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दिवस-17: भारत में छोटे और सीमांत किसानों की आय और आजीविका में सुधार लाने में किसान उत्पादक संगठनों (FPO) की भूमिका का विश्लेषण कीजिये। FPO के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं और उन्हें कैसे दूर किया जा सकता है? (250 शब्द)

04 Aug 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | अर्थव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • परिभाषित कीजिये कि FPO क्या हैं और भारत में उनका महत्त्व क्या है?
  • भारत में छोटे और सीमांत किसानों की आय तथा आजीविका में सुधार लाने में FPO की भूमिका का विश्लेषण कीजिये एवं सफल FPO के कुछ उदाहरण दीजिये। साथ ही FPO के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों और उन्हें कैसे दूर किया जा सकता है, इस पर भी चर्चा कीजिये।
  • अपने उत्तर के मुख्य बिंदुओं को संक्षेप में प्रस्तुत कीजिये और भारत में FPO की क्षमता एवं संभावनाओं पर एक संतुलित राय दीजिये।

किसान उत्पादक संगठन (FPO) छोटे और सीमांत किसानों का एक समूह है जिसका उद्देश्य उनकी सौदेबाज़ी की शक्ति, बाज़ारों तक पहुँच, ऋण, इनपुट, प्रौद्योगिकी एवं सूचना तक उनकी पहुँच को बढ़ाकर उनकी आय तथा आजीविका में सुधार करना है। FPO को भारत में विभिन्न कानूनी ढाँचे के तहत कंपनियों, सहकारी समितियों, सोसायटी या ट्रस्ट के रूप में पंजीकृत किया जा सकता है।

किसान उत्पादक संगठन (FPO) भारत में छोटे और सीमांत किसानों की आय तथा आजीविका बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अमूल और इफको जैसे सफल उदाहरण अपना सकारात्मक प्रभाव प्रदर्शित करते हैं।

भारत में FPO की भूमिका कई पहलुओं में महत्त्वपूर्ण रही है, जैसे:

  • उत्पादकता और गुणवत्ता में वृद्धि: FPO किसानों को बेहतर कृषि पद्धतियों को अपनाने, गुणवत्ता वाले इनपुट तक पहुँचने, फसल विविधीकरण और मूल्य संवर्द्धन को अपनाने तथा फसल के बाद के नुकसान को कम करने में मदद करते हैं। उदाहरण के लिये महाराष्ट्र में सह्याद्रि फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी ने अपने सदस्यों को अंगूर की उत्पादकता 40% बढ़ाने और उनकी इनपुट लागत 20% कम करने में मदद की है।
  • बाज़ार संपर्क और बेहतर मूल्य को बढ़ावा: FPO किसानों को अपनी उपज एकत्र करने, बाज़ार की जानकारी तक पहुँचने, बेहतर कीमतें निर्धारित करने, बिचौलियों को कम करने और संस्थागत खरीदारों तक पहुँचने में सक्षम बनाता है।
  • ऋण और बीमा तक पहुँच की सुविधा: FPO सामूहिक गारंटी, संयुक्त दायित्व और सहकर्मी निगरानी प्रदान करके किसानों को संपार्श्विक, दस्तावेज़ीकरण और लेन-देन लागत की बाधाओं को दूर करने में मदद करते हैं। FPO किसानों को फसल बीमा और जोखिम शमन तंत्र तक पहुँचने में भी मदद करते हैं। उदाहरण के लिये, तमिलनाडु में वायलागम फाउंडेशन ने अपने सदस्यों को नाबार्ड से ऋण एवं भारतीय कृषि बीमा कंपनी से बीमा प्राप्त करने में मदद की है।
  • महिलाओं और हाशिये पर रहने वाले समूहों को सशक्त बनाना: FPO महिलाओं और हाशिये पर रहने वाले किसानों को निर्णय लेने, नेतृत्व की भूमिका, क्षमता निर्माण और आय सृजन गतिविधियों में भाग लेने में मदद करते हैं। FPO लैंगिक असमानता, सामाजिक बहिष्कार और भेदभाव के मुद्दों को संबोधित करने में भी मदद करते हैं।
  • उदाहरण के लिये गुजरात में लखपति किसान प्रोड्यूसर कंपनी ने अपनी महिला सदस्यों को उनकी वार्षिक आय बकरी पालन द्वारा 15,000 से रुपए से 1 लाख रुपए तक बढ़ाने में मदद की है।

FPO के सामने चुनौतियाँ:

  • संरचनात्मक मुद्दे: इनमें अपर्याप्त पेशेवर प्रबंधन, तकनीकी कौशल की कमी, कमज़ोर वित्तीय स्थिति, जोखिम शमन तंत्र की कमी और बाज़ार तथा बुनियादी ढाँचे तक अपर्याप्त पहुँच जैसे मुद्दे शामिल हैं।
  • क्रेडिट मुद्दे: FPO के लिये संस्थागत ऋण प्राप्त करना एक और बड़ी समस्या है, क्योंकि बैंक उनकी भुगतान करने की क्षमता पर संदेह करते हैं तथा सदस्य ज़्यादातर छोटे एवं सीमांत किसान होते हैं।
  • बाज़ार उन्मुखीकरण का अभाव: FPO को अक्सर बाज़ार की मांग, गुणवत्ता मानकों, उपभोक्ता प्राथमिकताओं और प्रतिस्पर्द्धी रणनीतियों को समझने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। FPO को बाज़ार के बुनियादी ढाँचे, लॉजिस्टिक्स, भंडारण, प्रसंस्करण और ब्रांडिंग सुविधाओं तक पहुँचने में भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
  • सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र का अभाव: FPO को अक्सर नियामक बाधाओं, नीतिगत अंतराल, संस्थागत बाधाओं और समन्वय मुद्दों का सामना करना पड़ता है जो उनके कामकाज़ और व्यवहार्यता को प्रभावित करते हैं। FPO को बाज़ार में व्यापारियों, एग्रीगेटर्स और कॉरपोरेट्स जैसे अन्य खिलाड़ियों से भी प्रतिस्पर्द्धी का सामना करना पड़ता है।

चुनौतियों से निपटने के उपाय:

  • पूंजी आधार को मज़बूत बनाना:
    • इक्विटी शेयर, बचत, जमा और योगदान के माध्यम से सदस्यों से अधिक पूंजी जुटाना।
    • बैंकों, वित्तीय संस्थानों और सरकारी योजनाओं से रियायती दरों एवं लचीली शर्तों पर अधिक ऋण प्राप्त करना।
    • वेंचर केपिटल, इम्पैक्ट इन्वेस्टिंग और क्राउड फंडिंग जैसे पूंजी के वैकल्पिक स्रोतों का पता लगाना।
  • व्यावसायिक प्रबंधन को बढ़ाना:
    • संचालन, लेखा, विपणन और शासन का प्रबंधन करने के लिये योग्य एवं अनुभवी कर्मचारियों की भर्ती तथा प्रशिक्षण।
    • दक्षता और पारदर्शिता में सुधार के लिये मोबाइल एप, MIS सिस्टम, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स और ट्रैसेबिलिटी सिस्टम जैसे डिजिटल टूल अपनाना।
    • उप-कानूनों, नीतियों, ऑडिट और विवाद समाधान तंत्र सहित आंतरिक शासन तंत्र को मज़बूत करना।
  • बाज़ार उन्मुखीकरण में सुधार:
    • बाज़ार की मांग, गुणवत्ता मानकों, उपभोक्ता प्राथमिकताओं और प्रतिस्पर्द्धी रणनीतियों को समझने के लिये बाज़ार अनुसंधान, विश्लेषण तथा खुफिया जानकारी का प्रबंधन करना।
    • अपनी उपज की गुणवत्ता बढ़ाने के लिये बाज़ार के बुनियादी ढाँचे, लॉजिस्टिक्स, भंडारण, प्रसंस्करण और ब्रांडिंग सुविधाओं में निवेश करना।
    • प्रोसेसर, खुदरा विक्रेताओं, निर्यातकों और सरकारी एजेंसियों जैसे संस्थागत खरीदारों के साथ बाज़ार संबंध स्थापित करना।
  • एक सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण:
    • नीतिगत सुधारों और विनियामक सरलीकरण की वकालत करना जो FPO कार्यप्रणाली एवं व्यवहार्यता का समर्थन करता है।
    • उनके संचालन को प्रभावित करने वाले विभिन्न हितधारकों के बीच संस्थागत समर्थन और समन्वय सुनिश्चित करना।
    • संसाधनों, विशेषज्ञता और नेटवर्क का लाभ उठाने के लिये अन्य FPO, NGO, अनुसंधान संस्थानों, निजी क्षेत्र तथा सरकारी एजेंसियों के साथ सहयोग करना।

बेहतर उत्पादकता, बाज़ार संपर्क और सशक्तीकरण के माध्यम से भारत में छोटे एवं सीमांत किसानों की आय तथा आजीविका बढ़ाने में FPO महत्त्वपूर्ण रहे हैं लेकिन अपर्याप्त पूंजी, पेशेवर प्रबंधन तथा बाज़ार अभिविन्यास जैसी चुनौतियाँ अभी भी उनके विकास एवं स्थिरता में बाधक हैं। कृषि क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धी और व्यवहार्य बने रहने के लिये FPO के लिये इन चुनौतियों से निपटने के उपाय अपनाना आवश्यक है।