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दिवस-14: वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने के भारत के लक्ष्य का इसकी विकासात्मक एवं जलवायु कार्रवाइयों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? इस लक्ष्य को हासिल करने में भारत के समक्ष विद्यमान चुनौतियों एवं अवसरों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

01 Aug 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | पर्यावरण

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • शुद्ध शून्य उत्सर्जन की अवधारणा और वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने के भारत के लक्ष्य के बारे में बताते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
  • चर्चा कीजिये कि वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने के भारत के लक्ष्य का इसकी विकासात्मक एवं जलवायु कार्रवाइयों पर क्या प्रभाव पड़ेगा। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के क्रम में भारत के समक्ष उत्पन्न चुनौतियों और अवसरों पर भी चर्चा कीजिये।
  • उचित निष्कर्ष दीजिये।

शुद्ध शून्य उत्सर्जन का आशय ऐसी स्थिति से है जिसमें वायुमंडल में उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैस की मात्रा, प्राकृतिक या कृत्रिम तरीकों से अवशोषित मात्रा के बराबर होती है। इसका तात्पर्य यह है कि वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता में कोई शुद्ध वृद्धि नहीं होती है।

भारत ने हाल ही में ग्लासगो में COP26 शिखर सम्मेलन के दौरान वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने के अपने लक्ष्य की घोषणा की है। यह किसी भी विकासशील देश द्वारा की गई सबसे महत्त्वाकांक्षी प्रतिज्ञाओं में से एक है। भारत विश्व स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड का चौथा सबसे बड़ा उत्सर्जक है, लेकिन इसकी आबादी अधिक होने से प्रति व्यक्ति उत्सर्जन का स्तर काफी कम है। भारत का शुद्ध शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य उसकी विकास आवश्यकताओं को जलवायु उत्तरदायित्व के साथ संतुलित करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

मुख्य भाग:

वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने के भारत के लक्ष्य का इसकी विकासात्मक एवं जलवायु कार्रवाइयों पर पड़ने वाला संभावित प्रभाव:

  • इसके लिये भारत को नवीकरणीय ऊर्जा में हिस्सेदारी बढ़ाकर, अपनी ऊर्जा दक्षता में सुधार करके, जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करके तथा उद्योग, परिवहन एवं कृषि जैसे विभिन्न क्षेत्रों में स्वच्छ प्रौद्योगिकियों और प्रथाओं को अपनाकर निम्न कार्बन अर्थव्यवस्था की ओर अपने संक्रमण को तीव्र करना होगा।
  • इसके लिये भारत को अपने वन क्षेत्र का विस्तार करके बंजर भूमि को बहाल कर आर्द्रभूमि और मैंग्रोव जैसे प्राकृतिक कार्बन सिंक को बढ़ावा देने तथा कृत्रिम कार्बन कैप्चर एवं भंडारण प्रौद्योगिकियों को विकसित करके वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को हटाने की अपनी क्षमता बढ़ाने की आवश्यकता होगी।
  • इसके लिये भारत को अपने आपदा जोखिम प्रबंधन में सुधार करने, अपने कमज़ोर समुदायों तथा पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करने, अपनी आजीविका एवं आय स्रोतों में विविधता लाने तथा जलवायु-स्मार्ट बुनियादी ढाँचे और सेवाओं में निवेश करके जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अपने लचीलेपन तथा अनुकूलन को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
  • इसके लिये भारत को वित्त, प्रौद्योगिकी और क्षमता निर्माण हेतु अन्य विकासशील देशों का समर्थन करके वैश्विक जलवायु कार्रवाई में अपना सहयोग एवं नेतृत्व बढ़ाने की आवश्यकता है।

वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्त करने के भारत के संभावित अवसर और चुनौतियाँ:

  • चुनौतियाँ:
    • अपनी बड़ी आबादी की बढ़ती ऊर्जा मांग को पूरा करना।
    • सस्ती और सुलभ विद्युत तक सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करना।
    • जीवाश्म ईंधन पर सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के क्रम में सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक बाधाओं पर नियंत्रण पाना।
    • कोयला-निर्भर क्षेत्रों एवं श्रमिकों की चिंताओं को हल करने के साथ निम्न-कार्बन विकास के लिये पर्याप्त वित्त, प्रौद्योगिकी और नवाचार को प्रोत्साहन देना।
  • अवसर:
    • भारत की प्रचुर नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता, विशेषकर सौर और जल विद्युत क्षमता का लाभ उठाना।
    • हरित क्षेत्र से संबंधित नौकरियों एवं व्यवसायों के लिये भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश तथा उद्यमशीलता का लाभ उठाना।
    • निम्न-कार्बन उत्सर्जन से संबंधित भारत की मौजूदा नीतियों और कार्यक्रमों का लाभ उठाना। जैसे- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना, राष्ट्रीय विद्युत योजना, राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन आदि।
    • घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वित्त, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार के नए स्रोतों तक पहुँच बनाने के साथ जलवायु परिवर्तन पर एक ज़िम्मेदार हितधारक के रूप में भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा और प्रभाव को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष:

  • वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन का भारत का लक्ष्य एक साहसिक और दूरदर्शी प्रतिबद्धता है जिससे जलवायु परिवर्तन से संबंधित इसकी जिम्मेदारी एवं नेतृत्व का प्रदर्शन होता है। भारत को इस लक्ष्य को प्रभावी ढंग से एवं कुशलता से प्राप्त करने के लिये भागीदारी के साथ अनुकूली दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। भारत को राष्ट्रीय प्राथमिकता एवं वैश्विक ज़िम्मेदारी के रूप में निम्न-कार्बन विकास को बढ़ावा देने के लिये नवीकरणीय ऊर्जा, हरित नवाचार, सांस्कृतिक विविधता तथा वैश्विक भागीदारी में अपनी क्षमता का लाभ उठाने की भी आवश्यकता है।