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दिवस-21. भारत में सांप्रदायिक हिंसा के लिये जिम्मेदार प्रमुख कारक क्या हैं और इस मुद्दे को हल करने में महात्मा गांधी के योगदान ने किस प्रकार महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई? (150 शब्द)

09 Aug 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 4 | सैद्धांतिक प्रश्न

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • सांप्रदायिक हिंसा को परिभाषित करते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
  • सांप्रदायिक हिंसा के लिये ज़िम्मेदार प्रमुख कारकों पर चर्चा कीजिये।
  • भारत में सांप्रदायिक हिंसा को हल करने में गांधी की क्या भूमिका थी?
  • तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

सांप्रदायिक हिंसा उन हिंसक संघर्षों को संदर्भित करती हैं जो एक समुदाय या क्षेत्र के भीतर विभिन्न जातीय, धार्मिक या सांस्कृतिक समूहों के बीच होते हैं। इससे जान-माल की महत्त्वपूर्ण क्षति होने की संभावना रहती है।

उदाहरण के लिये हाल की घटनाओं में, भारत के मणिपुर में कुकी और मैतेई जनजातियों के बीच हिंसा हुई।

भारत में सांप्रदायिक हिंसा के लिये ज़िम्मेदार प्रमुख कारक:

  • धार्मिक और जातीय मतभेद: धार्मिक और जातीय विभाजन, तनाव एवं संघर्ष का कारण बन सकते हैं।
    • उदाहरण के लिये वर्ष 1992 का अयोध्या विवाद, जहाँ अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के कारण हिंदुओं और मुसलमानों के बीच व्यापक सांप्रदायिक हिंसा हुई।
  • सोशल मीडिया और दुष्प्रचार: कभी-कभी, राजनेता अपने फायदे के लिये सांप्रदायिक भावनाओं का फायदा उठाते हैं, जिससे तनाव और बढ़ जाता है।
    • वर्ष 2013 में मुज़फ्फरनगर दंगों को कथित तौर पर चुनावों से पहले राजनीतिक दलों द्वारा सांप्रदायिक बयानबाजी का उपयोग करके भड़काया गया था।
  • सामाजिक समानता का अभाव: संसाधनों और अवसरों के असमान वितरण से समुदायों के बीच नाराजगी और दुश्मनी पैदा हो सकती है।
    • 2007 में नंदीग्राम हिंसा, औद्योगिक विकास के लिये भूमि अधिग्रहण को लेकर किसानों और सरकार के बीच संघर्ष के कारण हुई थी।
  • भेदभाव और पूर्वाग्रह: कमज़ोर कानून प्रवर्तन तथा देरी से न्याय मिलना अपराधियों को प्रोत्साहित कर सकता है और दण्ड से मुक्ति की भावना पैदा कर सकता है।
    • दिल्ली में 1984 के सिख विरोधी दंगे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के कारण भड़के थे और इसके परिणामस्वरूप सिख समुदाय के खिलाफ व्यापक हिंसा जागृत हुई थी।
  • धर्म का राजनीतिकरण: हिंसा या अन्याय की पूर्व की घटनाएं स्थायी घाव छोड़ सकती हैं तथा सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा दे सकती हैं।
    • वर्ष 2002 में गोधरा में ट्रेन जलाने की घटना से गुजरात में सांप्रदायिक हिंसा हुई, जिसके परिणामस्वरूप जान-माल का काफी नुकसान हुआ था।
  • धार्मिक असहिष्णुता: विभिन्न समुदायों के बीच अंतरधार्मिक असमानताएं हाशिए पर जाने और असमानता की भावना पैदा कर सकती हैं, जिससे सांप्रदायिक झड़पें हो सकती हैं।
    • वर्ष 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली के दंगे सामाजिक-आर्थिक तनाव के कारण भड़के और हिंदुओं तथा मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक हिंसा में बदल गए।

भारत में सांप्रदायिक हिंसा को हल करने में गांधी की भूमिका:

महात्मा गांधी ने अपने दर्शन, कार्यों और नेतृत्व के माध्यम से भारत में सांप्रदायिक हिंसा को हल करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जैसे:

  • अहिंसक प्रतिरोध: गांधीजी ने सांप्रदायिक तनाव को दूर करने के साधन के रूप में अहिंसक प्रतिरोध की वकालत की, जिसे सत्याग्रह भी कहा जाता है।
    • उदाहरण के लिये वर्ष 1946 में नोआखाली दंगों के दौरान गांधी ने हिंदुओं और मुसलमानों को एक साथ लाने एवं अहिंसक सह-अस्तित्व को प्रोत्साहित करने के लिये इस क्षेत्र में शांति मिशन चलाया।
  • एकता और भाईचारे पर बल: गांधी ने लगातार सभी समुदायों की एकता और भाईचारे पर ज़ोर दिया, चाहे उनकी धार्मिक या सांस्कृतिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो।
    • 1920 के दशक में खिलाफत आंदोलन के दौरान उनके प्रयासों ने विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच एकता को बढ़ावा देने की उनकी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया।
  • सांप्रदायिक सद्भाव अभियान: गांधी ने पूरे देश में सांप्रदायिक सद्भाव अभियान शुरू किया और इन्होंने लोगों को एक साथ आने तथा हिंसा को अस्वीकार करने के लिये प्रोत्साहित किया।
    • इसका एक उल्लेखनीय उदाहरण वर्ष 1946 के दंगों के दौरान बिहार जैसे दंगाग्रस्त क्षेत्रों में शांति लाने में उनकी भूमिका थी, जहाँ उन्होंने लोगों के बीच विश्वास बहाल करने के लिये अथक प्रयास किया था।
  • बातचीत और मध्यस्थता में भूमिका: गांधीजी अक्सर सांप्रदायिक तनाव के दौरान परस्पर विरोधी पक्षों के बीच बातचीत और मध्यस्थता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। उनकी भागीदारी से संभावित हिंसक स्थितियों को शांत करने और शांतिपूर्ण समाधान खोजने में मदद मिली।
    • इसका एक उदाहरण वर्ष 1917 के अहमदाबाद दंगों से संबंधित है जहाँ उन्होंने हिंसा को रोकने हेतु हिंदुओं और मुसलमानों के बीच मध्यस्थता की थी।
  • सद्भाव की वकालत: अपने भाषणों, लेखों और सार्वजनिक बातचीत के माध्यम से, गांधी ने लगातार समुदायों के बीच नफरत एवं हिंसा को रोकने पर बल दिया।
    • वर्ष 1947 में भारत के विभाजन के समय उनके प्रभाव के कारण विभाजन के साथ हुई व्यापक हिंसा के बावजूद शांति बनाए रखने के प्रयास हुए।
  • अंतरसांस्कृतिक संवाद को बढ़ावा देना: गांधी ने गलतफहमियों और पूर्वाग्रहों को दूर करने के लिये विभिन्न समुदायों के बीच संवाद और संचार को प्रोत्साहित किया।
    • विभिन्न धार्मिक समूहों के नेताओं के साथ उनकी बैठकें, जैसे दलाई लामा और ईसाई मिशनरियों के साथ उनकी चर्चा, का उद्देश्य आपसी सम्मान तथा समझ को बढ़ावा देना था।
  • उपवास के माध्यम से संघर्ष समाधान: गांधी अक्सर उपवास को विरोध और संघर्ष समाधान के साधन के रूप में इस्तेमाल करते थे।
    • उनके उपवास (जैसे 1947 में कलकत्ता में हिंदू-मुस्लिम हिंसा को दबाने के लिये किया गया उपवास) ने सांप्रदायिक तनाव की ओर ध्यान आकर्षित किया तथा नेताओं पर शांति की दिशा में कार्रवाई करने के लिये दबाव डाला।

गांधी के कथन "शांति का कोई रास्ता नहीं है, शांति ही रास्ता है" ने भारतीयों के बीच सांप्रदायिक भावनाओं से ऊपर उठकर साझा पहचान और उद्देश्य की भावना विकसित करने में मदद की थी। अहिंसा के उनके दर्शन और संवाद, समझ तथा एकता को बढ़ावा देने के उनके प्रयासों से सांप्रदायिक हिंसा को हल करने एवं भारत व उसके बाहर शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को बढ़ावा देने के लिए प्रेरणा मिलती है।