Mains Marathon

दिवस-17: भारत की ऊर्जा सुरक्षा एवं पर्यावरणीय स्थिरता हेतु जैव ऊर्जा फसलों (Bioenergy Crop) से संबंधित लाभ और चुनौतियाँ क्या हैं? (150 शब्द)

04 Aug 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | अर्थव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • जैव ऊर्जा फसलोंऔर उनके प्रकारों को परिभाषित करते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
  • जैव ऊर्जा फसलों से संबंधित लाभ एवं चुनौतियों का उल्लेख कीजिये।
  • आगे की राह बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

जैव ऊर्जा फसलोंसे आशय ऐसी फसलों से है जिनसे इथेनॉल, बायोडीज़ल, बायोगैस या बायो-तेल जैसे ईंधन प्राप्त किया जा सकता है। उन्हें दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है: खाद्य फसलें और गैर-खाद्य फसलें। खाद्य फसलें वे हैं जिनका उपयोग मानव या पशु उपभोग के लिये भी किया जाता है जैसे- गन्ना, मक्का, गेहूँ और सोयाबीन। गैर-खाद्य फसलें वे हैं जिन्हें विशेष रूप से ऊर्जा उद्देश्यों हेतु उत्पादित किया जाता है जैसे- जेट्रोफा, पोंगामिया, स्विचग्रास और शैवाल।

जैव ऊर्जा फसलों से संबंधित लाभ

  • इनसे जीवाश्म ईंधन और आयातित तेल पर निर्भरता में कमी आ सकती है। आयातित तेल के मूल्य में उतार-चढ़ाव, आपूर्ति में व्यवधान और भू-राजनीतिक जोखिमों के अधीन होता है। भारत, विश्व में तेल का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है लेकिन यह अपनी कच्चे तेल की ज़रूरतों का लगभग 85% आयात करता है।
  • इससे ऊर्जा का एक नवीकरणीय एवं घरेलू स्रोत मिल सकता है जिसे मौजूदा ऊर्जा बुनियादी ढाँचे के साथ एकीकृत किया जा सकता है तथा यह सौर एवं पवन जैसे अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का पूरक हो सकता है। 
    • भारत ने वर्ष 2022 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता हासिल करने का लक्ष्य रखा है, जिसमें जैव ऊर्जा की हिस्सेदारी 10 गीगावाट होने की संभावना है।
  • इससे किसानों के लिये रोज़गार और आय के अवसर सृजित हो सकते हैं (खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ ऊर्जा की पहुँच सीमित है)। भारत में लगभग 140 मिलियन हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि है जिसमें से लगभग 40 मिलियन हेक्टेयर बंजर भूमि है जिसका उपयोग जैव ऊर्जा फसलों के उत्पादन हेतु किया जा सकता है।
  • जैव ऊर्जा फसलों से पशु चारा, जैविक उर्वरक और बायोप्लास्टिक्स जैसे उप-उत्पादों के रूप में भी अतिरिक्त आय मिल सकती है।
  • इससे ग्लोबल वार्मिंग और स्वास्थ्य समस्याओं में योगदान देने वाले जीवाश्म ईंधन को प्रतिस्थापित करके ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन तथा वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है। जैव ऊर्जा फसलों से मृदा की उर्वरता बढ़ सकती है।
    • TERI के एक अध्ययन के अनुसार, जैव ईंधन से जीवाश्म ईंधन की तुलना में कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन को 60-80% तक कम किया जा सकता है।

जैव ऊर्जा फसलों से संबंधित चुनौतियाँ:

  • वे उपलब्ध भूमि, जल और अन्य संसाधनों के लिये खाद्य फसलों के साथ प्रतिस्पर्द्धा कर सकते हैं, जिससे खाद्य असुरक्षा, उच्च खाद्य कीमतें और सामाजिक संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। भारत लगभग 190 मिलियन अल्पपोषित लोग निवास करते हैं।
  • यदि इन्हें स्थायी रूप से प्रबंधित नहीं किया गया तो ये वनों की कटाई, जैव विविधता की हानि, मृदा क्षरण, जल प्रदूषण और पोषक तत्त्वों की कमी जैसी पर्यावरणीय समस्याएँ पैदा कर सकते हैं।
  • जैव ऊर्जा फसलें कटाई, प्रसंस्करण और परिवहन के दौरान ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी कर सकती हैं, जो फसल के प्रकार, प्रौद्योगिकी और जीवनचक्र विश्लेषण पर निर्भर करता है।
  • उन्हें तकनीकी, आर्थिक और नीतिगत बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है जो उनकी मापनीयता और व्यवहार्यता को सीमित करती हैं।
  • जैव ऊर्जा फसलों के लिये उच्च प्रारंभिक निवेश, उन्नत तकनीक, कुशल लॉजिस्टिक्स और स्थिर बाज़ार मांग की आवश्यकता होती है।
  • भारत में जैव ऊर्जा फसलों के विकास का समर्थन करने के लिये एक स्पष्ट और सुसंगत नीतिगत ढाँचे का भी अभाव है, जैसे कि सम्मिश्रण आदेश, सब्सिडी, प्रोत्साहन एवं मानक आदि।

आगे की राह

  • एक व्यापक और सुसंगत नीतिगत ढाँचा विकसित करना जो जैव ऊर्जा फसलों के लिये स्पष्ट लक्ष्य, प्रोत्साहन, नियम और मानक प्रदान करता है।
  • जैव ऊर्जा फसलों में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देना, विशेष रूप से फसल उत्पादकता, दक्षता एवं विविधता में सुधार के साथ-साथ उन्नत रूपांतरण प्रौद्योगिकियों तथा बायो-रिफाइनरियों को विकसित करना।
  • जैव ऊर्जा फसलों के लाभों और जोखिमों पर किसानों, उद्यमियों, उपभोक्ताओं तथा नीति निर्माताओं की क्षमता एवं जागरूकता बढ़ाना, साथ ही तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करना।
  • जैव ऊर्जा फसल परियोजनाओं की योजना, कार्यान्वयन और निगरानी में सभी हितधारकों, विशेष रूप से स्थानीय समुदायों की भागीदारी एवं परामर्श सुनिश्चित करना।
  • जैव ऊर्जा फसलों के पर्यावरणीय प्रभावों और संसाधन उपयोग का मूल्यांकन करने के लिये जीवनचक्र मूल्यांकन तथा एकीकृत संसाधन प्रबंधन दृष्टिकोण अपनाना।

जैव ऊर्जा फसलों में भारत की ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता में योगदान करने की क्षमता है, लेकिन यह महत्त्वपूर्ण चुनौतियों को भी जन्म देती है। इसलिये सामाजिक, आर्थिक एवं पर्यावरणीय पहलुओं को ध्यान में रखते हुए जैव ऊर्जा फसलों के सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये एक संतुलित तथा समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है।