधित जोखिम और चुनौतियाँ:

    • अनापेक्षित परिणाम: जियोइंजीनियरिंग के अनापेक्षित पारिस्थितिकी, पर्यावरणीय और सामाजिक परिणाम हो सकते हैं जिनकी भविष्यवाणी करना और प्रबंधन करना मुश्किल है।
    • नैतिक जोखिम: एकमात्र समाधान के रूप में जियोइंजीनियरिंग पर भरोसा करना आवश्यक उत्सर्जन कटौती के लक्ष्य प्राप्ति को हतोत्साहित कर सकता है, जिससे नैतिक जोखिम पैदा हो सकता है (ऐसे समाज में जहाँ ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिये आवश्यक कार्य करने के क्रम में देरी देखने को मिलती है)।
    • नैतिक चिंताएँ: जियोइंजीनियरिंग प्रौद्योगिकियों से इस बारे में नैतिक प्रश्न उठते हैं कि पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने एवं संबंधित हितधारकों के हितों के संभावित टकराव तथा इस संदर्भ में किये जाने वाले हस्तक्षेपों पर लोकतांत्रिक नियंत्रण के बारे में निर्णय लेने का अधिकार किसके पास है।
    • वैश्विक शासन और कूटनीति: जियोइंजीनियरिंग कार्रवाइयों से भूराजनीतिक तनाव पैदा हो सकता है क्योंकि विभिन्न देशों में इनको अपनाने एवं इनके प्रभावों के बारे में अलग-अलग राय हो सकती है।
    • जटिलता और अनिश्चितता: पृथ्वी की जलवायु प्रणाली जटिल है जिस कारण जियोइंजीनियरिंग हस्तक्षेप के संभावित परिणाम अनिश्चित हैं। इसके कुछ अनपेक्षित परिणाम हो सकते हैं।

    जियोइंजीनियरिंग की वर्तमान चुनौतियों के संदर्भ में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका है, लेकिन इससे संबंधित जोखिम और अनिश्चितताओं को ध्यान में रखते हुए सावधानीपूर्वक अनुसंधान तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है। इसे पारंपरिक तरीकों से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के निरंतर प्रयासों के प्रतिस्थापन के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये।

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