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  • 15 Aug 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    दिवस-26. भारत में स्वतंत्रता पूर्व होने वाले जनजातीय विद्रोह के कारणों, प्रकृति और प्रभाव की चर्चा कीजिये। ये मुख्यधारा के राष्ट्रवादी आंदोलनों से किस प्रकार भिन्न थे? (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत में स्वतंत्रता से पूर्व होने वाले जनजातीय विद्रोह को संक्षिप्त रूप से बताते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • आदिवासी विद्रोह के मुख्य कारण, प्रकृति एवं प्रभाव को बताते हुए मुख्यधारा के राष्ट्रवादी आंदोलनों से यह किस प्रकार भिन्न था, इस पर भी चर्चा कीजिये।
    • अपने उत्तर के पक्ष में उपयुक्त उदाहरण प्रस्तुत कीजिये।
    • मुख्य बिंदुओं को संक्षेप में बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    भारत में स्वतंत्रता से पूर्व होने वाले जनजातीय विद्रोह के लिये सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक कारक उत्तरदायी थे। इन विद्रोहों के माध्यम से औपनिवेशिक शासन, जबरन श्रम, सांस्कृतिक दमन और बाहरी लोगों की शोषणकारी प्रथाओं के खिलाफ विभिन्न आदिवासी समुदाय एकजुट हुए। चुआर विद्रोह, संथाल विद्रोह, रम्पा विद्रोह और मुंडा विद्रोह कुछ सबसे प्रमुख आदिवासी आंदोलन थे।

    जनजातीय विद्रोह के मुख्य कारण:

    • भूमि अलगाव: जनजातीय विद्रोह का सबसे प्रमुख कारण औपनिवेशिक पदाधिकारियों और ज़मींदारों द्वारा जनजातीय भूमि में हस्तक्षेप करना था। जनजातीय क्षेत्रों में बाहरी लोगों की घुसपैठ के कारण अक्सर इनके विस्थापन, पारंपरिक आजीविका की हानि और सामाजिक संरचनाओं में व्यवधान को देखा गया।
      • उदाहरण के लिये संथाल हूल: संथालों को ब्रिटिशों और उनके एजेंटों द्वारा उनकी भूमि से विस्थापित कर दिया गया था और इन पर उच्च कर और लगान लगाया था।
    • जबरन श्रम और शोषण: ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन द्वारा 'रैयतवाड़ी' और 'ज़मींदारी' प्रणाली जैसी जबरन श्रम प्रथाओं के माध्यम से उचित भुगतान के बिना कृषि कार्य के लिये आदिवासियों का शोषण किया गया था। इससे इनमें आक्रोश फैल गया।
      • उदाहरण के लिये कोल विद्रोह: कोल को ब्रिटिश तथा उनके स्थानीय सहयोगियों द्वारा जबरन श्रम एवं शोषण का शिकार होना पड़ा था और इन्होंने उन पर भारी कर तथा ऋण आरोपित किया था।
    • सांस्कृतिक दमन: औपनिवेशिक सांस्कृतिक मानदंडों, शिक्षा और धार्मिक प्रथाओं को लागू करने से जनजातीय पहचान और रीति-रिवाज़ों को कमज़ोर किया गया। इस सांस्कृतिक दमन ने उनमें गर्व की भावना जागृत करने के साथ अपनी विरासत की रक्षा करने हेतु प्रेरित किया।
      • उदाहरण के लिये रम्पा विद्रोह: यह गोदावरी ज़िले में कोया आदिवासियों द्वारा अंग्रेज़ों और ईसाई मिशनरियों के खिलाफ किया गया विद्रोह था। कोया लोग अपने धार्मिक और सांस्कृतिक मामलों में ब्रिटिश तथा मिशनरियों के हस्तक्षेप से नाराज़ थे, जिन्होंने उन्हें ईसाई धर्म में परिवर्तित करने एवं उन पर अपने कानून तथा शिक्षा थोपने की कोशिश की थी।
    • संसाधनों का दोहन: औपनिवेशिक प्रशासन द्वारा अक्सर जंगलों और खनिजों के रूप में जनजातीय संसाधनों का शोषण किया गया था, जिससे यह समुदाय आजीविका के पारंपरिक साधनों से वंचित हो गए थे।
      • उदाहरण के लिये मुंडा विद्रोह: यह छोटा नागपुर में अंग्रेज़ों तथा ज़मींदारों के खिलाफ किया गया आंदोलन था। अंग्रेज़ों ने मुंडाओं को उनके वन अधिकारों और संसाधनों से वंचित कर दिया।
    • हाशिये पर रहने के साथ उपेक्षा होना: जनजातीय समुदायों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व, आर्थिक अवसरों और बुनियादी सुविधाओं तक पहुँच के मामले में हाशिये पर रखा गया, जिससे इनमें अलगाव और असंतोष की भावना विकसित हुई।
      • उदाहरण के लिये नगा आंदोलन: यह नगालैंड में ब्रिटिश शासन के खिलाफ नगा आदिवासियों द्वारा किया गया संघर्ष था। नगाओं को इससे उपेक्षित महसूस हुआ, जिससे स्वायत्तता एवं आत्मनिर्णय की उनकी मांगों को नज़रअंदाज कर दिया गया।

    जनजातीय विद्रोह की प्रकृति:

    • अधिकांश जनजातीय विद्रोह स्वतःस्फूर्त होने के साथ स्थानीय प्रकृति के थे। उनके पास स्पष्ट राजनीतिक दृष्टिकोण, विचारधारा या नेतृत्व का अभाव था। वे अक्सर दीर्घकालिक रणनीति के बजाय विशिष्ट शिकायतों या घटनाओं से प्रेरित होते थे।
    • अधिकांश जनजातीय विद्रोह हिंसक और सशस्त्र प्रकृति के थे। इनमें ब्रिटिश किलों, कार्यालयों, रेलवे, टेलीग्राफ, बागानों, खदानों और कारखानों पर हमले किये गए थे। इनमें ज़मींदारों, साहूकारों, व्यापारियों और मिशनरियों के खिलाफ विद्रोह करना भी शामिल था। उन्होंने धनुष, तीर, तलवार, भाले और कुल्हाड़ी जैसे पारंपरिक हथियारों का इस्तेमाल किया था।
    • जनजातीय विद्रोह अधिकतर जनजातीय एकजुटता और पहचान पर आधारित थे। उन्होंने अपने पैतृक नायकों, किंवदंतियों और मिथकों से प्रेरणा ली। उन्होंने सुरक्षा और मार्गदर्शन के लिये अपने आदिवासी देवी-देवताओं का भी आह्वान किया।

    आदिवासी विद्रोह का प्रभाव:

    • आदिवासी विद्रोह का ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन पर सीमित प्रभाव पड़ा था। उन्हें अधिकतर अंग्रेज़ों की बेहतर सैन्य शक्ति और खुफिया जानकारी द्वारा दबा दिया गया था। उन्हें अपने ही खेमे में विश्वासघात, दलबदल और विभाजन का भी सामना करना पड़ा। वे अपनी स्वायत्तता, भूमि और अधिकारों को बहाल करने के अपने तात्कालिक या अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करने में विफल रहे।
    • जनजातीय विद्रोह का जनजातीय समाज और संस्कृति पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा था। इसके परिणामस्वरूप जनजातीय लोगों के जीवन, संपत्ति और संसाधनों की हानि हुई। इसके कारण कुछ जनजातियों का विस्थापन, प्रवासन और अन्य समुदायों में विलय भी हुआ। उन्होंने जनजातीय लोगों को नए विचारों, प्रभावों और चुनौतियों से अवगत कराया।
    • जनजातीय विद्रोह का भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा। उन्होंने उपनिवेशवाद के विरुद्ध सेनानियों के रूप में जनजातीय लोगों के साहस, भावना और क्षमता का प्रदर्शन किया। उन्होंने भारतीय राष्ट्र के हिस्से के रूप में आदिवासी लोगों की दुर्दशा, समस्याओं और आकांक्षाओं पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कुछ राष्ट्रवादी नेताओं जैसे महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस की आदिवासी हितों को स्वीकार करने, सराहने और समर्थन करने के लिये सराहना की।

    जनजातीय विद्रोह और मुख्यधारा के राष्ट्रवादी आंदोलनों के बीच अंतर:

    • जनजातीय विद्रोह मुख्य रूप से राजनीतिक या वैचारिक कारकों के बजाय आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारकों से प्रेरित थे। उनका उद्देश्य आधुनिक राष्ट्र-राज्य बनाने या उसमें शामिल होने के बजाय अपने पारंपरिक जीवन के तरीके को संरक्षित करना या पुनर्स्थापित करना था।
      • उदाहरण के लिये संथाल हूल: संथाल अपने परंपरागत कानूनों एवं प्रथाओं के आधार पर अपना शासन स्थापित करना चाहते थे। उन्होंने ब्रिटिश राज को उखाड़ फेंकने या भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस में शामिल होने की कोशिश नहीं की थी।
    • आदिवासी विद्रोह मुख्य धारा के राष्ट्रवादी आंदोलनों से काफी हद तक अलग थे। उनका उनके साथ बहुत कम या कोई संपर्क, संचार या समन्वय नहीं था। उनके पास उनसे भिन्न तरीके, रणनीति और लक्ष्य भी थे।
      • उदाहरण के लिये नगा विद्रोह: नगाओं ने गुरिल्ला युद्ध का उपयोग करके अंग्रेज़ों का विरोध किया। उन्होंने मुख्यधारा के राष्ट्रवादियों द्वारा आयोजित अहिंसक सविनय अवज्ञा अभियानों या सामूहिक रैलियों में भाग नहीं लिया।
    • मुख्यधारा के राष्ट्रवादी आंदोलनों द्वारा जनजातीय विद्रोहों को अक्सर नज़रअंदाज या उपेक्षित किया गया। उनसे उन्हें बहुत कम या कोई मान्यता, सहानुभूति या सहायता नहीं मिली। उन्हें उनसे आलोचना, संदेह या शत्रुता का भी सामना करना पड़ा।
      • उदाहरण के लिये,मुंडा उलगुलान: मुंडाओं को भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस या अन्य राष्ट्रवादी समूहों से कोई समर्थन नहीं मिला। इसके बजाय, औपनिवेशिक अधिकारियों और कुछ भारतीय अभिजात वर्ग द्वारा उन्हें विद्रोही, कट्टरपंथी और अपराधी करार दिया गया।

    भारत में स्वतंत्रता से पूर्व होने वाले जनजातीय विद्रोह ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ आदिवासी असंतोष और प्रतिरोध का प्रकटीकरण थे। वे अपने उद्देश्यों, तरीकों, संगठन और परिणामों के संदर्भ में मुख्यधारा के राष्ट्रवादी आंदोलनों से भिन्न थे। हालाँकि उन्होंने उपनिवेशवाद विरोधी संघर्ष और स्वतंत्र भारत में आदिवासी अधिकारों और पहचान की मान्यता में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था। आदिवासी विद्रोह भारतीय इतिहास और विरासत का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं।

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