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दिवस- 15: भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में बार-बार होने वाली हिंसा के क्या कारण हैं? इस क्षेत्र में स्थायी शांति स्थापित करने एवं सामान्य स्थिति बहाल करने हेतु संभावित समाधानों पर विस्तार से चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

02 Aug 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | आंतरिक सुरक्षा

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • पूर्वोत्तर क्षेत्र तथा इस क्षेत्र में हिंसा से संबंधित डेटा प्रदान करते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
  • पूर्वोत्तर राज्यों में लगातार हिंसा को बढ़ावा देने वाले कारकों पर चर्चा कीजिये।
  • इस क्षेत्र में स्थायी शांति तथा सामान्य स्थिति स्थापित करने के लिये संभावित समाधानों पर विस्तार से चर्चा कीजिये।
  • इस क्षेत्र में शांति की आवश्यकता पर बल देते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में आठ राज्य अर्थात् अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा शामिल हैं। यह क्षेत्र विविध जातीय समूहों, संस्कृतियों, भाषाओं और धर्मों का आवास है।

ये राज्य चीन, म्यांमार, बांग्लादेश, भूटान और नेपाल के साथ सीमा साझा करते हैं और इनकी विविध जातीय, भाषाई, धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान है। स्वतंत्रता के बाद से NER में हिंसा के विभिन्न रूप देखे गए हैं, जिनमें विद्रोह, जातीय संघर्ष, अलगाववादी आंदोलन, सीमा विवाद और आतंकवाद आदि शामिल हैं।

  • यहाँ पर वर्ष 2001-2021 के दौरान कुल 1,062 नागरिकों की जानें गईं। वर्ष 2020 के दौरान, पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र में हिंसा के कारण केवल 2 नागरिकों की मौत की सूचना मिली। वर्ष 2021 में यह बढ़कर 23 हो गई और मणिपुर में जारी हिंसा के कारण वर्ष 2023 में यह संख्या कई गुना बढ़ सकती है।

पूर्वोत्तर राज्यों में लगातार होने वाली हिंसा हेतु उत्तरदायी कारक:

  • ऐतिहासिक: इस क्षेत्र के कई जातीय समूहों का सरकार के खिलाफ प्रतिरोध और विद्रोह का इतिहास रहा है जिसे वे दमनकारी, शोषक और अपनी आकांक्षाओं के प्रति उदासीन मानते हैं।
    • इनमें से कुछ समूह स्वायत्तता या अलगाव की मांग करते हैं, जैसे; नागा।
  • जातीय पहचान: यह क्षेत्र जातीय पहचानों की जटिल संरचना से संलग्न होने के साथ भाषाई, धार्मिक और क्षेत्रीय अलगाव से ग्रसित है। कभी-कभी राजनीतिक या आर्थिक हितों के लिये इनका दुरूपयोग करने से अंतर-जातीय संघर्ष और हिंसा को बढ़ावा मिलता है।
    • उदाहरण के लिये वर्ष 1996-97 में असम में बोडो-कार्बी और वर्ष 2003-04 में असम में दिमासा-हमार जैसे संघर्ष भूमि, संसाधनों और स्वायत्तता संबंधी विवादों के कारण शुरू हुए थे।
  • भू-राजनीतिक कारक: बांग्लादेश, भूटान, चीन, म्यांमार और नेपाल के साथ सीमाएँ साझा करने के कारण यह क्षेत्र सीमा पार घुसपैठ, तस्करी, ट्रैफिकिंग और उग्रवाद के प्रति संवेदनशील हो जाता है।
    • कुछ विद्रोही समूहों को चीन जैसे पड़ोसी देशों से भी समर्थन प्राप्त होता है।
  • सामाजिक- आर्थिक कारक: इस क्षेत्र में कम विकास, गरीबी, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार, प्रवासन और पर्यावरणीय क्षरण जैसी कई सामाजिक-आर्थिक चुनौतियाँ बनी रहती हैं।
    • इन कारकों से लोगों (विशेषकर युवाओं में) असंतोष और निराशा की भावना उत्पन्न होती है और ये विरोध या अस्तित्व के साधन के रूप में हिंसा का सहारा लेने के साथ आतंकवादी समूहों में भी शामिल हो सकते हैं।

क्षेत्र में स्थायी शांति और सामान्य स्थिति स्थापित करने हेतु कुछ संभावित उपाय:

  • राजनीतिक संवाद: सरकार को हिंसा तथा समस्याओं के मूल कारणों को दूर करने के लिये विद्रोही समूहों, नागरिक समाज संगठनों एवं क्षेत्रीय नेताओं सहित क्षेत्र के विभिन्न हितधारकों से विचार-विमर्श करना चाहिए।
  • जातीय सद्भाव: सरकार तथा नागरिक समाज को विश्वास-निर्माण उपायों, सांस्कृतिक आदान-प्रदान, अंतर-धार्मिक संवाद एवं संयुक्त विकास पहल के माध्यम से इस क्षेत्र में विभिन्न समूहों के बीच जातीय सद्भाव और सह-अस्तित्व को बढ़ावा देना चाहिए।
    • सरकार को सांप्रदायिक हिंसा या घृणा संबंधी अपराधों को रोकने के साथ ही दोषियों को दंडित करना चाहिए।
  • भू-राजनीतिक सहयोग: सरकार को आतंकवाद, तस्करी, ट्रैफिकिंग एवं सीमा पारीय प्रवासन जैसे मुद्दों से निपटने के लिये पड़ोसी देशों के साथ अपना सहयोग बढ़ाना चाहिए।
    • सरकार को पूर्वोत्तर क्षेत्र के माध्यम से दक्षिण पूर्व एशिया के साथ व्यापार, कनेक्टिविटी और सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिये अपनी एक्ट ईस्ट नीति का भी लाभ उठाना चाहिए।
  • सामाजिक-आर्थिक विकास: सरकार को बुनियादी ढाँचे, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, रोज़गार, शासन और पर्यावरण संरक्षण में सुधार करके इस क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास में अधिक निवेश करना चाहिए।
    • सरकार को निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में लोगों की भागीदारी और सशक्तीकरण को भी प्रोत्साहित करना चाहिए।

पूर्वोत्तर क्षेत्र एक समृद्ध और विविधतापूर्ण क्षेत्र है जिसमें विकास तथा समृद्धि की अपार संभावनाएँ हैं। हालाँकि इस क्षेत्र में कई चुनौतियाँ भी विद्यमान हैं जिससे हिंसा और अस्थिरता को जन्म मिलता है। बातचीत, सद्भाव, सहयोग और विकास के माध्यम से इन चुनौतियों का समाधान करके इस क्षेत्र में स्थायी शांति प्राप्त हो सकती है। इससे न केवल इस क्षेत्र को बल्कि पूरे देश को लाभ होगा।