दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- परिचय: भारत छोड़ो आंदोलन (QIM) का संक्षिप्त परिचय देते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- मुख्य भाग: भारत छोड़ो आंदोलन के महत्त्व और चुनौतियों को बताते हुए चर्चा कीजिये कि यह पूर्व के अन्य आंदोलनों से किस प्रकार भिन्न था।
- निष्कर्ष: स्वतंत्रता संग्राम में QIM के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
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परिचय:
भारत छोड़ो आंदोलन 8 अगस्त 1942 को गांधी जी द्वारा शुरू किया गया एक सविनय अवज्ञा आंदोलन था, जिसमें भारत में ब्रिटिश शासन के उन्मूलन की मांग की गई थी। यह ब्रिटिश उपनिवेशवाद के विरुद्ध भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस का अंतिम जन अभियान था।
मुख्य भाग:
इस आंदोलन का महत्त्व और प्रभाव:
- इस दौरान ब्रिटिश अधिकारियों के दमन और हिंसा के बावजूद, स्वतंत्रता संघर्ष हेतु भारतीय लोगों ने दृढ़ संकल्प और साहस का प्रदर्शन किया।
- इस आंदोलन ने पूरे देश में (विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में) लोगों को संगठित किया और इस दौरान लोगों ने संचार बुनियादी ढाँचे को नष्ट करने के साथ समानांतर सरकारें बनाने में भाग लिया।
- इससे ब्रिटिश मनोबल कमज़ोर होने के साथ उन्हें एहसास हुआ कि भारत में अब लंबे समय तक शासन नहीं किया जा सकता है।
- इससे युद्ध के बाद के भारत के भविष्य से संबंधित विमर्श भी प्रभावित हुआ।
यह आंदोलन निम्नलिखित तरीकों से पूर्व के आंदोलनों से भिन्न था:
- यह अधिक कट्टरपंथी और उग्रवादी था, क्योंकि इसमें क्रमिक सुधारों के बजाय तत्काल और पूर्ण स्वतंत्रता का आह्वान किया गया था।
- यह काफी विकेन्द्रीकृत था, क्योंकि अधिकांश कॉन्ग्रेस नेताओं की गिरफ्तारी के कारण इसके पास कोई स्पष्ट नेतृत्व या कार्ययोजना नहीं थी।
- यह अधिक समावेशी और विविध था क्योंकि इसमें समाज के विभिन्न वर्ग जैसे श्रमिक, छात्र, महिलाएँ, दलित और अल्पसंख्यक शामिल थे।
इस आंदोलन के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ:
- कॉन्ग्रेस नेताओं की गिरफ्तारी और गांधी जी के मार्गदर्शन के अभाव के कारण समन्वय न होने के साथ यह आंदोलन दिशाहीन हो गया।
- इसमें ब्रिटिश सेना द्वारा दमन और क्रूरता का सहारा लिया गया जिसमें आंदोलन को दबाने के लिये गिरफ्तारी, यातना एवं गोलीबारी जैसी रणनीतियों को अपनाया गया।
- इस आंदोलन के प्रति मुस्लिम लीग, हिंदू महासभा और कुछ रियासतों आदि की उदासीनता देखी गई।
निष्कर्ष:
भारत छोड़ो आंदोलन भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास की एक महत्त्पूर्ण घटना थी जिसमें ब्रिटिश शासन को समाप्त करने के क्रम में भारतीय लोगों के संकल्प और बलिदान का प्रदर्शन हुआ था। इस आंदोलन से अंततः वर्ष 1947 में भारत की स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त हुआ था। इस आंदोलन ने भारत में राष्ट्रवाद, लोकतंत्र और सामाजिक न्याय जैसे पहलुओं के रूप में स्थायी विरासत छोड़ी।