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  • 14 Aug 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस-25. भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के तहत शामिल करने की कुछ राज्यों की मांग के पीछे के तर्क का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • छठी अनुसूची के बारे में बताइये।
    • राज्यों को छठी अनुसूची में शामिल करने के औचित्य पर चर्चा कीजिये।
    • इससे संबंधित मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
    • यथोचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    हाल ही में लद्दाख को भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग उठ रही है। अनुच्छेद 244 के तहत भारतीय संविधान की छठी अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम आदि पूर्वोत्तर राज्यों में कुछ आदिवासी क्षेत्रों के प्रशासन एवं शासन से संबंधित है।

    • छठी अनुसूची का प्राथमिक उद्देश्य आदिवासी रीति-रिवाजों, परंपराओं और जीवन शैली के संरक्षण को सुनिश्चित करना है, साथ ही भारतीय संघीय प्रणाली के तहत उनके समग्र विकास एवं कल्याण को बढ़ावा देना है।
    • छठी अनुसूची इन क्षेत्रों में स्वायत्त ज़िला परिषदों और क्षेत्रीय परिषदों की स्थापना का प्रावधान करती है, जिससे उन्हें स्वशासन प्राप्त हो सके।

    कुछ राज्यों की मांग:

    • स्थानीय संस्कृति का संरक्षण: लद्दाख जैसे आदिवासी समुदायों द्वारा अपनी विशेष सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा के लिये छठी अनुसूची के तहत शामिल होने की मांग उठाई गई है।
    • शासन में स्वायत्तता: पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में गोरखा समुदाय द्वारा अपनी विशिष्ट पहचान को बनाए रखने और अपने क्षेत्र पर स्वायत्त रूप से शासन करने के लिये छठी अनुसूची के तहत शामिल करने की मांग की जाती है।
    • भूमि और संसाधनों की सुरक्षा: नागालैंड और असम जैसे राज्यों द्वारा अपनी भूमि को विकासात्मक परियोजनाओं या भूमि अधिग्रहण से उत्पन्न संभावित खतरों से बचाने के लिये इस तरह के समावेशन की मांग की गई है।
    • ऐतिहासिक पहचान को मान्यता: छठी अनुसूची के तहत शामिल करने की लद्दाख की मांग उनकी विशिष्ट ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने की उनकी इच्छा को दर्शाती है।
    • परंपरागत कानूनों का संरक्षण: अरुणाचल प्रदेश में कुछ समुदायों द्वारा छठी अनुसूची के तहत शामिल किये जाने की मांग उनके पारंपरिक रीति-रिवाजों और प्रथाओं की रक्षा करने की इच्छा से प्रेरित है।

    इस मांग को पूरा करने में आने वाली समस्याएँ:

    • पहचान और जनसांख्यिकी संबंधी जटिलताएँ: विविध समुदायों और कई जनजातीय समूहों वाले राज्यों को छठी अनुसूची के तहत शामिल करने के क्रम में एकीकृत पहचान को परिभाषित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
      • उदाहरण के लिये मणिपुर में विभिन्न आकांक्षाओं और मांगों वाली विभिन्न जनजातियों के कारण आम सहमति को बनाने में कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं।
    • राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता: ऐसी मांगों को पूरा करने से विभिन्न समुदायों और हित समूहों के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता एवं तनाव पैदा हो सकता है।
      • असम में बोडो प्रादेशिक क्षेत्र (BTR) को छठी अनुसूची के तहत शामिल करने की मांग राजनीतिक विवादों का विषय रही है।
    • परस्पर विरोधी विकासात्मक एजेंडे: छठी अनुसूची के तहत शामिल किये जाने की लोगों की आकांक्षाओं एवं क्षेत्र में केंद्र सरकार के व्यापक विकासात्मक एजेंडे के बीच संघर्ष हो सकता है।
      • उदाहरण के लिये मेघालय में कुछ क्षेत्रों को शामिल करने से उन क्षेत्रों में विकासात्मक परियोजनाओं के कार्यान्वयन पर असर पड़ सकता है।
    • भूमि और संसाधन प्रबंधन: छठी अनुसूची के तहत शामिल किये जाने से इन राज्यों को भूमि और संसाधन प्रबंधन में स्वायत्तता मिलती है।
      • त्रिपुरा में इस मांग से भूमि अधिकार और संसाधन प्रबंधन से संबंधित मुद्दों को बढ़ावा मिला है।
    • राष्ट्रीय एकता पर प्रभाव: समावेशन की मांगों को पूरा करने से राष्ट्रीय एकता और क्षेत्रीय अखंडता पर प्रभाव पड़ सकता है।
      • उदाहरण के लिये पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग को इसमें शामिल करने की मांग ने राज्य की क्षेत्रीय एकता को लेकर चिंताओं को बढ़ावा दिया है।

    गृह मामलों पर संसदीय स्थायी समिति के अनुसार वर्ष 2011 की जनगणना में केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख की आदिवासी आबादी इनकी कुल आबादी का लगभग 80% है। इस समिति ने इस क्षेत्र में जनजातीय आबादी की विकास संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये इस प्रदेश को विशेष दर्जा (5वीं/6वीं अनुसूची के तहत) देने पर विचार करने की सिफारिश की।

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