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दिवस-17: भारत में जैविक कृषि से संबंधित लाभ और चुनौतियाँ क्या हैं? सरकार पारंपरिक कृषि के सतत् और लाभदायक विकल्प के रूप में जैविक कृषि को कैसे बढ़ावा दे सकती है? (250 शब्द)

04 Aug 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | अर्थव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • जैविक कृषि के बारे में बताते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
  • जैविक कृषि से संबंधित लाभों और चुनौतियाँ पर चर्चा कीजिये।
  • जैविक कृषि को बढ़ावा देने के उपायों पर चर्चा कीजिये
  • मुख्य बिंदुओं को बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

जैविक कृषि में सिंथेटिक रसायनों, आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों, हार्मोंस या एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग के बिना ही फसल उत्पादन किया जाता है, यह कृषि प्राकृतिक आदानों एवं प्रक्रियाओं पर निर्भर करती है। जैविक कृषि का उद्देश्य पर्यावरण प्रदूषण तथा स्वास्थ्य जोखिमों को कम करते हुए मृदा स्वास्थ्य एवं जैव विविधता को बनाए रखते हुए पशु कल्याण और पारिस्थितिक संतुलन को बढ़ावा देना होता है।

वर्ष 2002 में सरकार ने राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम (NPOP) शुरू किया था जिसका उद्देश्य जैविक कृषि को बढ़ावा देना तथा जैविक कृषि के अंतर्गत क्षेत्र को बढ़ाना है। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप भारत में जैविक कृषि का क्षेत्र लगातार बढ़ रहा है। वर्ष 2019 में जैविक कृषि के अंतर्गत 2.3 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल शामिल था।

भारत में जैविक कृषि के लाभ:

  • रसायनों के उपयोग को समाप्त करके (जो भूजल और सतही जल में प्रवेश कर सकते हैं एवं खाद्य श्रृंखला को दूषित कर सकते हैं) मृदा एवं जल प्रदूषण की रोकथाम होगी।
  • विभिन्न प्रकार की फसलों, जानवरों और सूक्ष्मजीवों को बनाए रखकर (जो स्वाभाविक रूप से कीटों और बीमारियों के प्रति संरक्षित होते हैं) एवं स्वस्थ जैव विविधता का संरक्षण करके परागण, पोषक तत्त्व चक्र और कीट नियंत्रण जैसी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ बेहतर होंगी।
  • पशु खाद, जैव उर्वरक, जैव कीटनाशक और फसल अवशेष जैसे प्राकृतिक उत्पादों के उपयोग के कारण लागत प्रभावशीलता को बढ़ावा मिलेगा।
    • इससे बाहरी आदानों पर निर्भरता में कमी आएगी तथा किसानों की सौदेबाज़ी की शक्ति को बढ़ावा मिलेगा।
  • इस प्रकार की कृषि से संसाधनों का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित होगा। जैविक कृषि से फसल चक्र, मल्चिंग, वर्षा जल संचयन, वर्मी कम्पोस्टिंग और कृषि वानिकी को बढ़ावा मिलने से मृदा की उर्वरता एवं जल प्रतिधारण क्षमता बढ़ाने, कार्बन पृथक्करण एवं बायोमास उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा।
  • पारंपरिक रूप से उत्पादित खाद्य पदार्थों की तुलना में ऐसी फसलों का उत्पादन करके भोजन की पोषण सामग्री में वृद्धि की जा सकती है जिनमें एंटीऑक्सिडेंट, विटामिन, खनिज और फाइटोकेमिकल्स का स्तर अधिक होता है।
    • जैविक खाद्य पदार्थों में कीटनाशक अवशेष, नाइट्रेट, भारी धातु, हार्मोन और एंटीबायोटिक्स का स्तर भी कम होता है जो स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।
  • कार्बनिक पदार्थ, माइक्रोबियल गतिविधियों, ह्यूमस और मृदा की संरचना में सुधार के माध्यम से मृदा के भौतिक, रासायनिक तथा जैविक गुणों में सुधार करके मृदा की उर्वरता को बनाए रखा जा सकता है।
    • जैविक कृषि से मृदा के कटाव, लवणीकरण और अम्लीकरण में भी गिरावट आती है जिससे मृदा की गुणवत्ता तथा उत्पादकता में वृद्धि हो सकती है।
  • विष-मुक्त फसलों द्वारा विषाक्त पदार्थों के अवशोषण के कारण होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को कम किया जा सकता है। इससे उन उपभोक्ताओं की प्रतिरक्षा, जीवन शक्ति और कल्याण में सुधार हो सकता है जो अपनी सुरक्षा एवं गुणवत्ता के लिये जैविक खाद्य पदार्थ पसंद करते हैं।
  • सस्ता इनपुट, उच्च और अधिक स्थिर कीमतें होने से किसानों को लाभ होने के साथ उनकी लागत में कमी आती है।
  • इससे खाद्य सुरक्षा, रोज़गार सृजन और गरीबी में कमी लाकर दोहरी चुनौतियों का सामना करने में मदद मिलेगी। जैविक कृषि से फसल की पैदावार में सुधार एवं खाद्य स्रोतों में विविधता लाकर खाद्य उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। इसमें निराई-गुड़ाई, खाद बनाने और कटाई जैसी अधिक श्रम-केंद्रित गतिविधियाँ होने से ग्रामीण लोगों के लिये रोज़गार के अधिक अवसर सृजित हो सकते हैं।

भारत में जैविक कृषि से संबंधित चुनौतियाँ:

  • जागरूकता की कमी: भारत में कई किसानों को जैविक कृषि के लाभों या उत्पादन की इस पद्धति को अपनाने के बारे में जानकारी नहीं है। जागरूकता की कमी किसानों के लिये जैविक कृषि पद्धतियों को अपनाना कठिन बना सकती है।
  • उच्च लागत: जैविक कृषि में परिवर्तन की प्रारंभिक लागत अधिक हो सकती है, क्योंकि किसानों को नए बीज, उर्वरक एवं कीटनाशक खरीदने की आवश्यकता हो सकती है। इसके अतिरिक्त जैविक कृषि में पारंपरिक कृषि की तुलना में अधिक श्रम की आवश्यकता हो सकती है, जिससे लागत भी बढ़ सकती है।
  • कम पैदावार: जैविक कृषि आमतौर पर पारंपरिक कृषि की तुलना में कम पैदावार देती है, जिससे किसानों के लिये लाभ कमाना मुश्किल हो सकता है। ऐसा इसलिये है क्योंकि जैविक कृषि कीटों एवं बीमारियों को नियंत्रित करने के लिये प्राकृतिक प्रक्रियाओं पर निर्भर होती है, जिससे फसल को नुकसान हो सकता है।
  • बाज़ार तक पहुँच: भारत में जैविक उत्पादों के लिये सीमित बाज़ार है, जिससे किसानों के लिये अपने उत्पाद बेचना मुश्किल हो सकता है। उपभोक्ताओं को अक्सर जैविक खाद्यान्न के लाभों के बारे में पता नहीं होता है या वे इसके लिये उच्च कीमत का भुगतान करने को तैयार नहीं होते हैं।
  • सरकारी समर्थन: सरकार द्वारा जैविक कृषि के लिये प्रदान की जाने वाली सहायता जैविक कृषि को अपनाने के लिये पर्याप्त नहीं हो सकती है।
    • समान मानकों, विनियमों और बुनियादी ढाँचे की कमी के कारण जैविक उत्पादों के प्रमाणीकरण, मान्यता, लेबलिंग और विपणन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
  • उच्च संक्रमण अवधि: पारंपरिक खेत को जैविक खेती में बदलने के लिये कम- से-कम तीन साल की संक्रमण अवधि की आवश्यकता होती है, जिसके दौरान उपज में गिरावट आ सकती है।
  • इनपुट उपलब्धता की कमी: यह क्षेत्र गुणवत्ता वाले जैविक बीज, रोपण सामग्री, जैव-उर्वरक, जैव-कीटनाशक और अन्य जैविक इनपुट की कमी से ग्रस्त है।
    • सिंथेटिक कीटनाशकों के अभाव के कारण इसमें कीटों और बीमारियों के फैलने का भी उच्च जोखिम रहता है।
  • पारंपरिक कृषि के साथ प्रतिस्पर्द्धा करना कठिन: इसे पारंपरिक कृषि प्रणाली के साथ प्रतिस्पर्द्धा करनी पड़ती है, जिसे सरकारी नीतियों एवं कार्यक्रमों द्वारा भारी सब्सिडी और सहायता प्रदान की जाती है।

जैविक कृषि को बढ़ावा देने के उपाय:

  • जैविक उत्पादन, प्रमाणीकरण एवं विपणन के लिये स्पष्ट लक्ष्य, प्रोत्साहन तथा नियमों के साथ क्रमबद्ध तरीके से जैविक कृषि नीतियों को लागू करना।
  • जैविक खाद, जैव-उर्वरक, फसल चक्र, मल्चिंग, हरी खाद, कम्पोस्टिंग और अन्य तकनीकों का उपयोग करके मृदा के स्वास्थ्य को मज़बूत करना तथा जल संरक्षण प्रणाली अपनाना।
  • जागरूकता कार्यक्रमों, लेबलिंग योजनाओं, गुणवत्ता मानकों, मूल्य प्रीमियम, सब्सिडी और बाज़ार लिंकेज के माध्यम से उपभोक्ताओं तक जैविक कृषि एवं इसके लाभों को बढ़ावा देना।
  • क्लस्टर-आधारित दृष्टिकोण, किसान उत्पादक संगठनों (FPOs), क्षमता निर्माण, फसल के बाद के बुनियादी ढाँचे, मूल्य शृंखला विकास तथा निर्यात सुविधा के माध्यम से जैविक कृषि अपनाने वाले किसानों का समर्थन करना।
  • परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY), पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिये मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट (MOVCDNER), पूंजी निवेश सब्सिडी योजना (CISS), मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन योजना एवं राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM) जैसी विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत जैविक इनपुट, प्रमाणीकरण, मशीनीकृत खाद उत्पादन इकाइयों एवं अन्य घटकों के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करना।

जैविक कृषि पारंपरिक कृषि का एक सतत् और लाभदायक विकल्प है जिससे पर्यावरण, किसानों एवं उपभोक्ताओं को लाभ हो सकता है। हालाँकि जैविक कृषि को कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है, जिन पर सरकार और अन्य हितधारकों को ध्यान देने की आवश्यकता है। पर्याप्त समर्थन एवं प्रोत्साहन प्रदान करके सरकार, भारत में जैविक कृषि को बढ़ावा दे सकती है तथा इसे कृषि के भविष्य के लिये एक व्यवहार्य विकल्प बना सकती है।