03 Aug 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | विज्ञान-प्रौद्योगिकी
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- नई अंतरिक्ष नीति तथा अंतरिक्ष अनुसंधान में इसकी भूमिका बताते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- इस बात पर विस्तार से चर्चा कीजिये कि भारतीय अंतरिक्ष नीति, 2023 द्वारा अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की वाणिज्यिक स्थिति को बढ़ावा देने पर किस प्रकार बल दिया गया है।
- अंतरिक्ष क्षेत्र से संबंधित भारत के प्रयासों को और बढ़ावा देने के लिये आगे की राह बताइये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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भारत की नई अंतरिक्ष नीति अंतरिक्ष में समृद्ध व्यावसायिक उपस्थिति को सक्षम, प्रोत्साहित और विकसित करने के लिये एक साहसिक एवं दूरदर्शी कदम है। इस नीति का उद्देश्य अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने के साथ उन्नत अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान तथा विकास पर ध्यान केंद्रित करने के क्रम में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की क्षमता को बढ़ावा देना है। यह नीति वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत की भूमिका और योगदान को बढ़ाने पर केंद्रित है, जिसका अनुमानित मूल्य सालाना 330 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
भारतीय अंतरिक्ष नीति, 2023 द्वारा अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की वाणिज्यिक उपस्थिति को बढ़ावा देने पर बल दिया गया है:
- एक नए नियामक निकाय के रूप में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) की स्थापना का प्रावधान, जो इसरो एवं गैर-सरकारी संस्थाओं (NGEs) के बीच अंतरिक्ष गतिविधियों एवं निगरानी के लिये इंटरफेस के रूप में कार्य करेगा।
- IN-SPACe से एक "स्थिर और पूर्वानुमानित नियामक ढाँचा" सृजित होगा जिससे NGE के लिये समान अवसर सुनिश्चित होंगे।
- यह NGE को स्व-स्वामित्व वाली खरीदी गई या पट्टे पर ली गई भू-स्थैतिक कक्षा या अन्य उपग्रह प्रणालियों के माध्यम से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अंतरिक्ष-आधारित संचार सेवाएँ प्रदान करने की अनुमति देने पर केंद्रित है।
- उचित शुल्कों और शर्तों के अधीन NGEs को अंतरिक्ष-संबंधित गतिविधियों के संबंध में सहायता लेने के लिये इसरो के बुनियादी ढाँचे, प्रौद्योगिकी और विशेषज्ञता तक अधिक पहुँच प्रदान की गई है।
- NGEs को अंतरिक्ष क्षेत्र से संबंधित बुनियादी ढाँचे जैसे- लॉन्च पैड, ग्राउंड स्टेशन, डेटा प्रोसेसिंग सेंटर आदि के निर्माण में निवेश करने हेतु प्रोत्साहित किया गया है।
- इसमें स्टार्टअप्स, शिक्षा जगत, अनुसंधान संस्थानों, उद्योग संघों आदि की भागीदारी को सुविधाजनक बनाकर अंतरिक्ष क्षेत्र में नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा दिया गया है।
- NGEs के हितों का प्रतिनिधित्व करने और उनके बीच सहयोग को बढ़ावा देने के लिये एक औद्योगिक निकाय के रूप में भारतीय अंतरिक्ष संघ (ISpA) की स्थापना का प्रावधान किया गया है।
- इसके तहत बहुपक्षीय पहलों और द्विपक्षीय साझेदारियों में भाग लेकर अंतरिक्ष अनुसंधान एवं अन्वेषण में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने पर बल दिया गया है।
- न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL): यह सार्वजनिक व्यय के माध्यम से निर्मित अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों और प्लेटफॉर्मों के व्यावसायीकरण के साथ-साथ निजी या सार्वजनिक क्षेत्र से संबंधित प्रौद्योगिकियों, प्लेटफार्मों एवं अन्य संपत्तियों के निर्माण, पट्टे या खरीद के लिये ज़िम्मेदार होगा।
- अंतरिक्ष विभाग: यह समग्र दिशा-निर्देश प्रदान करने के साथ अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों को लागू करने के लिये नोडल विभाग के रूप में कार्य करेगा तथा विदेश मंत्रालय के परामर्श से वैश्विक अंतरिक्ष प्रशासन और कार्यक्रमों के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एवं समन्वय को बढ़ावा देगा।
- अंतरिक्ष गतिविधि से उत्पन्न होने वाले विवादों को हल करने के लिये एक उचित तंत्र भी बनाया जाएगा।
- ISRO की भूमिका को तर्कसंगत बनाना: इसमें इस बात पर बल दिया गया है कि इसरो "परिचालन अंतरिक्ष प्रणालियों के निर्माण में भूमिका निभाने की मौजूदा प्रथा से बाहर निकलेगा।
- इसके बाद परिपक्व प्रणालियों को व्यावसायिक उपयोग के लिये उद्योगों को हस्तांतरित किया जाएगा। इसरो उन्नत प्रौद्योगिकी में अनुसंधान एवं विकास के साथ नई प्रणालियों को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करेगा।
- निजी क्षेत्र की भूमिका:
- NGEs (इसमें निजी क्षेत्र भी शामिल है) को "अंतरिक्ष उपकरणों, ज़मीन-आधारित संपत्तियों और संबंधित सेवाओं जैसे- संचार, रिमोट सेंसिंग, नेविगेशन इत्यादि की स्थापना तथा संचालन के माध्यम से अंतरिक्ष क्षेत्र में एंड-टू-एंड गतिविधियाँ करने की अनुमति दी गई है।
- NGEs अंतरिक्ष परिवहन के लिये प्रक्षेपण यानों को डिज़ाइन और संचालित करने के साथ अपना स्वयं का बुनियादी ढाँचा स्थापित कर सकते हैं।
- NGEs अब अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) के साथ समन्वय करने के साथ क्षुद्रग्रह से प्राप्त संसाधनों के व्यावसायिक लाभ में संलग्न हो सकते हैं।
इस नीति में कई कमियाँ हैं जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है जैसे:
- इस नीति में IN-SPACe की महत्त्वाकांक्षी भूमिका निर्धारित की गई है लेकिन इस दिशा में आवश्यक कदमों हेतु कोई समय-सीमा तय नहीं की गई है।
- न तो इसमें इसरो के लिये अपनी मौजूदा गतिविधियों से बाहर निकलने के लिये कोई सांकेतिक समय-रेखा है और न ही नियामक ढाँचा हेतु IN-SPACe के लिये कोई स्पष्ट कार्यक्रम है।
- परिकल्पित नीति ढाँचे में एफडीआई और लाइसेंसिंग, नए अंतरिक्ष स्टार्टअप को बनाए रखने के लिये सरकारी खरीद, उल्लंघन के मामले में दायित्व और विवाद निपटान के लिये अपीलीय ढाँचे से संबंधित स्पष्ट नियमों तथा विनियमों की आवश्यकता होगी।
- IN-SPACe एक नियामक संस्था है लेकिन इसके पास विधायी अधिकार नहीं है।
इन कमियों को दूर करने हेतु आवश्यक कदम:
- अंतरिक्ष नीति 2023 एक दूरदर्शी दस्तावेज़ है लेकिन इस संदर्भ में सफलता प्राप्त करने के लिये आवश्यक कानूनी ढाँचा हेतु एक निर्धारित समय-सीमा की आवश्यकता होगी।
- सरकार को एक विधेयक लाकर IN SPACe को वैधानिक दर्जा प्रदान करने के साथ ISRO और IN SPACe के उत्तरदायित्वों हेतु समय-सीमा का निर्धारण करना चाहिये।
भारत के अंतरिक्ष प्रयासों को बल देने हेतु आगे की राह:
- NGEs की अंतरिक्ष गतिविधियों को नियंत्रित करने तथा बौद्धिक संपदा अधिकार, डेटा सुरक्षा आदि जैसे मुद्दों को हल करने के लिये एक व्यापक कानूनी ढाँचा विकसित करना चाहिये।
- पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान, मानव अंतरिक्ष उड़ान, ग्रह अन्वेषण आदि जैसे क्षेत्रों में अत्याधुनिक अनुसंधान एवं विकास हेतु ISRO की क्षमता को मज़बूत करना चाहिये।
- विभिन्न क्षेत्रों और हितधारकों के बीच जागरूकता तथा भारतीय उत्पादों की मांग सृजित करके भारतीय अंतरिक्ष उत्पादों एवं सेवाओं हेतु घरेलू तथा वैश्विक बाज़ारों का विस्तार करना।
- सर्वोत्तम प्रथाओं और मानकों को अपनाकर भारतीय अंतरिक्ष उद्योग में उत्कृष्टता और गुणवत्ता की संस्कृति को बढ़ावा देना।
भारत में एक जीवंत और प्रतिस्पर्द्धी अंतरिक्ष उद्योग बनाने की दिशा में भारतीय अंतरिक्ष नीति, 2023 एक आशाजनक कदम है जो देश के सामाजिक-आर्थिक विकास एवं रणनीतिक हितों में योगदान दे सकती है। यह नीति वैश्विक अंतरिक्ष क्षेत्र में एक अग्रणी हितधारक बनने की भारत की महत्त्वाकांक्षा और आकांक्षा को दर्शाती है।