दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- परिचय: भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सुभाष चंद्र बोस की भूमिका का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- मुख्य भाग: औपनिवेशिक शासन के प्रति बोस के विरोध और राष्ट्रों की स्वतंत्रता के संदर्भ में उनके विश्वास पर चर्चा कीजिये।
- निष्कर्ष: स्वतंत्रता और समानता के लिये चल रहे संघर्षों को प्रेरित करने में बोस की विरासत के महत्त्व को रेखांकित करते हुए निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक थे, जिन्होंने राष्ट्रीय स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय प्राप्त करने के क्रम में मार्गदर्शक सिद्धांतों के रूप में साम्राज्यवाद का विरोध करने के साथ निर्विवाद समाजवाद की वकालत की थी। भारतीय सिविल सेवा से इस्तीफा देकर यह स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गये। ब्रिटिशों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई हेतु लोगों को संगठित करने के क्रम में उन्होंने फॉरवर्ड ब्लॉक का भी गठन किया था।
मुख्य भाग:
उनकी विचारधारा:
- बोस ब्रिटिश उपनिवेशवाद और उसकी शोषणकारी नीतियों के कट्टर विरोधी थे।
- उनका मानना था कि भारत को अपनी पूर्ण स्वतंत्रता के लिये सशस्त्र संघर्ष सहित सभी तरीकों से कार्य करना होगा, न कि डोमिनियन स्टेटस या संवैधानिक सुधार के रूप में समझौता करना होगा।
- उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस (INC) के उदारवादी और संवैधानिक दृष्टिकोण को चुनौती देते हुए जन आंदोलन, सविनय अवज्ञा और सशस्त्र संघर्ष जैसी कट्टरपंथी रणनीति की वकालत की थी।
- उन्होंने वर्ष 1943 में आज़ाद हिंद फौज (INA) का गठन किया था। उन्होंने "जय हिंद" का नारा देने के साथ "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा" का आह्वान किया था।
- बोस एक दूरदर्शी समाजवादी भी थे जिन्होंने एक आधुनिक, औद्योगिक और समतावादी राष्ट्र के रूप में स्वतंत्र भारत की कल्पना की थी जिससे समाज के गरीबों और उत्पीड़ित वर्गों का उत्थान हो सके।
- उन्होंने राष्ट्र के पुनर्निर्माण के अपने कार्यक्रम के हिस्से के रूप में भूमि सुधार, प्रमुख उद्योगों के राष्ट्रीयकरण, सामाजिक कल्याण योजनाओं, सार्वभौमिक शिक्षा,स्वास्थ्य देखभाल तथा महिला सशक्तिकरण की वकालत की थी।
- उन्होंने श्रमिकों और किसानों के अधिकारों का समर्थन करने के साथ सांप्रदायिकता और जातिवाद का विरोध किया था।
वर्तमान में बोस की विचारधारा की प्रासंगिकता:
बोस की विरासत आज भी बहुत प्रासंगिक है, क्योंकि भारत अपने राजनीतिक और सामाजिक-आर्थिक क्षेत्रों में विभिन्न चुनौतियों का सामना कर रहा है।
- साम्राज्यवाद के विरोध में उनका समझौता न करने वाला दृष्टिकोण हमें आंतरिक स्तर पर किसी भी प्रकार के बाहरी प्रभुत्व या हस्तक्षेप (चाहे वह नव-उपनिवेशवादी शक्तियों या वैश्विक संस्थानों से हो) का विरोध करने के लिये प्रेरित कर सकता है।
- उनका निर्विवाद समाजवाद हमें अधिक समावेशी और न्यायसंगत विकास हेतु प्रयास करने के लिये प्रेरित कर सकता है, जिससे समाज के सभी वर्गों (विशेषकर हाशिये पर रहने वाले और कमज़ोर लोगों) को लाभ मिल सके।
- उनकी त्याग और देशभक्ति की भावना विविधता और मतभेदों के बावजूद हमें देश की एकता और अखंडता के लिये कार्य करने हेतु प्रोत्साहित कर सकती है।
निष्कर्ष:
बोस की विचारधारा ने भारतीयों को उत्पीड़न और अन्याय के खिलाफ अपने अधिकारों और सम्मान के लिये संघर्ष करने हेतु प्रेरित किया। उनके दृष्टिकोण ने विश्व स्तर पर राष्ट्रवादी, समाजवादी, साम्यवादी, उपनिवेशवाद विरोधी, नस्लवाद विरोधी, फासीवाद विरोधी, नारीवादी, पर्यावरणवादी और मानवाधिकार जैसे आंदोलनों को प्रभावित किया है। एक स्वतंत्र, लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी और विविधतापूर्ण भारत का उनका दृष्टिकोण आज भी कई भारतीयों के लिये प्रासंगिक और प्रेरणादायक बना हुआ है।