दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- परिचय: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रवाद के संदर्भ में इसके महत्त्व के बारे में संक्षेप में बताते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
- मुख्य भाग: आधुनिक राष्ट्रवाद के विकास में योगदान देने वाले कारकों पर चर्चा कीजिये।
- निष्कर्ष: आधुनिक राष्ट्रवाद के विकास और उपनिवेशवाद-विरोधी आंदोलन के बीच संबंध को बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
भारत में आधुनिक राष्ट्रवाद एक जटिल और गतिशील प्रक्रिया थी जिसका उदय विभिन्न कारकों की परस्पर क्रिया से हुआ था। भारत में आधुनिक राष्ट्रवाद का विकास ब्रिटिश शासन की प्रतिक्रया में उभरे उपनिवेशवाद-विरोधी आंदोलन से गहराई से संबंधित है। भारत में आधुनिक राष्ट्रवाद न केवल एक राजनीतिक विचारधारा थी बल्कि एक सांस्कृतिक और सामाजिक घटना भी थी जिसने भारतीय लोगों की पहचान और आकांक्षाओं को आकार दिया था।
मुख्य भाग:
भारत में आधुनिक राष्ट्रवाद के विकास में योगदान देने वाले कुछ उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन:
- अधिक कराधान, असंतुलित भू-राजस्व प्रणाली, सूखा, अकाल के साथ नस्लीय भेदभाव एवं नागरिक अधिकारों के दमन जैसी औपनिवेशिक नीतियों द्वारा भारतीय लोगों का शोषण और उत्पीड़न होने के कारण लोगों में आक्रोश और प्रतिरोध की भावना विकसित हुई।
- महात्मा गांधी का नेतृत्व, जिन्होंने अहिंसा, सविनय अवज्ञा और जन आंदोलन पर आधारित संघर्ष की एक नई प्रणाली की शुरुआत की थी। गांधी ने भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों जैसे किसानों, श्रमिकों, महिलाओं, छात्रों आदि से अपील करने के साथ उन्हें एक सामान्य राष्ट्रीय उद्देश्य हेतु एकजुट किया।
- भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस (INC), स्वदेशी आंदोलन, होम रूल लीग, असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन जैसे विभिन्न राजनीतिक संघों और आंदोलनों के द्वारा संघर्ष में भाग लेने के लिये लोगों को संगठित किया गया।
- पश्चिमी शिक्षा और आधुनिक विचारों के प्रसार ने भारतीयों को लोकतंत्र, स्वतंत्रता, समानता और राष्ट्रवाद की अवधारणाओं से अवगत कराया। शिक्षित भारतीय भी औपनिवेशिक शासन के विरोधाभासों और अन्यायों से अवगत हुए और इसके प्रति एक आलोचनात्मक दृष्टिकोण के विकास में सहायता मिली थी।
- आधुनिक प्रेस और साहित्य के विकास से भारतीयों को अपनी शिकायतों और आकांक्षाओं को व्यक्त करने का मौका मिला। प्रेस ने जनमत जुटाने और राष्ट्रीय चेतना विकसित करने में भी भूमिका निभाई थी।
- प्रथम विश्व युद्ध और उसके परिणाम, जिससे अंग्रेजों द्वारा किये जाने वाले भारत के आर्थिक और राजनीतिक शोषण का पता लगा। युद्ध के बाद की अवधि में रोलेट एक्ट, जलियाँवाला बाग नरसंहार और मार्शल लॉ जैसे उपायों के माध्यम से अंग्रेजों द्वारा राष्ट्रवादी आंदोलन का दमन किया गया।
- अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं और आंदोलनों के प्रभाव से भारतीय राष्ट्रवादियों को अपनी स्वतंत्रता हेतु संघर्ष करने की प्रेरणा मिली थी। उदाहरण के लिये अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम, फ्राँसीसी क्रांति, रूसी क्रांति, एशियाई शक्ति के रूप में जापान का उदय और चीन, मिस्र, ईरान, आदि में साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष।
निष्कर्ष:
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का भारत में राष्ट्रवाद के विकास पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा था। इससे भारतीयों के विभिन्न समूहों के बीच सामूहिक पहचान और एकजुटता की भावना विकसित हुई। इससे उन भारतीयों में त्याग, साहस और देशभक्ति की भावना को बढ़ावा मिला था जिन्होंने अपने संघर्ष में विभिन्न कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना किया था। इससे स्वतंत्रता के बाद एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में उभरने का भारत का मार्ग प्रशस्त हुआ था।