प्रयागराज शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 29 जुलाई से शुरू
  संपर्क करें
ध्यान दें:

Mains Marathon

  • 12 Aug 2023 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्य

    दिवस-24.

    1. विविध सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमियों और परस्पर विरोधी हितों से निपटने के दौरान सत्यनिष्ठा एवं निष्पक्षता बनाए रखने में लोक सेवकों के समक्ष आने वाली नैतिक चुनौतियों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)

    2. सिविल सेवकों के लिये सोशल मीडिया के उपयोग हेतु नैतिक मानकों को प्रभावी ढंग से कैसे सुनिश्चित और विनियमित किया जा सकता है? (150 शब्द)

    3. युवाओं में लत (Addiction) के विभिन्न रूपों के बढ़ते प्रचलन को देखते हुए, इस संदर्भ में रिकवरी एवं दीर्घकालिक सुधार हेतु समानुभूति कितनी महत्त्वपूर्ण है? (150 शब्द)

    4. परिणाम के बजाय प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करने की मानसिकता अपनाने से सफलता या विफलता के बोझ से मुक्ति का एहसास हो सकता है। विस्तार से बताइये। (150 शब्द)

    5. एक प्रतिष्ठित मीडिया चैनल में कार्यरत एक मेहनती पत्रकार, ऋषभ अपने बॉस को उनके प्राइम-टाइम शो में विवादास्पद विषयों को संबोधित करके अत्यंत लोकप्रियता और उच्च TRP रेटिंग प्राप्त करते हुए देखता है। इस सफलता से प्रेरित होकर, ऋषभ ने अपना खुद का यूट्यूब चैनल बनाने का फैसला किया, जहाँ वह नफरत फैलाने वाले विवादास्पद मुद्दों को चुनने के अपने बॉस के दृष्टिकोण का अनुकरण करता है। परिणामस्वरूप, उनके चैनल के फॉलोअर्स और लोकप्रियता में तेज़ी से वृद्धि हुई है, जिससे पिछले कुछ वर्षों में पर्याप्त वित्तीय लाभ हुआ है।
    एक दिन एक बच्चे के अपहरण की एक झूठी खबर सोशल मीडिया पर तेजी से फैल गई। मौके को भांपते हुए, ऋषभ ने बहुसंख्यक समुदाय के भीतर भावनाओं को भड़काने के उद्देश्य से एक नफरत भरा वीडियो बनाकर इस स्थिति का फायदा उठाने का फैसला किया। अपने वीडियो के माध्यम से, वह अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति शत्रुता का माहौल उत्पन्न करता है, अशिक्षित युवाओं को भीड़ बनाने और अल्पसंख्यक लड़कों पर हमला करने के लिये प्रेरित करता है। दुखद बात यह है कि इससे दो लोगों की मौत हो गई और प्रभावित क्षेत्र में कर्फ्यू लगाना पड़ा।
    जिले के पुलिस अधीक्षक (SP) के रूप में, आपको इस घटना की तुरंत जाँच करने और इसमें शामिल अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का काम सौंपा गया है।
    निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
    इस मामले में शामिल नैतिक मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
    आप दी गई स्थिति को कैसे हल करेंगे?
    इस मामले में सोशल मीडिया की क्या ज़िम्मेदारी होनी चाहिये? (250 शब्द)

    6. गलत सूचना और फेक न्यूज़ के युग में डीपफेक एक बड़ी चिंता के रूप में उभरे हैं। दृश्य मीडिया की अखंडता को बनाए रखने में डीपफेक द्वारा उत्पन्न चुनौतियों का विश्लेषण करें और उन उपायों का सुझाव दें जिन्हें उनके दुरुपयोग से निपटने के लिये लागू किया जा सकता है। (250 शब्द)

    7. भारत में समुद्री जल से चावल की कृषि (सी वाटर राइस) की संभावनाओं और चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। यह तटीय क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा तथा अनुकूलन बढ़ाने में किस प्रकार योगदान दे सकती है? (150 शब्द)

    8. सांप्रदायिक हिंसा की हालिया घटनाओं ने सामाजिक सद्भाव और राष्ट्रीय एकता पर सवाल खड़े कर दिये हैं। सांप्रदायिक तनाव को रोकने और प्रबंधित करने में कानून प्रवर्तन एजेंसियों तथा सामुदायिक भागीदारी की भूमिका पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    9. रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण जैसे कदम से जुड़े संभावित लाभों और जोखिमों को ध्यान में रखते हुए, इसके प्रति तार्किक दृष्टिकोण की आवश्यकता का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)

    10. शहरी बाढ़ भारत में एक महत्त्वपूर्ण पर्यावरण चुनौती के रूप में सामने आई है जो जीवन,आधारभूत संरचना एवं अर्थव्यवस्था के लिये बड़ा खतरा है। शहरी बाढ़ के कारणों का विश्लेषण करते हुए सरकार द्वारा इस समस्या को हल करने हेतु किये जाने वाले उपायों का मूल्यांकन कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर : 1

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • सत्यनिष्ठा और निष्पक्षता की अवधारणा का परिचय देते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • विविध सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि और परस्पर विरोधी हितों से निपटने के दौरान सत्यनिष्ठा एवं निष्पक्षता बनाए रखने में लोक सेवकों के समक्ष आने वाली नैतिक चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
    • यथोचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    सत्यनिष्ठा का आशय ईमानदारी और उच्च नैतिक गुणों का होना है। यह एक समग्र गुण है जो क्रिया, मूल्यों, विधियों और सिद्धांतों के बीच स्थिरता को दर्शाता है। सत्यनिष्ठा का अर्थ पारदर्शी रहते हुए पूरी ज़िम्मेदारी और समग्रता के साथ निर्णय लेना भी है।

    निष्पक्षता का आशय तटस्थ और निष्पक्ष रहने से है। इसका अर्थ व्यक्तिगत प्राथमिकताओं, पूर्वाग्रहों के बजाय वस्तुनिष्ठ मानदंडों के आधार पर निर्णय लेना है। इसका तात्पर्य आधिकारिक क्षमता में प्रत्येक व्यक्ति के साथ समान व्यवहार करना और योग्यता-आधारित प्रणाली का पालन करना भी है।

    लोक सेवकों के समक्ष विद्यमान नैतिक चुनौतियाँ:

    • विविधता और समावेशन का सम्मान करना: लोक सेवकों को उन लोगों के विभिन्न मूल्यों, विश्वासों, संस्कृतियों, भाषाओं, धर्मों, लिंग एवं पहचान के प्रति जागरूक तथा संवेदनशील होने की आवश्यकता है जिनकी वे सेवा करते हैं और जिनके साथ कार्य करते हैं।
      • उन्हें विभिन्न समूहों और समुदायों की ज़रूरतों और अपेक्षाओं को संतुलित करने और यह सुनिश्चित करने की भी आवश्यकता है कि उनकी नीतियां तथा कार्यक्रम समावेशी हों।
    • हितों के टकराव का प्रबंधन: लोक सेवकों को उन स्थितियों से बचने की ज़रूरत है जहाँ उनके व्यक्तिगत या निजी हितों के कारण आधिकारिक कर्तव्यों या सार्वजनिक हितों से समझौता हो सकता है। इन्हें किसी भी वास्तविक, संभावित या कथित हितों के टकराव को हल करने या प्रबंधित करने के लिये उचित कदम उठाने की आवश्यकता होती है। इन्हें व्यक्तिगत लाभ के लिये या अपने दोस्तों, रिश्तेदारों या सहयोगियों को लाभ पहुँचाने के लिये अपने पद या अधिकार का उपयोग करने से भी बचना चाहिये।
    • जवाबदेही और पारदर्शिता बनाए रखना: लोक सेवकों को अपने कार्यों और निर्णयों के लिये जवाबदेह होने के साथ पारदर्शिता बनाए रखने की आवश्यकता होती है। इन्हें जनता और अन्य हितधारकों के साथ अपने व्यवहार में पारदर्शी होने तथा प्रासंगिक, सटीक एवं समय पर पूर्ण जानकारी तक लोगों को पहुँच प्रदान करने की भी आवश्यकता होती है।
    • व्यावसायिकता और योग्यता सुनिश्चित करना: लोक सेवकों को अपना कार्य परिश्रम, दक्षता, प्रभावशीलता और गुणवत्ता के साथ करने की आवश्यकता होती है। इन्हें अपने ज्ञान और कौशल को अद्यतन रखने तथा इस संबंध में प्रतिक्रिया एवं सुधार की आवश्यकता होती है। इन्हें दूसरों की विशेषज्ञता और राय का सम्मान करने तथा सामान्य लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये अपने सहयोगियों एवं भागीदारों के साथ सहयोग करने की भी आवश्यकता होती है।

    इन नैतिक चुनौतियों से निपटने के लिये लोक सेवकों में नैतिक क्षमता की मज़बूत भावना होनी चाहिये, जो तर्कसंगत और सैद्धांतिक तरीके से नैतिक मुद्दों को पहचानने, विश्लेषण करने और हल करने की क्षमता है। नैतिक क्षमता में निम्नलिखित शामिल हैं:

    • नैतिक जागरूकता: इसका आशय कार्य वातावरण में नैतिक मुद्दों और दुविधाओं को पहचानने की क्षमता से है।
    • नैतिक तर्क: इसका आशय नैतिक मुद्दों और दुविधाओं का विश्लेषण करने के लिये नैतिक सिद्धांतों, मूल्यों और मानकों को लागू करने की क्षमता से है।
    • नैतिक निर्णय: इसका आशय नैतिक तर्क के आधार पर ठोस और सुसंगत निर्णय लेने की क्षमता से है।
    • नैतिक कार्रवाई: इसका आशय नैतिक निर्णयों को प्रभावी ढंग से और ज़िम्मेदारी से लागू करने की क्षमता से है।
    • नैतिक चिंतन: इसका आशय किसी के स्वयं के नैतिक प्रदर्शन का मूल्यांकन करने और अपने अनुभवों से सीखने की क्षमता से है। नैतिक क्षमता विकसित करने के लिये, लोक सेवकों को विभिन्न संसाधनों और सहायता तंत्रों तक पहुँच की आवश्यकता होती है, जैसे:
    • आचार संहिता और आचरण संहिता: ये ऐसे दस्तावेज़ हैं जो लोक सेवकों के व्यवहार को निर्देशित करने वाले आधारभूत मूल्यों, सिद्धांतों और मानकों को परिभाषित करते हैं। ये नैतिक निर्णय लेने और कार्रवाई के लिये एक सामान्य ढांचा प्रदान करते हैं तथा लोक सेवकों को उनकी भूमिका तथा ज़िम्मेदारियों को समझने में मदद करते हैं। ये नैतिक उल्लंघनों के मामले में जवाबदेही और अनुशासन के आधार के रूप में भी कार्य करते हैं।
    • नैतिक प्रशिक्षण: यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य नैतिकता के संबंध में लोक सेवकों के ज्ञान, कौशल और दृष्टिकोण को उन्नत करना है। यह लोक सेवकों को नैतिक जागरूकता, तर्क, निर्णय और संतुलित दृष्टिकोण विकसित करने में मदद करता है। यह विशिष्ट नैतिक मुद्दों और दुविधाओं से निपटने में भी मदद करता है।
    • नैतिक सलाह: यह उन लोक सेवकों को मार्गदर्शन और सहायता प्रदान करती है जो अपने कार्य में नैतिक मुद्दों या दुविधाओं का सामना करते हैं। यह लोक सेवकों को तथ्यों को स्पष्ट करने, विकल्पों की पहचान करने, परिणामों का आकलन करने और सूचित निर्णय लेने में मदद करती है। इससे उन्हें हितों के टकराव को सुलझाने या प्रबंधित करने में भी मदद मिलती है।
    • नैतिकता समितियाँ: ये ऐसी संस्थाएँ हैं जो लोक सेवा में नैतिकता का प्रचार करती हैं। इनके विभिन्न कार्य हो सकते हैं जैसे नैतिकता और आचरण संहिता विकसित करना, नैतिकता प्रशिक्षण और सलाह प्रदान करना, नैतिकता अनुपालन की निगरानी करना, नैतिकता संबंधी शिकायतों की जाँच करना और नैतिकता के उल्लंघन पर प्रतिबंध लगाना।

    नैतिक नेतृत्व: इसमें नैतिक व्यवहार का उदाहरण स्थापित करना, नैतिक मूल्यों और अपेक्षाओं को संप्रेषित करना, नैतिक संवाद तथा प्रतिक्रिया को प्रोत्साहित करना, नैतिक उपलब्धियों को पहचानना एवं नैतिक समस्याओं का समाधान करना शामिल है। नैतिक नेतृत्व का प्रयोग सार्वजनिक सेवा में कोई भी कर सकता है, लेकिन यह वरिष्ठ प्रबंधकों और राजनीतिक नेताओं के लिये विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है जिनके पास अधिक प्रभाव और ज़िम्मेदारी है।

    इन संसाधनों और सहायता तंत्रों का उपयोग करके लोक सेवक अपनी नैतिक क्षमता बढ़ा सकते हैं एवं विविध सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि तथा परस्पर विरोधी हितों से निपटने के दौरान सत्यनिष्ठा व निष्पक्षता बनाए रखने में आने वाली नैतिक चुनौतियों पर नियंत्रण पा सकते हैं।


    उत्तर: 2

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • सोशल मीडिया के उपयोग से संबंधित नैतिक मानकों का परिचय देते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • सोशल मीडिया के उपयोग के संदर्भ में सिविल सेवकों के समक्ष आने वाली नैतिक चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
    • नैतिक मानकों को प्रभावी ढंग से कैसे सुनिश्चित और विनियमित किया जा सकता है?
    • यथोचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    सोशल मीडिया के उपयोग से संबंधित नैतिक मानक उन सिद्धांतों के इर्द-गिर्द घूमते हैं जिनसे ऑनलाइन क्षेत्र में ज़िम्मेदार और सम्मानजनक व्यवहार का मार्गदर्शन होता हो। ये मानक सामाजिक प्लेटफॉर्म का उपयोग करने वाले व्यक्तियों और संगठनों दोनों पर लागू होते हैं।

    उदाहरण के लिये: सत्यता और सटीकता, सम्मान एवं सभ्यता, गोपनीयता तथा सहमति।

    सोशल मीडिया के उपयोग के संदर्भ में सिविल सेवकों के समक्ष नैतिक चुनौतियाँ:

    भारत में सिविल सेवकों द्वारा सोशल मीडिया के उपयोग से विभिन्न चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।

    • हितों का टकराव: सिविल सेवकों को इस बात से सावधान रहना चाहिये कि वे सोशल मीडिया पर ऐसी गतिविधियों में शामिल न हों जिससे उनके आधिकारिक कर्तव्यों के साथ हितों का टकराव पैदा हो सकता है।
      • उदाहरण के लिये वर्ष 2018 में एक भारतीय पुलिस सेवा (IPS) अधिकारी को अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक निजी कंपनी के उत्पाद को बढ़ावा देने, पक्षपात और आधिकारिक पद के दुरुपयोग के बारे में सवाल उठाने के लिये आलोचना का सामना करना पड़ा था।
    • तटस्थता और निष्पक्षता बनाए रखना: सिविल सेवकों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने सार्वजनिक व्यवहार में तटस्थ और निष्पक्ष रहें। हालाँकि सोशल मीडिया व्यक्तिगत राय व्यक्त करने का एक मंच बन सकता है जो उनकी आधिकारिक भूमिकाओं के विपरीत हो सकता है।
      • वर्ष 2020 में एक वरिष्ठ IAS अधिकारी को राजनीतिक राय व्यक्त करने वाले एक ट्वीट के लिये आलोचना का सामना करना पड़ा था, जिससे निष्पक्षता को लेकर चिंताएँ उत्पन्न हुईं।
    • गोपनीयता: सोशल मीडिया के उपयोग से अनजाने में संवेदनशील जानकारियों का खुलासा होने के साथ गोपनीयता मानदंडों का उल्लंघन भी हो सकता है।
      • वर्ष 2019 में केरल में एक IAS अधिकारी को तब आलोचना का सामना करना पड़ा था जब उसने अनजाने में अपने व्हाट्सएप स्टेटस पर एक गोपनीय सरकारी दस्तावेज़ साझा किया, जिससे गोपनीयता का उल्लंघन हुआ था।
    • आधिकारिक सूचना का दुरुपयोग: सिविल सेवकों को इस बात से सावधान रहना चाहिये कि आधिकारिक जानकारी को औपचारिक रूप से जनता के सामने साझा करने से पहले इसे प्रसारित करने के लिये सोशल मीडिया का उपयोग न करें।
      • वर्ष 2016 में एक वरिष्ठ IPS अधिकारी को चल रहे पुलिस ऑपरेशन के संवेदनशील परिचालन विवरण को ट्विटर पर साझा करने के लिये जाँच का सामना करना पड़ा, जिससे संभवतः उस मिशन की सफलता खतरे में पड़ गई थी।
    • साइबर सुरक्षा और डेटा संरक्षण: सिविल सेवकों के पास संवेदनशील डेटा तक पहुँच होती है और गोपनीय जानकारी तक अनधिकृत पहुँच हासिल करने के लिये हैकर्स द्वारा उनके सोशल मीडिया अकाउंट को लक्षित किया जा सकता है।
      • वर्ष 2017 में हैकरों के एक समूह ने गोपनीय डेटा से समझौता करते हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी की वेबसाइट और ट्विटर हैंडल को निशाना बनाया और इसे विकृत कर दिया।

    सिविल सेवकों द्वारा सोशल मीडिया का नैतिक उपयोग सुनिश्चित करने की आवश्यकता:

    भारत में सिविल सेवकों द्वारा उपयोग किये जाने वाले सोशल मीडिया के नैतिक मानकों को सुनिश्चित और विनियमित करने हेतु विभिन्न उपायों को अपनाया जा सकता है।

    • स्पष्ट दिशानिर्देश और प्रशिक्षण: सोशल मीडिया के उपयोग के संबंध में सिविल सेवकों के लिये स्पष्ट और व्यापक दिशानिर्देश प्रदान करने चाहिये।
      • उदाहरण के लिये सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021'
    • निगरानी: सिविल सेवकों की सोशल मीडिया गतिविधियों पर नज़र रखने के लिये प्रभावी निगरानी तंत्र स्थापित करना चाहिये। इससे संबंधित नैतिक मानकों के किसी भी उल्लंघन की पहचान करने के लिये समय-समय पर ऑडिट करना चाहिये।
      • वर्ष 2020 में पश्चिम बंगाल सरकार ने सिविल सेवकों की ऑनलाइन गतिविधियों की निगरानी करने और स्थापित दिशानिर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये एक सोशल मीडिया निगरानी सेल की शुरुआत की।
    • जवाबदेही और अनुशासनात्मक कार्रवाइयाँ: सोशल मीडिया पर किसी भी अनैतिक आचरण के लिये सिविल सेवकों को ज़िम्मेदार ठहराना आवश्यक है। इनके उल्लंघनों के लिये पारदर्शी अनुशासनात्मक प्रक्रिया स्थापित करना आवश्यक है।
      • वर्ष 2019 में कर्नाटक के एक पुलिस अधिकारी को फेसबुक पर एक विशेष समुदाय के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा देने वाली आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट करने के लिये निलंबित कर दिया गया और उसे विभागीय जाँच का सामना करना पड़ा था।
    • ज़िम्मेदार व्यवहार को प्रोत्साहित करना: सरकारी विभागों के तहत ज़िम्मेदार सोशल मीडिया उपयोग की संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिये। सार्वजनिक विश्वास बढ़ाने वाली सकारात्मक सोशल मीडिया प्रथाओं को पहचानें और पुरस्कृत करने की आवश्यकता है।
      • #NexusofGood इस संदर्भ में एक प्रगतिशील पहल है जिसका उद्देश्य सिविल सेवकों और समुदाय दोनों द्वारा किये गए सराहनीय प्रयासों को पहचानना, समझना, मूल्यांकन करना एवं इनका विस्तार करना है।
    • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के साथ समन्वय: गलत सूचना, घृणास्पद भाषण और साइबरबुलिंग के मुद्दों से निपटने के लिये सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के साथ सहयोग करना आवश्यक है।
      • वर्ष 2018 में भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने सोशल मीडिया कंपनियों से COVID-19 महामारी से संबंधित गलत या भ्रामक जानकारी को बढ़ावा देने वाली सामग्री को हटाने के लिये कहा।

    इन उपायों को लागू करके भारत यह सुनिश्चित कर सकता है कि सिविल सेवक सोशल मीडिया पर नैतिक मानकों को बनाए रखें और पारदर्शिता को बढ़ावा देने एवं जनता के साथ समन्वय करने के साथ सरकारी संस्थानों की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिये ज़िम्मेदारी से इन प्लेटफॉर्मों का उपयोग करें।


    उत्तर: 3

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • युवाओं में लत और इसके विभिन्न रूपों को परिभाषित करते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • चर्चा कीजिये कि नशे की लत वाले युवाओं की रिकवरी के लिये समानुभूति दिखाना क्यों महत्त्वपूर्ण है?
    • विभिन्न प्रकार की लत से पीड़ित युवाओं के प्रति सहानुभूति कैसे दिखायी जा सकती है?
    • यथोचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    लत एक जटिल स्थिति है जिसमें व्यक्ति हानिकारक परिणामों को भुगतने के बावजूद विभिन्न पदार्थों के उपयोग के साथ विभिन्न कार्यों में शामिल रहता है। यह अक्सर शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का कारण बनती है। लत, युवाओं सहित सभी उम्र के लोगों को प्रभावित कर सकती है। युवाओं में नशे की लत के विभिन्न रूप हैं:

    • शराब और नशीली दवाओं की लत, इंटरनेट एवं सोशल मीडिया की लत, गेमिंग की लत, जुए की लत, अश्लील साहित्य की लत, भोजन की लत, व्यायाम की लत आदि।

    नशे की लत वाले युवाओं की रिकवरी के लिये समानुभूति का महत्त्व:

    समानुभूति से सहायक और अनुकूल वातावरण बनाने में मदद मिलती है जिससे सकारात्मक बदलाव को बढ़ावा मिलने के साथ रिकवरी प्रक्रिया में सहायता मिल सकती है।

    • कलंक और शर्म की धारणा में कमी आना: समानुभूति से लत से जुड़े कलंक और शर्म की धारणा को कम करने में मदद मिलने के साथ एक सुरक्षित वातावरण बनता है जहाँ युवा महसूस करते हैं कि उन्हें समझा जाता है एवं उनका समर्थन किया जाता है।
    • विश्वास और तालमेल का निर्माण: समानुभूति से नशे की लत वाले युवाओं के बीच विश्वास और तालमेल की नींव स्थापित होगी।
    • परिवर्तन के लिये प्रेरणा बढ़ाना: समानुभूतिपूर्ण समर्थन से लत से पीड़ित युवाओं की भावनाओं और अनुभवों को अनुकूलित करके बदलाव के लिये उसकी प्रेरणा को बढ़ाया जा सकता है।
    • खुले संचार की सुविधा: समानुभूति से युवाओं और उनकी देखभाल करने वालों जैसे- चिकित्सकों या सलाहकारों के बीच खुले एवं ईमानदार संचार को प्रोत्साहन मिलेगा।
    • भावनात्मक उपचार का समर्थन: समानुभूति से लत से पीड़ित युवाओं की भावनाओं को समझा जा सकेगा।

    नशे की लत से पीड़ित युवाओं के प्रति समानुभूति प्रदर्शित करने के तरीके:

    माता-पिता द्वारा:

    • सक्रिय श्रवण के साथ गैर-निर्णयात्मक रवैया: उदाहरण के लिये यदि कोई किशोर नशीली दवाओं की लत से छुटकारा पाने के लिये संघर्ष करता है तो माता-पिता समानुभूतिपूर्वक यह कहकर प्रतिक्रिया दे सकते हैं कि
      • "अपनी भावनाओं को मेरे साथ साझा करने के लिये धन्यवाद! मैं कल्पना कर सकता हूं कि यह आपके लिये चुनौतीपूर्ण है और मैं आपका समर्थन करने के तैयार हूं।"
    • मान्यता और समझ: उदाहरण के लिये यदि कोई युवा वयस्क सोशल मीडिया की लत से जूझ रहा है और अपने माता-पिता को इसके बारे में बताता है, तो माता-पिता यह कहकर सहानुभूतिपूर्वक प्रतिक्रिया दे सकते हैं कि
      • "मैं देख सकता हूं कि आप इससे संघर्ष कर रहे हैं और मैं चाहता हूं कि आप इस बात को जानें कि मुझे आपकी परवाह है तथा यह भी विश्वास है कि हम इससे मिलकर निपट सकते हैं।"

    शिक्षकों द्वारा:

    • सहायता और प्रोत्साहन की पेशकश: शिक्षक लत से पीड़ित युवाओं की रिकवरी हेतु प्रोत्साहन और समर्थन का स्रोत हो सकते हैं। यह इन चुनौतियों से पार पाने में युवाओं की सहायता कर सकते हैं।

    सहकर्मी समूहों द्वारा:

    • व्यक्तिगत अनुभव साझा करना: जिन साथियों ने इस प्रकार की समान चुनौतियों पर काबू पाया है, वे अपने अनुभव साझा कर सकते हैं। एकजुटता व्यक्त करके ये प्रदर्शित कर सकते हैं कि इसमें सुधार संभव है।

    सरकार द्वारा:

    • सुलभ उपचार सुविधाएँ: नशा मुक्त भारत अभियान (NMBA) तथा नशे की लत के लिये एकीकृत पुनर्वास केंद्र (IRCAs) की स्थापना।
    • शैक्षिक और जागरूकता अभियान: नशा मुक्ति के लिये टोल-फ्री हेल्पलाइन, 14446 की शरुआत करना आदि।

    "समानुभूति वह कुंजी है जो समझ और समनवय के द्वार खोलती है।" यह एक ऐसा वातावरण बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है जिसमें नशे से पीड़ित युवा सुधार की दिशा में कार्य करने के क्रम में स्वयं को सशक्त महसूस करते हैं। इससे समन्वय की भावना को बढ़ावा मिलता है जो लत के चक्र को तोड़ने और सकारात्मक बदलाव को बढ़ावा देने के लिये आवश्यक है।


    उत्तर: 4

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • परिणाम के बजाय प्रक्रिया के महत्त्व की प्रासंगिक को बताते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • परिणाम के बजाय प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करने के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
    • चर्चा कीजिये कि जब ध्यान परिणाम पर होता है तो क्या होता है?
    • यथोचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    भगवद गीता में कार्यों के परिणामों से के बजाय प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करने के महत्त्व पर ज़ोर दिया गया है। यह दर्शन "निष्काम कर्म" की अवधारणा में समाहित है जिसका अर्थ है परिणामों के प्रति किसी भी लगाव के बिना निःस्वार्थ भाव से अपने कर्तव्यों का पालन करना।

    परिणाम के बजाय प्रक्रिया पर ध्यान देने का महत्त्व:

    • व्यक्तिगत विकास के साथ सीखने की प्रक्रिया को बढ़ावा मिलना: प्रक्रिया को प्राथमिकता देने से हम सीखने के साथ सुधार की भावना से अधिक प्रेरित होते हैं।
      • उदाहरण के लिये ऐसा छात्र जो केवल ग्रेड पर निर्भर रहने के बजाय अध्ययन एवं सीखने की प्रक्रिया को महत्त्व देता है तो उसकी शैक्षणिक यात्रा अधिक आनंददायक होती है तथा वह समग्र रूप से बेहतर प्रदर्शन करता है।
    • तनाव और चिंता को कम करना: प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करने तथा कुछ परिणामों को प्राप्त करने से संबंधित चिंता कम हो जाती है क्योंकि हम उम्मीदों के दबाव से मुक्त हो जाते हैं।
      • उदाहरण के लिये यदि कोई एथलीट लगातार कठोर प्रशिक्षण दिनचर्या का पालन करने और अपनी तकनीकों को परिष्कृत करने पर ध्यान केंद्रित करता है तो उसके दीर्घकालिक विकास एवं प्रदर्शन में वृद्धि होने की अधिक संभावना रहती है, भले ही वह हर प्रतियोगिता जीतता हो।
    • पूर्णतः एवं संतुष्टि का भाव होना: प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करने से हमारी ऊर्जा वर्तमान क्षण के प्रयासों में खर्च होती है जिससे हमें अपने प्रयासों में अधिक संतुष्टि और पूर्णतः का भाव होता है।
      • उदाहरण के लिये कोई ऐसा कलाकार जो लोगों की मान्यता से स्वतंत्र होकर कला सृजन के कार्य में आनंद प्राप्त करता है वह अधिक संतुष्टि का अनुभव करता है।

    परिणाम पर अधिक ध्यान केंद्रित करने का खामियाज़ा:

    • चिंता और दबाव में वृद्धि: जब व्यक्ति किसी विशिष्ट परिणाम को प्राप्त करने पर केंद्रित होते हैं तो अधिक चिंता और दबाव का अनुभव हो सकता है।
      • उदाहरण के लिये किसी परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्रों में अत्यधिक चिंता विकसित हो सकती है, यदि उनका ध्यान केवल अधिक अंक प्राप्त करने पर केंद्रित होगा।
    • प्रक्रिया और सीखने की उपेक्षा: परिणाम पर अत्यधिक ध्यान देने से व्यक्ति अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये आवश्यक प्रक्रिया और सीखने की उपेक्षा कर सकते हैं।
      • ऐसा कोई विक्रेता जो केवल मासिक बिक्री लक्ष्यों को पूरा करने के बारे में चिंतित है, वह दीर्घकालिक ग्राहक संबंधों के महत्त्व की उपेक्षा करते हुए, अनुचित रणनीति का सहारा ले सकता है।
    • खुशी और संतुष्टि में कमी: मात्र परिणाम पर ध्यान केन्द्रित करने से वांछित परिणाम प्राप्त करने के बाद भी असंतुष्टि हो सकती है।
      • उदाहरण के लिये चैंपियनशिप जीतने के लिये उत्सुक एक एथलीट को थकान का अनुभव हो सकता है यदि वह प्रशिक्षण के आनंद, टीम के साथियों के साथ सौहार्द और व्यक्तिगत विकास की उपेक्षा करता है।

    प्रक्रिया पर ध्यान देने की आवश्यकता:

    • स्पष्ट और यथार्थवादी लक्ष्य निर्धारित होना: केवल परिणामों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय ऐसे सार्थक और उद्देश्यपूर्ण लक्ष्य निर्धारित करना आवश्यक है जो मूल्यों और सिद्धांतों के अनुरूप हों।
      • उदाहरण के लिये सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में कार्य करने वाला कोई सिविल सेवक किसी विशिष्ट क्षेत्र में टीकाकरण दरों में सुधार करने का लक्ष्य निर्धारित कर सकता है।
    • सतत् निगरानी और मूल्यांकन: प्रक्रिया पर ज़ोर देने के तहत विचार की गई रणनीतियों और कार्यों की निरंतर निगरानी और मूल्यांकन करना आवश्यक है।
      • उदाहरण के लिये आपदा प्रबंधन में सम्मिलित कोई सिविल सेवक नियमित रूप से प्रशिक्षण की समीक्षा करके, इसमें विद्यमान अंतराल की पहचान करके और अपनी टीम की आपदा तैयारियों की दक्षता बढ़ाने के लिये प्रोटोकॉल को परिष्कृत करके आपातकालीन प्रतिक्रियाओं की प्रक्रिया पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकता है।
    • सहयोगात्मक और समावेशी दृष्टिकोण को प्रोत्साहन मिलना: प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करने से विविध दृष्टिकोणों को शामिल करना और विभिन्न हितधारकों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करना शामिल होता है।
      • उदाहरण के लिये शहरी विकास पर कार्य करने वाला कोई सिविल सेवक यह सुनिश्चित करने के लिये सामुदायिक सहभागिता की प्रक्रिया को प्राथमिकता दे सकता है कि बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ समावेशी हों तथा लोगों की जरूरतों और आकांक्षाओं को पूरा करें।
    • सराहनीय प्रयासों को पहचानें के साथ उन्हें प्रोत्साहन देना: सराहनीय प्रयासों को पहचानने के साथ उन्हें प्रोत्साहन देने से सकारात्मक कार्य संस्कृति को बढ़ावा मिल सकता है तथा इससे मनोबल बढ़ने के साथ सिविल सेवकों को अपनी भूमिकाओं के प्रति प्रतिबद्ध रहने के लिये प्रेरित किया जा सकता है।
      • उदाहरण के लिये पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कार्य करने वाला कोई सिविल सेवक सफल वृक्षारोपण पहल या अपशिष्ट निपटान अभियान को सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में मान सकता है।

    भगवद्गीता में इस बात पर बल दिया गया है कि प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करके और निस्वार्थ भाव से अपने कर्तव्यों का पालन करके, व्यक्ति आंतरिक शांति एवं इच्छाओं तथा लगाव के बंधन से मुक्ति प्राप्त कर सकता है। इसका समर्थन गांधी ने अपने ‘साधन बनाम साध्य’ नामक दर्शन में भी किया है।


    उत्तर: 5

    डिजिटल युग में जहाँ सूचना एक क्लिक में बहुत तीव्र गति से फैलती है, मीडिया की शक्ति और इसके ज़िम्मेदारी भरे उपयोग को कम नहीं आँका जा सकता है। सोशल मीडिया के आगमन के साथ, पत्रकारिता ने नए रूप ले लिये हैं, और महत्त्वाकांक्षी पत्रकारों को बड़ी दर्शक संख्या के सामने अपने विचार व्यक्त करने के रास्ते मिल गए हैं। लेकिन शक्ति के बढ़ने के साथ और भी बड़ी ज़िम्मेदारी आती है, जिसे कुछ लोग लोकप्रियता और वित्तीय लाभ के आकर्षण के कारण भूल सकते हैं।

    पुलिस अधीक्षक के रूप में, मैं एक समय के मेहनती पत्रकार से यूट्यूब के प्रभावशाली हस्ती में प्रेरित व्यक्ति द्वारा प्रचारित नफरत भरी सामग्री से प्रेरित एक दुखद घटना की जाँच करने के लिये प्रतिबद्ध हूँ।

    1. यहाँ कुछ प्रमुख नैतिक चिंताएँ इस प्रकार हैं:

    • मीडिया की ज़िम्मेदारी और हेरफेर: व्यक्तिगत लाभ के लिये विवादास्पद और विभाजनकारी विषयों का फायदा उठाने का ऋषभ का निर्णय मीडिया की ज़िम्मेदारी पर सवाल उठाता है। पत्रकारों एवंसामग्री निर्माताओं का कर्तव्य है कि वे जनता को सटीक और निष्पक्ष जानकारी प्रदान करें।
    • सनसनीखेज का उपयोग: वित्तीय लाभ के लिये सनसनीखेज और विवादास्पद मुद्दों का फायदा उठाने में ऋषभ का अपने बॉस के दृष्टिकोण का अनुकरण करना नैतिक रूप से समस्याग्रस्त है। सनसनीखेज़ता से गलत सूचना फैल सकती है और सामाजिक तनाव बढ़ सकता है।
    • नफरत और हिंसा को बढ़ावा देना: ऋषभ द्वारा जानबूझकर अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाकर नफरत भरा वीडियो बनाना और हिंसा भड़काना एक गंभीर नैतिक उल्लंघन है।
    • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग: जबकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है, यह ज़िम्मेदारियों के साथ भी आती है। ऋषभ की हरकतें इस स्वतंत्रता के दुरुपयोग को उजागर करती हैं.
    • नैतिक ज़िम्मेदारियों से अधिक वित्तीय लाभ को प्राथमिकता: अपनी नफरत भरी सामग्री के पीछे ऋषभ की प्राथमिक प्रेरणा वित्तीय लाभ और लोकप्रियता थी।
    • कानून प्रवर्तन ज़िम्मेदारियाँ: पुलिस अधीक्षक के रूप में, एक निष्पक्ष जाँच करना तथा यह सुनिश्चित करना कि ऋषभ सहित शामिल सभी दोषियों को उनकी स्थिति या प्रभाव की परवाह किये बिना न्याय के कटघरे में लाया जाए, मेरा नैतिक कर्तव्य है।

    2. इस घटना की जाँच कर रहे पुलिस अधीक्षक (एसपी) के रूप में, मेरी प्राथमिकता प्रभावित समुदाय और जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करना होगी। इस स्थिति से तुरंत और प्रभावी ढंग से निपटने के लिये मैं निम्नलिखित कदम उठाउँगा:

    त्वरित प्रतिक्रिया:

    • कानून और व्यवस्था बहाल करने के लिये प्रभावित क्षेत्र में अतिरिक्त पुलिस बल तैनात करना और आगे की हिंसा को रोकने के लिये कर्फ्यू लगाना।
    • दोषियों को गिरफ्तार करना: झूठी सूचना फैलाने और हिंसा भड़काने के लिये ज़िम्मेदार व्यक्तियों की पहचान करना और उन्हें गिरफ्तार करना। इसमें नफरत भरा वीडियो बनाने वाले ऋषभ और भीड़ को उकसाने में शामिल अन्य लोग भी शामिल हैं।
    • साक्ष्य एकत्रित करना: ऋषभ और इसमें शामिल अन्य लोगों के खिलाफ साक्ष्य एकत्रित करना, जिसमें वीडियो रिकॉर्डिंग, सोशल मीडिया पोस्ट और कोई अन्य प्रासंगिक डिजिटल या भौतिक साक्ष्य शामिल हैं।
    • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के साथ समन्वय करना: नफरत भरे वीडियो और हिंसा या घृणा को बढ़ावा देने वाली किसी भी अन्य सामग्री को हटाने के लिये सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के साथ काम करना।
    • झूठी खबर के स्रोत की जाँच करना: बच्चे के अपहरण के बारे में झूठी खबर की उत्पत्ति का पता लगाने के लिये गहन जाँच करना जहाँ से घटना शुरू हुई।
    • पीड़ितों को सहायता प्रदान करना: पीड़ितों के परिवारों और हिंसा से प्रभावित किसी भी व्यक्ति को सहायता और परामर्श सेवाएँ प्रदान करना।
    • निष्पक्ष कानूनी प्रक्रिया: न्याय और उचित प्रक्रिया के सिद्धांतों का पालन करते हुए घटना में शामिल लोगों के लिये एक निष्पक्ष और पारदर्शी कानूनी प्रक्रिया सुनिश्चित करना।

    दीर्घकालिक निवारक उपाय:

    • जन जागरूकता अभियान: समुदाय को घटना के बारे में सूचित करने और अफवाहों को दूर करने के लिये एक जन जागरूकता अभियान शुरू करना, जिसमें इस पर प्रतिक्रिया करने से पहले जानकारी को सत्यापित करने के महत्त्व पर ज़ोर दिया जाए।
    • सामुदायिक जुड़ाव: एकता को बढ़ावा देने और हिंसा को हतोत्साहित करने के लिये समुदाय के नेताओं, धार्मिक नेताओं और स्थानीय प्रभावशाली लोगों के साथ जुड़ना।
    • मीडिया संवेदीकरण: मीडिया को ज़िम्मेदार रिपोर्टिंग और संवेदनशील मुद्दों को सनसनीखेज बनाने के संभावित परिणामों के बारे में संवेदनशील बनाना।
    • ऑनलाइन गतिविधियों पर नज़र रखना: ऑनलाइन गतिविधियों पर नज़र रखने और हिंसा या घृणा भड़काने वाली किसी भी सामग्री के खिलाफ त्वरित कार्रवाई करने के लिये एक समर्पित टीम की स्थापना करना।
    • मीडिया चैनल के साथ सहयोग करना: इस मुद्दे को संबोधित करने के लिये ऋषभ के मीडिया चैनल के साथ समन्वय करना और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिये उचित उपाय करना।
    • ज़िम्मेदार ऑनलाइन व्यवहार पर ज़ोर देते हुए मीडिया साक्षरता और आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा देने के लिये शैक्षणिक संस्थानों के साथ काम करना।
    • नियमित सामुदायिक आउटरीच: सामुदायिक पुलिसिंग प्रयासों को मज़बूत करना और समुदाय की चिंताओं को समझने तथा उनका समाधान करने के लिये उनके साथ नियमित संवाद बनाए रखना।
    • रिपोर्टिंग तंत्र: घृणा फैलाने वाले भाषण और हिंसा के लिये उकसाने वाले कारकों का एक रिपोर्टिंग तंत्र स्थापित करना, जिससे नागरिकों को ऐसी घटनाओं की तुरंत रिपोर्ट करने के लिये प्रोत्साहित किया जा सके।

    3. इस मामले में, स्थिति को संबोधित करने और ऐसे हानिकारक परिणामों को रोकने में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तथा पारंपरिक मीडिया आउटलेट दोनों की महत्त्वपूर्ण ज़िम्मेदारी है। यहाँ प्रत्येक के लिये ज़िम्मेदारी के मुख्य बिंदु दिये गए हैं:

    सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म:

    • सामग्री की निगरानी करना: झूठी खबरों, नफरत फैलाने वाले भाषण और हिंसा भड़काने वाली सामग्री का तुरंत पता लगाने तथा इसे हटाने के लिये सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के पास मज़बूत सामग्री निगरानी प्रणाली होनी चाहिये।
    • रिपोर्टिंग तंत्र: उपयोगकर्त्ताओं को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये और समस्याग्रस्त सामग्री की रिपोर्ट करने का एक आसान तरीका प्रदान किया जाना चाहिये। रिपोर्ट की गई सामग्री की तुरंत समीक्षा की जानी चाहिये और यदि आवश्यक हो तो कार्रवाई की जानी चाहिये।
    • पारदर्शिता: सामग्री की दृश्यता और प्रचार को नियंत्रित करने वाले एल्गोरिदम पारदर्शी होने चाहिये और प्लेटफार्मों को नफरत, हिंसा या गलत सूचना को बढ़ावा देने वाली सामग्री को बढ़ावा देने से बचना चाहिये।
    • जागरूकता अभियान: सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को उपयोगकर्ताओं को झूठी जानकारी साझा करने और नफरत तथा हिंसा भड़काने के खतरों के बारे में शिक्षित करने के लिये जागरूकता अभियान चलाना चाहिये।

    पारंपरिक मीडिया आउटलेट:

    • नैतिक पत्रकारिता: पत्रकारों और मीडिया आउटलेट्स को रिपोर्टिंग में नैतिक सिद्धांतों का पालन करना चाहिये और सनसनीखेज तथा नफरत फैलाने से बचना चाहिये। उन्हें जानकारी प्रकाशित करने से पहले तथ्यों की जाँच करनी चाहिये और विवादास्पद मुद्दों पर संतुलित एवं सटीक विचार प्रस्तुत करने का प्रयास करना चाहिये।
    • ज़िम्मेदार रिपोर्टिंग: यदि कोई झूठी खबर सोशल मीडिया पर फैलती है, तो पारंपरिक मीडिया को उचित सत्यापन के बिना इसे बढ़ावा देने से बचना चाहिये। तथ्यों और सत्यापित जानकारी पर ध्यान केंद्रित करते हुए रिपोर्टिंग ज़िम्मेदारी से की जानी चाहिये।
    • जवाबदेही: मीडिया आउटलेट्स को उनके द्वारा प्रकाशित सामग्री की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिये और यदि आवश्यक हो, तो अनजाने में गलत जानकारी प्रसारित होने पर सुधार और उसकी वापसी जारी करनी चाहिये।

    "फर्जी समाचार और घृणास्पद भाषण से निपटने का एकमात्र तरीका मीडिया साक्षरता और आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा देना है- एंटोनियो गुटेरेस।" इससे झूठी खबरों के प्रसार और घृणास्पद भाषण की घटनाओं में कमी आ सकती है, जो एक स्वस्थ और अधिक एकजुट सामाजिक ताने-बाने में योगदान कर सकती है।


    उत्तर: 6

    दृष्टिकोण:

    • अपने उत्तर की शुरुआत डीपफेक तकनीक और उसके अनुप्रयोगों के परिचय से कीजिये।
    • डीपफेक द्वारा उत्पन्न चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और उनसे निपटने के उपाय सुझाएँ।
    • आगे बढ़ने की राह बताते हुए उत्तर समाप्त कीजिये।

    डीपफेक बेहतर जनरेटिव विधियों के माध्यम से चेहरे की बनावट में हेरफेर होते है। डीपफेक नकली घटनाओं की छवियां बनाने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता के एक रूप का उपयोग करते हैं जिसे डीप लर्निंग कहा जाता है, इसलिये इसे ‘डीपफेक’ नाम दिया गया है। प्रौद्योगिकी के कई अनुप्रयोग हैं जैसे शिक्षा, कला, स्वायत्तता और अभिव्यक्ति, संदेश का प्रवर्धन और उसकी पहुँच, डिजिटल पुनर्निर्माण और सार्वजनिक सुरक्षा, नवाचार। हालाँकि, इससे संबंधित कई गंभीर चिंताये भी हैं।

    डीपफेक द्वारा प्रस्तुत कुछ चुनौतियाँ:

    • गोपनीयता और सहमति का उल्लंघन: डीपफेक का उपयोग गैर-सहमति वाली पोर्नोग्राफी या ब्लैकमेल सामग्री बनाने के लिये किया जा सकता है, जिसमें बिना सोचे-समझे पीड़ितों की छवि और आवाज़ के जरिये ब्लैकमेल किया जा सकता है। इससे प्रभावित व्यक्तियों को मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक और प्रतिष्ठित नुकसान हो सकता है, साथ ही उनकी निजता और सहमति के अधिकार का भी उल्लंघन हो सकता है।
      • AI फर्म डीपट्रेस के अनुसार, सितंबर 2019 में ऑनलाइन पाए गए 15,000 डीपफेक वीडियोज़ में से 96% अश्लील थे और उनमें से 99% मशहूर महिला हस्तियों के चेहरे थे।
    • दुष्प्रचार और प्रचार: डीपफेक का उपयोग झूठी या विकृत जानकारी फैलाने और जनता की राय को प्रभावित करने के लिये किया जा सकता है, खासकर राजनीति, चुनाव और राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में। डीपफेक के द्वारा फर्जी खबरों धोखाधड़ी या गलत सूचना अभियानों को चलाया जा सकता है जो पत्रकारिता और सार्वजनिक संस्थानों की विश्वसनीयता को कमज़ोर कर सकते हैं, साथ ही हिंसा या नफरत को भी बढ़ा सकते हैं।
      • हाल ही में, मार्क ज़ुकरबर्ग का एक वीडियो इंटरनेट पर सामने आया, जिसमें वह "अरबों लोगों के चुराए गए डेटा पर पूर्ण नियंत्रण" होने का दावा करते हुए दिखाई दे रहे थे, यह डीपफेक तकनीक द्वारा बनाया गया एक नकली वीडियो था।
    • विश्वास और जवाबदेही का क्षरण: डीपफेक साक्ष्य एवं सत्यापन के स्रोत के रूप में दृश्य मीडिया में विश्वास और आत्मविश्वास को नष्ट कर सकते हैं। डीपफेक असली और नकली सामग्री के बीच अंतर करना मुश्किल बना सकते हैं एवं उन लोगों के लिये प्रशंसनीय पहचान बना सकते हैं जो उजागर हैं या गलत काम करने के आरोपी हैं। .
    • नैतिक चुनौतियाँ: डीपफेक कानून, शिक्षा, स्वास्थ्य और मनोरंजन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में प्रामाणिकता और जवाबदेही के कानूनी और नैतिक मानकों को भी चुनौती दे सकते हैं।

    आगे की राह:

    • AI-संचालित सोशल मीडिया फैक्ट-चेकिंग: AI-संचालित एल्गोरिदम और टूल में निवेश करने के लिये सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को संलग्न करें जो स्वचालित रूप से डीपफेक सामग्री का पता लगा सकते हैं तथा संभावित हेरफेर को चिह्नित कर सकते हैं।
      • तथ्य-जाँच करने वाले संगठनों के साथ सहयोग करें और डीपफेक के माध्यम से गलत जानकारी फैलाने वाले के खिलाफ त्वरित कार्रवाई करने के लिये सार्वजनिक भागीदारी की शक्ति का उपयोग कीजिये।
    • ब्लॉकचेन-आधारित डीपफेक सत्यापन: डिजिटल मीडिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग महत्त्वपूर्ण है।
      • यह विकेन्द्रीकृत दृष्टिकोण व्यक्तियों को खबर की उत्पत्ति और उसमें संशोधन के इतिहास का पता लगाने की अनुमति देता है, दुर्भावनापूर्ण डीपफेक के निर्माण और प्रसार को हतोत्साहित करता है।
    • डीपफेक प्रभाव शमन नीति: डीपफेक से प्रभावित व्यक्तियों और संगठनों की मदद के लिये एक कोष स्थापित करें। साइबर बीमा योजनाओं का भी पता लगाया जा सकता है।
    • डीपफेक जवाबदेही अधिनियम (Deepfake Accountability Act - DAA): DAA को डीपफेक द्वारा उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने और उनके निर्माण, वितरण और नियंत्रण में जवाबदेही सुनिश्चित करने के उद्देश्य से पेश किया जा सकता है।
    • दंड और जन जागरूकता अभियान: कानूनों को बेईमान अभिनेताओं को दंडित करना चाहिये और व्यक्तियों को उनके डिजिटल प्रतिनिधित्व में हेरफेर से बचाना चाहिये।
      • डीपफेक के प्रसार से निपटने के लिये वैज्ञानिक और डिजिटल डोमेन में सार्वजनिक जागरूकता और साक्षरता महत्त्वपूर्ण है।

    डीपफेक एक वैश्विक चुनौती है जिसके लिये विभिन्न देशों और क्षेत्रों से समन्वित एवं प्रभावी प्रतिक्रिया की आवश्यकता है। भारत डीपफेक से निपटने के लिये अन्य देशों द्वारा अपनाई गई रणनीतियों से सीख सकता है। संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा डीपफेक तकनीक का मुकाबला करने के लिये एक समर्पित इकाई की स्थापना महत्त्वपूर्णअंतर्दृष्टि प्रदान कर सकती है। इसके अतिरिक्त, चीन का व्यापक विनियमन, जो स्पष्ट लेबलिंग, पता लगाने की क्षमता और कानूनों एवं सार्वजनिक नैतिकता के पालन पर ज़ोर देता है, एक अद्वितीय परिप्रेक्ष्य प्रदान कर सकता है। विभिन्न दृष्टिकोण अपनाने से डिजिटल युग में दृश्य मीडिया की अखंडता को बनाए रखने में मदद मिल सकती है।


    उत्तर: 7

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • सी वाटर राइस या लवण-सहिष्णु चावल का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • इसकी खेती से होने वाले संभावित लाभों और इससे जुड़ी चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
    • आगे की राह बताते हुए उत्तर समाप्त कीजिये।

    सी वाटर राइस , जिसे नमक-सहिष्णु चावल के रूप में भी जाना जाता है, चावल की एक किस्म है जो लवणीय-क्षारीय मृदा या उच्च लवणता वाले पानी में उग सकता है। समुद्री जल में चावल की खेती तटीय क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा एवं लचीलेपन को बढ़ाने के लिये एक संभावित समाधान है, खासकर जलवायु परिवर्तन और समुद्र के स्तर में वृद्धि के संदर्भ में। FAO की विश्व स्तर पर महत्त्वपूर्ण कृषि विरासत प्रणाली (GIAHS) ने अपने कार्यक्रम के तहत चावल की कई समुद्री फसलों को उनके महत्त्व प्रदर्शित करने के लिये मान्यता दी है। हालाँकि, समुद्री जल में चावल की खेती को कुछ चुनौतियों और सीमाओं का भी सामना करना पड़ता है, जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

    भारत में समुद्री जल से चावल की खेती के कुछ संभावित लाभ:

    • खाद्य उत्पादन में वृद्धि: अनुमान के अनुसार, भारत में लगभग 6.74 मिलियन हेक्टेयर लवणीय भूमि है, सी वाटर राइस प्रति हेक्टेयर लगभग 4.5 टन का उत्पादन कर सकता है, जो भारत में पारंपरिक चावल की औसत उपज से तुलनात्मक रूप से बहुत अधिक है।
      • वित्तीय वर्ष 2022 में भारत में चावल की औसत उपज लगभग 2.8 टन प्रति हेक्टेयर होने का अनुमान लगाया गया था।
      • इसलिये, सी वाटर राइस संभावित रूप से प्रति वर्ष 6.75 मिलियन टन चावल उत्पादन बढ़ा सकता है, जो लगभग 66 मिलियन लोगों को खिलाया जा सकता है।
    • जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन बढ़ाना: सी वाटर राइस बदलती जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल हो सकता है और खारे पानी के द्वारा तटीय क्षेत्रों में अतिक्रमण, बाढ़, सूखा एवं कीट संक्रमण के जोखिमों का सामना कर सकता है। सी वाटर राइस 2.5% तक लवणता के स्तर को सहन कर सकता है, जो समुद्री जल में पाई जाने वाली लवणता के आधे के बराबर है। सी वाटर राइस जलमग्न या शुष्क परिस्थितियों में भी उग सकता है और बीमारियों तथा कीड़ों का प्रतिरोध कर सकता है।
      • इसके अलावा, सी वाटर राइस मीथेन उत्पादन को कम करके और कार्बन पृथक्करण को बढ़ाकर धान के खेतों से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम कर सकता है।
    • आजीविका और पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार: सी वाटर राइस तटीय क्षेत्रों में किसानों और पर्यावरण के लिये कई लाभ प्रदान कर सकता है। यह सिंचाई, उर्वरक और कीटनाशकों की इनपुट लागत को कम कर सकता है, साथ ही अनाज और उप-उत्पादों को बेचने से आय में वृद्धि कर सकता है।
      • इसके अलावा, सी वाटर राइस तटीय पारिस्थितिक तंत्र में मृदा की गुणवत्ता, जल संरक्षण और जैव विविधता में सुधार कर सकता है।
    • अन्य अवसरों का सृजन : सी वाटर राइस चावल-मछली या चावल-झींगा खेती जैसी एकीकृत कृषि प्रणालियों के लिये भी अवसर पैदा कर सकता है, जो खाद्य स्रोतों में विविधता ला सकता है और पोषण सुरक्षा बढ़ा सकता है।

    भारत में समुद्री जल से चावल की खेती से संबंधित कुछ चुनौतियाँ और सीमाएँ:

    • उपयुक्त किस्मों और बीजों का अभाव: सी वाटर राइस अपेक्षाकृत एक कम लोकप्रिय तकनीक है जिसके उत्पादन और विभिन्न क्षेत्रों तथा स्थितियों के लिये उपयुक्त किस्मों का चयन करने के लिये निरंतर अनुसंधान एवं विकास की आवश्यकता होती है। वर्तमान में, भारत में सी वाटर राइस की केवल कुछ ही किस्में उपलब्ध हैं, जैसे कि केरल की पोक्कली, जो एक पारंपरिक किस्म है जिसकी उपज और गुणवत्ता कम है।
    • जागरूकता और स्वीकृति का अभाव: भारत में समुद्री जल में चावल की खेती किसानों और उपभोक्ताओं द्वारा व्यापक रूप से ज्ञात या प्रचलित नहीं है। किसानों,कार्यकर्ताओं, नीति निर्माताओं एवं अन्य हितधारकों के बीच सी वाटर राइस की खेती के लाभों और तरीकों के बारे में जागरूकता तथा जानकारी की कमी है।
    • बुनियादी ढाँचे और नीतियों का अभाव: समुद्री जल में चावल की खेती के लिये भारत में इसे अपनाने और विस्तार करने के लिये पर्याप्त बुनियादी ढाँचे एवं नीतियों की आवश्यकता है।
    • कई जलवायु चुनौतियों से प्रभावित: भारत में तटीय लवणीय मृदा कई अजैविक प्रक्रियाओं से प्रभावित होती है, जैसे उच्च मानसून वर्षा, खराब मृदा और पानी की गुणवत्ता तथा तटीय तूफान एवं चक्रवात जैसी प्राकृतिक मौसम संबंधी प्रतिकूलताएँ। ये कारक इन क्षेत्रों में कृषि को अत्यधिक गैर-लाभकारी, जटिल और जोखिमपूर्ण बनाते हैं।
    • उपयुक्त कृषि संबंधी प्रथाओं का अभाव: सी वाटर राइस की खेती के लिये पारंपरिक चावल की खेती की तुलना में विभिन्न प्रबंधन प्रथाओं, जैसे कि सीड प्राइमिंग, मृदा में संशोधन, जल प्रबंधन, पोषक तत्व प्रबंधन, खरपतवार नियंत्रण और कीट एवं रोग प्रबंधन की आवश्यकता होती है।
    • समन्वय का अभाव: भारत में सी वाटर राइस की खेती का संभावित क्षेत्र लगभग 3 मिलियन हेक्टेयर है, जो भारत में तटीय लवणीय मृदा का क्षेत्र है। हालाँकि यह क्षेत्र नौ राज्यों में वितरित हैं, जिससे सी वाटर राइस कार्यक्रमों के समन्वय और कार्यान्वयन में कठिनाइयाँ आ सकती हैं।
    • अन्य खतरे: समुद्री जल से चावल की खेती करने से भारत के तटीय क्षेत्रों में आर्सेनिक संदूषण, लवणता और जल प्रदूषण का खतरा बढ़ सकता है।

    समुद्री जल से चावल की खेती करने से भारत के तटीय क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा और अनुकूलन बढ़ाने की काफी संभावनाएँ हैं। हालाँकि, इसे कुछ चुनौतियों एवं सीमाओं का भी सामना करना पड़ता है जिन्हें अनुसंधान, विकास, प्रचार, समर्थन और विनियमन के माध्यम से दूर करने की आवश्यकता है। केरल ने चावल उत्पादन में अनुसंधान के लिये उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना की है, फिर भी इस क्षेत्र में व्यापक अनुसंधान एवं विकास की आवश्यकता है। यदि इसे टिकाऊ एवं भागीदारीपूर्ण तरीके से लागू किया जाए तो समुद्री जल से चावल की खेती मानव और प्रकृति दोनों के लिये लाभकारी हो सकती है।


    उत्तर: 8

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • सामाजिक सद्भाव और राष्ट्रीय एकता के लिये खतरे के रूप में सांप्रदायिक हिंसा का एक संक्षिप्त विवरण प्रदान कीजिये।
    • कानून और व्यवस्था बनाए रखने, नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने एवं कानून के शासन को बनाए रखने में कानून प्रवर्तन एजेंसियों की भूमिका पर चर्चा कीजिये।
    • सामुदायिक सहभागिता एवं उसके सिद्धांतों को परिभाषित कीजिये और सांप्रदायिक हिंसा को रोकने तथा प्रबंधित करने में सामुदायिक सहभागिता की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर चर्चा कीजिये।
    • इन संयुक्त प्रयासों के परिणामस्वरूप अधिक शांतिपूर्ण और समावेशी समाज की कल्पना करते हुए, आशावादी दृष्टिकोण के साथ निष्कर्ष दीजिये।

    सांप्रदायिक हिंसा भारत की सामाजिक समरसता और राष्ट्रीय एकता के लिये गंभीर खतरा है। इससे न केवल जान-माल का नुकसान होता है, बल्कि देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने और लोकतांत्रिक मूल्यों को भी नुकसान पहुंचता है। सांप्रदायिक हिंसा अक्सर धार्मिक असहिष्णुता, घृणास्पद भाषण, राजनीतिक लामबंदी, आर्थिक प्रतिस्पर्धा और ऐतिहासिक शिकायतों जैसे कारकों से शुरू होती है, हाल की मेवात घटना ऐसी हिंसा का ज्वलंत उदाहरण है।

    कानून प्रवर्तन एजेंसियां कानून और व्यवस्था बनाए रखने, नागरिकों के अधिकारों तथा सुरक्षा की रक्षा करने एवं कानून का शासन लागू करने के लिये ज़िम्मेदार हैं। उन्हें सांप्रदायिक हिंसा को रोकने और प्रबंधित करने के लिये विभिन्न कार्य करने होते हैं, जैसे:

    • स्थिति की निगरानी करना एवं संघर्ष और उकसावे के संभावित स्रोतों पर खुफिया जानकारी इकट्ठा करना।
    • हिंसा को बढ़ने से रोकने के लिये निवारक उपाय करना, जैसे कर्फ्यू लगाना, जुलूसों पर प्रतिबंध लगाना, उपद्रवियों को गिरफ्तार करना और अवैध हथियार जब्त करना।
    • प्रभावी प्रतिक्रिया और संचार सुनिश्चित करने के लिये नागरिक प्रशासन, न्यायपालिका, मीडिया, नागरिक समाज एवं धार्मिक नेताओं जैसी अन्य एजेंसियों तथा हितधारकों के साथ समन्वय करना।
    • परस्पर विरोधी पक्षों से निपटने में निष्पक्षता और व्यवसायिकता बनाए रखना तथा किसी भी पूर्वाग्रह या भेदभाव से बचना।
    • हिंसा को नियंत्रित करने के लिये उचित बल का प्रयोग करना और मानक संचालन प्रक्रियाओं एवं मानवाधिकार मानदंडों का पालन करना।
    • पीड़ितों के लिए राहत और पुनर्वास की व्यवस्था करना तथा प्रभावित क्षेत्रों में सामान्य स्थिति बनाना।
    • हिंसा के मामलों की जाँच करना और अपराधियों को न्याय के कटघरे में लाना।

    सामुदायिक सहभागिता समुदाय के सदस्यों को उन मुद्दों की पहचान करने और उनका समाधान करने में शामिल करने की प्रक्रिया है जो उन्हें प्रभावित करते हैं। यह भागीदारी, संवाद, विश्वास और सशक्तिकरण के सिद्धांतों पर आधारित है। सामुदायिक भागीदारी सांप्रदायिक हिंसा को रोकने और प्रबंधित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, जैसे:

    • आपसी सम्मान, समझ और सहिष्णुता को बढ़ावा देकर विभिन्न समूहों के बीच सामाजिक एकता एवं सद्भाव को बढ़ावा देना।
    • शांतिपूर्ण एवं रचनात्मक ढंग से संघर्षों से निपटने के लिये समुदाय के लचीलेपन और क्षमता का विकास करना।
    • सांप्रदायिक हिंसा के कारणों,परिणामों तथा इसे रोकने एवं प्रतिक्रिया देने के तरीकों पर जागरूकता एवं शिक्षा प्रदान करना।
    • सांप्रदायिक घृणा और हिंसा को बढ़ावा देने वाली चरमपंथी विचारधाराओं एवं प्रचार को चुनौती देने के लिये वैकल्पिक आख्यान एवं प्रति-आख्यान विकसित करना।
    • हिंसा के खिलाफ सामूहिक कार्रवाई करने के लिये समुदाय को एकजुट करना, जैसे शांति समितियां बनाना, अंतर-धार्मिक संवाद आयोजित करना, शांति रैलियां आयोजित करना और नफरत फैलाने वाले भाषणों के खिलाफ अभियान शुरू करना।
    • मनोवैज्ञानिक-सामाजिक सहायता, कानूनी सहायता, आजीविका सहायता एवं वकालत प्रदान करके सांप्रदायिक हिंसा के पीड़ितों और बचे लोगों का समर्थन करना।

    सांप्रदायिक हिंसा एक जटिल घटना है जिसे रोकने और प्रबंधित करने के लिये समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है। कानून प्रवर्तन एजेंसियां और सामुदायिक सहभागिता इस दृष्टिकोण के दो महत्त्वपूर्ण स्तंभ हैं। उन्हें समाज में शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये समन्वित तरीके से मिलकर काम करना होगा।


    उत्तर: 9

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण को संक्षिप्त रूप से बताते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लाभों और चुनौतियों पर चर्चा करते हुए इस संदर्भ में कुछ उपाय बताइये।
    • आगे की राह बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।

    रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण भारत के बाहर व्यापार, निवेश, रिज़र्व और अन्य उद्देश्यों के लिये रुपए के उपयोग एवं स्वीकृति को बढ़ाने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है। रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने से भारत को कई लाभ हो सकते हैं। हालाँकि इसमें कई चुनौतियाँ और जोखिम भी शामिल हैं। भारत अपने व्यापारिक साझेदारों के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौतों के लिये रुपए के उपयोग पर विचार कर रहा है, उदाहरण के लिये रूसी तेल प्रतिबंध के बीच, भारत ने तेल आयात के लिये रुपए-रूबेल समझौते को अपनाया।

    रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लाभ:

    • विदेशी मुद्राओं और स्विफ्ट जैसी विदेशी लेनदेन प्रणाली पर निर्भरता कम करना:
      • रूपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और वित्तीय लेनदेन के लिये अमेरिकी डॉलर जैसी विदेशी मुद्राओं पर भारत की निर्भरता कम हो जाएगी।
      • इससे भारत की आर्थिक संप्रभुता बढ़ेगी और मुद्रा में उतार-चढ़ाव का जोखिम कम होगा।
    • वैश्विक व्यापार में वृद्धि:
      • रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण हितधारकों को सीधे रुपए में लेनदेन की अनुमति देकर सहज अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की सुविधा प्रदान कर सकता है।
      • इससे मुद्रा रूपांतरण की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी, लेनदेन लागत कम हो जाएगी और सीमा पार व्यापार सरल हो जाएगा।
    • उन्नत वित्तीय एकीकरण:
      • यह विदेशी निवेशकों को आकर्षित करेगा और पूंजी प्रवाह को बढ़ावा देगा, जिससे भारतीय वित्तीय बाज़ारों में निवेश के अधिक अवसर एवं तरलता में वृद्धि होगी।
    • बेहतर मौद्रिक नीति प्रभावशीलता:
      • व्यापक अंतर्राष्ट्रीय पहुँच के साथ, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) मुद्रास्फीति को प्रबंधित करने और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिये विनिमय दर को एक उपकरण के रूप में उपयोग कर सकता है।
      • यह मौद्रिक स्थितियों के प्रबंधन और आर्थिक चुनौतियों का जवाब देने में अधिक लचीलापन प्रदान करता है।
    • क्षेत्रीय प्रभाव का मज़बूत होना:
      • विश्व स्तर पर स्वीकृत रुपया भारत के क्षेत्रीय प्रभाव को मज़बूत कर सकता है और इसे एशिया में एक प्रमुख आर्थिक खिलाड़ी के रूप में स्थापित कर सकता है।
      • यह क्षेत्र के भीतर व्यापार और निवेश को बढ़ावा देगा, आर्थिक साझेदारी एवं सहयोग को आधार देगा।
    • वित्तीय सेवाओं का विकास:
      • जैसे-जैसे रुपए को अंतर्राष्ट्रीय स्वीकृति मिलेगी, रुपए-मूल्य वाले लेनदेन से जुड़ी वित्तीय सेवाओं, जैसे व्यापार वित्तपोषण, मुद्रा हेजिंग और निपटान सेवाओं में वृद्धि देखी जाएगी।

    रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण की चुनौतियाँ:

    • विनिमय दर अस्थिरता:
      • रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण इसके विनिमय दर में अधिक अस्थिरता को उजागर करता है। रुपए के मूल्य में उतार-चढ़ाव व्यापार प्रतिस्पर्धात्मकता, विदेशी निवेश प्रवाह और वित्तीय बाज़ार स्थिरता को प्रभावित कर सकता है।
      • इससे करेंसी में हेराफेरी का भी खतरा है।
    • पूंजी पलायन और वित्तीय स्थिरता:
      • यदि निवेशकों का मुद्रा पर से भरोसा उठ जाता है या प्रतिकूल आर्थिक स्थितियों की आशंका होती है तो रुपए को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों के लिये खोलने से पूंजी पलायन हो सकता है।
      • इससे देश के विदेशी मुद्रा भंडार पर तनाव पड़ सकता है, वित्तीय स्थिरता प्रभावित हो सकती है और मौद्रिक नीति प्रबंधन के लिये चुनौतियाँ पैदा हो सकती हैं।
    • पूंजी नियंत्रण:
      • भारत में अभी भी पूंजी नियंत्रण लागू है जो विदेशियों की भारतीय बाज़ारों में निवेश और व्यापार करने की क्षमता को सीमित करता है।
      • इन प्रतिबंधों के कारण रुपए का अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में व्यापक रूप से उपयोग करना कठिन हो गया है।
    • प्रतिस्पर्धी मुद्राएँ:
      • रुपए को अमेरिकी डॉलर, यूरो और येन जैसी स्थापित अंतर्राष्ट्रीय मुद्राओं से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है, जिन्हें व्यापक स्वीकृति एवं तरलता प्राप्त है।
    • आत्मविश्वास और धारणा:
      • नीतिगत अनिश्चितता, पारदर्शिता की कमी या भू-राजनीतिक जोखिमों की कोई भी धारणा अंतर्राष्ट्रीयकरण प्रक्रिया में बाधा डाल सकती है।

    कुछ उपाय जो भारत अपना सकता है:

    • रुपए को अधिक स्वतंत्र रूप से परिवर्तनीय बनाना:
      • वर्ष 2060 तक पूर्ण परिवर्तनीयता प्राप्त करने के लक्ष्य के साथ रुपए को अधिक स्वतंत्र रूप से परिवर्तनीय बनाया जाना चाहिये। इससे विदेशी निवेशकों को आसानी से रुपया खरीदने और बेचने की अनुमति मिलेगी।
    • गहन बॉन्ड बाज़ार का अनुसरण करना:
      • विदेशी निवेशकों और भारतीय व्यापार भागीदारों को रुपए में अधिक निवेश विकल्प उपलब्ध कराने में सक्षम बनाना, जिससे इसका अंतर्राष्ट्रीय उपयोग संभव हो सके।
    • निर्यातकों/आयातकों को रुपए में लेनदेन के लिये प्रोत्साहित करना:
      • रुपए के आयात/निर्यात लेनदेन के लिये व्यापार निपटान औपचारिकताओं को अनुकूलित करने से काफी मदद मिलेगी।
    • अतिरिक्त मुद्रा विनिमय समझौते पर हस्ताक्षर करना:
      • श्रीलंका की तरह, भारत को डॉलर जैसी आरक्षित मुद्रा का सहारा लिये बिना, रुपए में व्यापार और निवेश लेनदेन निपटाने की अनुमति देना।
    • मुद्रा प्रबंधन स्थिरता सुनिश्चित करना और विनिमय दर व्यवस्था में सुधार करना:
      • अवमूल्यन या विमुद्रीकरण जैसे अचानक या बड़े बदलावों से बचें जो आत्मविश्वास को प्रभावित कर सकते हैं।

    रूपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देने, विदेशी मुद्राओं पर निर्भरता कम करने एवं वैश्विक प्रभाव बढ़ाने के रूप में भारत के लिये महत्त्वपूर्ण है। चीन के अनुभव से सीखते हुए, भारत को चरणबद्ध दृष्टिकोण लागू करना चाहिये, जैसे व्यापार और निवेश में रूपए का उपयोग बढ़ाना, मुद्रा विनिमय व्यवस्था स्थापित करना और एक अपतटीय बॉन्ड बाज़ार विकसित करना। हालाँकि, भारत को आर्थिक विकास, खुलेपन, संस्थानों और भू-राजनीति सहित अपने अद्वितीय संदर्भ पर विचार करना चाहिये तथा अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों का पालन करते हुए एक व्यावहारिक एवं अनुकूलनीय रणनीति अपनानी चाहिये।


    उत्तर: 10

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत में एक गंभीर पर्यावरणीय चुनौती के रूप में शहरी बाढ़ का परिचय देते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
    • शहरी बाढ़ में योगदान देने वाले कारकों (प्राकृतिक और मानवजनित) पर चर्चा कीजिये। साथ ही शहरी बाढ़ से संबंधित सरकारी पहलों और उपायों पर भी चर्चा कीजिये।
    • आगे की राह बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।

    भारत में शहरी बाढ़ एक बार-बार होने वाली और गंभीर समस्या बन गई है, जिससे कई बड़े एवं महानगरीय शहर प्रभावित हुए हैं। जुलाई 2022 में अहमदाबाद भारी बारिश से जलमग्न हो गया था। अक्तूबर 2020 में हैदराबाद को अभूतपूर्व वर्षा स्तर का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप लगभग 50 लोगों की मौत हुई और 5000 करोड़ रुपए से अधिक की संपत्ति नष्ट हो गई। कई बार दिल्ली, मुंबई, पटना और पुणे जैसे शहरों में भी बाढ़ आ गई, जिससे वहाँ कई दिनों तक सब कुछ बाधित रहा। भारत में वर्ष 2020 की बाढ़ के दौरान, कुल आर्थिक नुकसान USD 7.5 बिलियन (52,500 करोड़ रुपए) का था।

    भारत में शहरी बाढ़ में योगदान देने वाले कारक प्राकृतिक और मानवजनित दोनों हैं।

    प्राकृतिक कारक:

    • अधिक वर्षा: भारत में मानसून के दौरान भारी वर्षा होती है (विशेषकर तटीय और पहाड़ी क्षेत्रों में)। वर्षा की तीव्रता और अवधि में जलवायु परिवर्तन के कारण वृद्धि हुई है, जिससे अधिक जल अपवाह होता है।
    • तूफानी लहरें और चक्रवात: तटीय शहर तूफानी लहरों तथा चक्रवाती दबावों के प्रति संवेदनशील होते हैं जो उच्च ज्वार और लहरों का कारण बनते हैं, जिसके परिणामस्वरूप तटीय बाढ़ आती है।
    • भू-जल स्तर में गिरावट: घरेलू और औद्योगिक उद्देश्यों के लिये भू-जल के अत्यधिक दोहन ने जल स्तर को कम कर दिया है, जिससे मृदा की प्राकृतिक भंडारण क्षमता कम हो गई है तथा अपवाह में वृद्धि हुई है।
    • बर्फ का अधिक पिघलना: हिमालय क्षेत्र में बर्फ और ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने के कारण अचानक बाढ़ आती है, जो निचले जलग्रहण क्षेत्रों को प्रभावित करती है।

    मानवजनित कारक:

    • जल निकासी क्षेत्रों का अतिक्रमण: कई शहरी क्षेत्रों में झीलों, आर्द्रभूमि, नदियों तथा नालों जैसे प्राकृतिक जल निकायों पर अतिक्रमण हुआ है, जिससे उनकी भंडारण और वहन क्षमता कम हो गई है। ये जल निकाय अतिरिक्त जल को अवशोषित करके बाढ़ शमन के लिये प्राकृतिक बफर के रूप में कार्य करते हैं।
    • जलवायु परिवर्तन: ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि ने वर्षा के प्रतिरूप को बदल दिया है और इससे तापमान में वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप बाढ़ तथा सूखे जैसी लगातार एवं तीव्र चरम मौसम की घटनाएँ अधिक होती हैं।
    • जल निकायों का प्रदूषण: जल निकायों में अनुपचारित सीवेज और औद्योगिक अपशिष्टों के निर्वहन से उनकी गुणवत्ता में गिरावट आई है तथा उनकी वहन क्षमता कम हो गई है। नालियों और चैनलों में ठोस अपशिष्ट तथा मलबे के जमा होने से भी जल का प्रवाह बाधित होता है।
    • अवैध खनन गतिविधियाँ: नदियों में रेत खनन गतिविधियों ने प्राकृतिक तल को विकृत कर दिया है, जिससे मृदा का कटाव हो रहा है एवं नदी की जल धारण क्षमता कम हो गई है।
    • बाँधों से अनियोजित और बिना सूचना के जल छोड़ना: उचित चेतावनी या डाउनस्ट्रीम अधिकारियों के साथ समन्वय के बिना बाँधों से अचानक जल छोड़े जाने से सूरत, पुणे, चेन्नई जैसे आदि कई शहरों में आपदा की स्थितियाँ बनी हैं।

    सरकार ने इस मुद्दे के समाधान के लिये कुछ उपाय किये हैं जैसे: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने वर्ष 2010 में शहरी बाढ़ प्रबंधन पर दिशानिर्देश जारी किये हैं जो निवारण, तैयारी, प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति के लिये एक रूपरेखा प्रदान करते हैं।

    • केंद्रीय जल आयोग (CWC) ने देश भर में बाढ़ पूर्वानुमान और चेतावनी स्टेशनों का एक नेटवर्क स्थापित किया है, जो जल स्तर तथा वर्षा पर वास्तविक समय पर जानकारी प्रदान करता है।
    • आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) ने स्मार्ट सिटीज़ मिशन लॉन्च किया है, जिसका उद्देश्य बाढ़ जैसी आपदाओं के प्रति शहरों का लचीलापन बढ़ाने सहित दीर्घकालिक एवं समावेशी शहरी विकास को बढ़ावा देना है।

    हालाँकि ये उपाय पर्याप्त नहीं हैं। इस दिशा में अधिक समग्र और एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता है जैसे:

    • केंद्र, राज्य तथा स्थानीय सरकारों, शहरी स्थानीय निकायों, आपदा प्रबंधन एजेंसियों, नागरिक समाज संगठनों और समुदायों जैसे विभिन्न हितधारकों के बीच संस्थागत समन्वय एवं क्षमता को मज़बूत करना।
    • शहरी बाढ़ के जल विज्ञान, मौसम विज्ञान, भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक पहलुओं के वैज्ञानिक डेटा संग्रह एवं विश्लेषण को बढ़ावा देना।
    • जल-संवेदनशील शहरी डिजाइन की अवधारणा को लागू करना, जिसका उद्देश्य वर्षा जल की पारगम्यता, प्रतिधारण, भंडारण, शुद्धिकरण और पुन: उपयोग को बढ़ाकर शहरों को बाढ़ के प्रति अधिक लचीला बनाना है।
    • शिक्षा, संचार और सोशल मीडिया के माध्यम से बाढ़ जोखिम न्यूनीकरण तथा प्रबंधन में नागरिकों की भागीदारी एवं जागरूकता को बढ़ावा देना।
    • बाढ़ क्षेत्र ज़ोनिंग, भूमि उपयोग योजना, बिल्डिंग कोड, पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन, अपशिष्ट प्रबंधन और आर्द्रभूमि संरक्षण के लिये कानूनी तथा नियामक ढाँचे को लागू करना।

    शहरी बाढ़ भारत के शहरी विकास और कल्याण के लिये एक गंभीर खतरा है। इस पर सभी हितधारकों को तत्काल ध्यान देने और कार्रवाई करने की आवश्यकता है। शहरी बाढ़ प्रबंधन के लिये एक व्यापक और भागीदारीपूर्ण दृष्टिकोण अपनाकर भारत, शहरी बाढ़ के प्रतिकूल प्रभावों को कम कर सकता है तथा अपने शहरों की अनुकूलन क्षमता बढ़ा सकता है।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2