-
04 Aug 2023
सामान्य अध्ययन पेपर 3
अर्थव्यवस्था
दिवस-17: भारत में खाद्य प्रसंस्करण तथा संबंधित उद्योगों के प्रदर्शन और संभावनाओं का मूल्यांकन कीजिये। इस क्षेत्र के समक्ष प्रमुख बाधाएँ और चुनौतियाँ क्या हैं? (150 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- खाद्य प्रसंस्करण और संबंधित उद्योग शब्द को परिभाषित करते हुए इसमें शामिल क्षेत्रों के कुछ उदाहरण दीजिये।
- भारत में खाद्य प्रसंस्करण तथा संबंधित उद्योगों के प्रदर्शन एवं संभावनाओं पर प्रकाश डालते हुए इस क्षेत्र के समक्ष आने वाली प्रमुख बाधाओं एवं चुनौतियों का उल्लेख कीजिये।
- इन चुनौतियों के समाधान हेतु कुछ उपाय बताइये।
- मुख्य बिंदुओं को बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।
खाद्य प्रसंस्करण का आशय कच्चे पदार्थों को भोजन में या भोजन को अन्य रूपों में परिवर्तित करना है, इसमें इनका मूल्य बढ़ाना, शेल्फ लाइफ बढ़ाना, पोषण या स्वाद में सुधार करना आदि शामिल हैं। भारत में खाद्य प्रसंस्करण तथा संबंधित उद्योगों में अनाज/दाल, फल और सब्जी प्रसंस्करण, दूध उत्पाद, पेय पदार्थ, मछली, पोल्ट्री और अंडे, मांस उत्पाद, शीतल पेय, बीयर/अल्कोहल पेय, ब्रेड, बिस्कुट जैसे अन्य बेकरी उत्पाद शामिल हैं।
भारत में खाद्य प्रसंस्करण और संबंधित उद्योगों का प्रदर्शन और संभावनाएँ:
- प्रदर्शन:
- खाद्य प्रसंस्करण उद्योग भारत के सबसे बड़े उद्योगों में से एक है तथा उत्पादन, खपत, निर्यात एवं अपेक्षित वृद्धि के मामले में पांचवें स्थान पर है।
- खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का देश के कुल खाद्य बाज़ार में 32%, विनिर्माण में सकल मूल्य वर्धित (GVA) का 8.80% तथा कृषि में GVA का 8.39% हिस्सा है।
- खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का भारत के निर्यात में लगभग 13% एवं कुल औद्योगिक निवेश में 6% का योगदान है।
- अप्रैल 2021 से मार्च 2022 की अवधि के दौरान खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में FDI इक्विटी प्रवाह 709.72 मिलियन अमेरिकी डॉलर था।
- अप्रैल 2000 से मार्च 2022 तक खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में प्राप्त कुल FDI 11.08 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी।
- वैश्विक उत्पादन के लगभग 12% के साथ भारत विश्व में फलों तथा सब्जियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
परिदृश्य:
- भारतीय खाद्य और किराना बाज़ार विश्व का छठा सबसे बड़ा बाज़ार है, जिसका खुदरा बिक्री में 70% का योगदान है।
- 15% की CAGR की वृद्धि के साथ वर्ष 2025 तक इस उद्योग के 535 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
- भारत में 1.3 बिलियन से अधिक की आबादी एवं बदलते उपभोग पैटर्न के रूप में मध्यम वर्ग का एक बड़ा घरेलू बाज़ार है।
- भारत में विविध कृषि-जलवायु क्षेत्र हैं जिससे यहाँ विभिन्न प्रकार की फसलों की खेती तथा पशुपालन होता है।
- भारत में उत्पादन की कम लागत होने के साथ कुशल श्रम शक्ति उपलब्ध है जो खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की वृद्धि हेतु सहायक है।
- भारत में खाद्य प्रसंस्करण तथा संबंधित उद्योगों के विकास एवं प्रोत्साहन हेतु एक अनुकूल नीतिगत वातावरण है।
इस क्षेत्र के समक्ष उत्पन्न बाधाएँ और चुनौतियाँ:
- आपूर्ति और मांग पक्ष संबंधी बाधाएँ:
- जोतों के छोटे आकार एवं मशीनीकरण की कमी के कारण कम कृषि उत्पादकता, उच्च लागत, एवं कच्चे माल की उपलब्धता में कमी बनी रहती है, इससे खाद्य प्रसंस्करण एवं उसके निर्यात में बाधा आती है।
- प्रसंस्कृत भोजन की मांग मुख्य रूप से भारत के शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित है।
- बुनियादी ढाँचे संबंधी बाधाएँ:
- अपर्याप्त कोल्ड चेन के कारण 30% से अधिक उपज नष्ट हो जाती है।
- नीति आयोग के एक अध्ययन में फसल कटाई के बाद वार्षिक नुकसान 90,000 करोड़ रुपये के करीब होने का अनुमान लगाया गया है।
- सभी मौसमों के अनुकूल सड़कों और कनेक्टिविटी की कमी के कारण आपूर्ति अनियमित हो जाती है।
- खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का अनौपचारिकीकरण:
- खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में असंगठित क्षेत्रों की अधिकता है, जिसकी सभी उत्पाद श्रेणियों में लगभग 75% की हिस्सेदारी है। इस प्रकार मौजूदा उत्पादन प्रणाली की क्षमता में गिरावट आती है।
- विनियामक बाधाएँ:
- विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के अधिकार क्षेत्र से संबंधित ऐसे कई कानून हैं, जो खाद्य सुरक्षा और पैकेजिंग को नियंत्रित करते हैं।
- कानून की बहुलता और प्रशासनिक देरी के कारण खाद्य सुरक्षा दिशानिर्देशों में विरोधाभास पैदा होता है।
- निर्यात का कम मूल्य: इसके अलावा भारत में अधिकांश प्रसंस्करण को प्राथमिक प्रसंस्करण के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है, जिसमें द्वितीयक प्रसंस्करण की तुलना में कम मूल्य-वर्धन होता है।
- इसके कारण विश्व में कृषि वस्तुओं के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक होने के बावजूद, शेष विश्व की तुलना में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि निर्यात की हिस्सेदारी काफी कम है।
- ब्राज़ील में यह अनुपात लगभग 4%, अर्जेंटीना में 7% तथा थाईलैंड में 9% है जबकि भारत के लिये यह अनुपात केवल 2% है।
- इसके अलावा वित्त की बढ़ती लागत, कुशल और प्रशिक्षित जनशक्ति की कमी, अपर्याप्त गुणवत्ता नियंत्रण एवं पैकेजिंग इकाइयाँ तथा उच्च कर एवं शुल्क जैसे मुद्दे FPI के विकास में बाधक हैं।
आगे की राह:
- हैंड-होल्डिंग दृष्टिकोण अपनाना:
- सरकार को लॉजिस्टिक्स, भंडारण एवं प्रसंस्करण के लिये बुनियादी ढाँचे के निर्माण हेतु जोखिम साझाकरण तंत्र, राजकोषीय प्रोत्साहन एवं साझेदारी मॉडल स्थापित करके एक हैंड-होल्डिंग दृष्टिकोण अपनाना चाहिये।
- इस संदर्भ में सरकार ने बुनियादी ढाँचे के अंतराल को कम करने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना शुरू की है। इसके साथ ही खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों में 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति दी गई है।
- विनियामक संरचना को सुव्यवस्थित करना: अनुबंध एवं कॉर्पोरेट कृषि के लिये अनुकूल विनियामक ढाँचे को विकसित करके तथा कमोडिटी क्लस्टर एवं गहन पशुधन पालन को प्रोत्साहित करके आर्थिक व्यवहार्यता को सुरक्षित करने की आवश्यकता है।
- स्ट्रैटजी फॉर न्यू इंडिया @75 में अनुशंसा की गई है कि राज्यों को मॉडल अनुबंध कृषि अधिनियम, 2018 को पारित करने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिये।
- विभिन्न विभागों और कानूनों के समन्वय से मंजूरी प्राप्त करने में आने वाली बाधाओं को दूर करना चाहिये।
- उचित कृषि विपणन सुधार सुनिश्चित करना चाहिये, उदाहरण के लिये APMC अधिनियम का कार्यान्वयन सुनिश्चित करना।
- मानव संसाधन विकास:
- दो स्तरों पर कौशल की आवश्यकता होती है। पहला कृषि संबंधी सर्वोत्तम प्रथाओं को बढ़ावा देने में और दूसरा, प्रसंस्करण गतिविधियों में।
- राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) ने वर्ष 2022 तक खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में 17.8 मिलियन लोगों को कौशल प्रदान करने की आवश्यकता का अनुमान लगाया है।
- इस प्रयास में उद्योग, शिक्षा जगत और सरकार को खाद्य पैकेजिंग, प्रसंस्करण, जैव प्रौद्योगिकी तथा ऐसे संबद्ध क्षेत्रों में विशेष संस्थानों और पाठ्यक्रमों के विकास के लिये संयुक्त प्रयास करने चाहिये।
- ग्राम-स्तरीय खरीद को बढ़ावा देना: नीति आयोग ने स्ट्रैटजी फॉर न्यू इंडिया @75 हेतु रणनीति में फलों, सब्जियों और डेयरी जैसे खराब होने वाले उत्पादों के लिये ग्राम-स्तरीय खरीद केंद्रों की स्थापना की सिफारिश की है।
- इस संदर्भ में वर्ष 2018-19 के बजट में घोषित, 22,000 ग्रामीण हाटों को ग्रामीण कृषि बाज़ारों (GrAMS) में अपग्रेड करना सही दिशा में उठाया गया एक कदम था।
वर्तमान में आवश्यक है कि खाद्य प्रसंस्करण को समग्र खाद्य क्षेत्र का हिस्सा माना जाए तथा इस क्षेत्र को कृषि एवं संबंधित गतिविधियों के लिये उपलब्ध सभी सुविधाएं, छूट और रियायतें प्रदान की जानी चाहिये। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग न केवल न्यू इंडिया की पोषण संबंधी ज़रूरतों को पूरा करेगा, बल्कि किसानों की आय को दोगुना करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।