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दिवस-22. नोलन समिति द्वारा सार्वजनिक जीवन से संबंधित सुझाए गए सात सिद्धांत 21वीं सदी में कितने प्रासंगिक हैं? विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)

10 Aug 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 4 | सैद्धांतिक प्रश्न

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

परिचय:

  • नोलन समिति के सात सिद्धांतों का परिचय देते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
  • वर्तमान में इसकी प्रासंगिकता पर चर्चा कीजिये।
  • तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

सार्वजनिक जीवन के सात सिद्धांत (जिन्हें नोलन सिद्धांतों के रूप में भी जाना जाता है) वर्ष 1995 में यूके में सार्वजनिक जीवन के मानकों पर गठित समिति द्वारा सुझाए गए थे। इनमें निःस्वार्थता, सत्यनिष्ठा, निष्पक्षता, जवाबदेही, खुलापन, ईमानदारी और नेतृत्व क्षमता शामिल हैं। हालाँकि इन्हें यूके के संदर्भ में तैयार किया गया था लेकिन इनकी प्रासंगिकता 21वीं सदी में भी है तथा ये भारत सहित विभिन्न देशों में लोक सेवकों और अधिकारियों पर लागू होते हैं।

नोलन के सिद्धांतों की प्रासंगिकता:

  • निःस्वार्थता- सार्वजनिक अधिकारियों/नौकरशाहों को लोकहित के संदर्भ में निर्णय लेना चाहिये। उन्हें अपने व अपने परिवार या अपने दोस्तों के लिये वित्तीय या अन्य भौतिक लाभ हेतु निर्णय नहीं लेना चाहिये।
    • उदाहरण: वर्ष 2010 में 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले से कुछ सार्वजनिक अधिकारियों में निःस्वार्थता के मूल्य की कमी उजागर हुई यह अधिकारी व्यक्तिगत लाभ के लिये भ्रष्ट आचरण में शामिल थे, जिससे सरकारी खजाने को काफी नुकसान हुआ था।
  • सत्यनिष्ठा- नौकरशाहों को ऐसे किसी वित्तीय या अन्य दायित्व के अधीन बाहरी व्यक्तियों या संगठनों के तहत नहीं होना चाहिये जिससे उनके आधिकारिक कर्त्तव्य प्रभावित हों।
    • उदाहरण: भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारी, दुर्गा शक्ति नागपाल ने राजनीतिक दबाव और खतरों के बावजूद, उत्तर प्रदेश में अवैध रेत खनन गतिविधियों के खिलाफ ईमानदारी का प्रदर्शन किया।
  • वस्तुनिष्ठता- सार्वजनिक अधिकारियों को विभिन्न कार्यों में पारदर्शिता और वस्तुनिष्ठता पर आधारित निर्णय लेने चाहिये।
    • उदाहरण: केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करने और कार्यवाही में निष्पक्षता सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • जवाबदेही- नौकरशाह अपने निर्णयों और कार्यों के लिये जनता के प्रति जवाबदेह होते हैं एवं उन्हें अपने कार्यालय को भी जाँच/समीक्षा के अधीन रखना चाहिये।
    • उदाहरण: वर्ष 2018 में भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने राफेल लड़ाकू विमान सौदे पर एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें रक्षा खरीद में जवाबदेही एवं पारदर्शिता की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।
  • खुलापन- नौकरशाहों के सभी निर्णयों और कार्यों में खुलापन होना चाहिये। उन्हें अपने निर्णयों का स्पष्ट कारण देना चाहिये तथा सूचना तभी प्रतिबंधित करनी चाहिये जब व्यापक जन-हित की मांग हो।
    • उदाहरण: सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम नागरिकों को शासन में खुलेपन और पारदर्शिता को बढ़ावा देते हुए सार्वजनिक प्राधिकरणों से जानकारी प्राप्त करने का अधिकार देता है।
  • ईमानदारी- नौकरशाह का यह कर्त्तव्य है कि वह अपने सार्वजनिक कर्त्तव्यों से संबंधित निजी हितों को संतुलित करते हुए सार्वजनिक हितों को प्राथमिकता दे।
    • उदाहरण: पूर्व भारतीय पुलिस सेवा (IPS) अधिकारी किरण बेदी ने पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो के महानिदेशक के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान अपनी ईमानदारी एवं सत्यनिष्ठा के रूप में प्रतिष्ठा हासिल की।
  • नेतृत्व- नौकरशाहों को अपने नेतृत्व और उदाहरण द्वारा मिसाल पेश करते हुए इन सिद्धांतों को विकसित एवं इनका समर्थन करना चाहिये।
    • उदाहरण: डॉ. वर्गीस कुरियन (जिन्हें "मिल्कमैन ऑफ इंडिया" के नाम से जाना जाता है) ने ऑपरेशन फ्लड कार्यक्रम के माध्यम से भारत के डेयरी उद्योग को बदलने और किसानों को सशक्त बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

नोलन समिति द्वारा सुझाए गए सार्वजनिक जीवन के सात सिद्धांत 21वीं सदी में काफी प्रासंगिक हैं। पारदर्शी, जवाबदेह और नैतिक शासन सुनिश्चित करने तथा अपने संस्थानों एवं लोक सेवकों में जनता का विश्वास बनाए रखने के लिये इन सिद्धांतों को बनाए रखना आवश्यक है।