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दिवस-14: पर्यावरणीय और सामाजिक चुनौतियों का समाधान करने के क्रम में प्रकृति-आधारित समाधान (NBS) के तहत ऐसी प्रणालियाँ शामिल होती हैं जिनमें प्राकृतिक प्रक्रियाओं एवं पारिस्थितिकी तंत्र का उपयोग किया जाता है। NBS की अवधारणा को समझाते हुए भारत में सतत् विकास हेतु इसके संबंधित लाभों और चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

01 Aug 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | पर्यावरण

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • प्रकृति-आधारित समाधान (NBS) की अवधारणा का परिचय दीजिये।
  • चर्चा कीजिये कि किस प्रकार प्रकृति-आधारित समाधान (NBS) के तहत पर्यावरणीय और सामाजिक चुनौतियों का समाधान करने के क्रम में ऐसी प्रणालियाँ शामिल होती हैं जिनमें प्राकृतिक प्रक्रियाओं एवं पारिस्थितिकी तंत्र का उपयोग किया जाता है।
  • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

प्रकृति-आधारित समाधान के तहत ऐसी प्रणालियाँ शामिल होती हैं जिनमें प्राकृतिक प्रक्रियाओं एवं पारिस्थितिकी तंत्र का उपयोग किया जाता है। इनका उद्देश्य लोगों और प्रकृति दोनों के लिये लाभ प्रदान करते हुए प्राकृतिक तथा संशोधित पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा करना, इनका स्थायी रूप से प्रबंधन करना या इन्हें पुनर्स्थापित करना है। NBS के कुछ उदाहरणों में वनों, आर्द्रभूमि और मैंग्रोव को बहाल करना, जलवायु-अनुकूल कृषि को बढ़ावा देना तथा शहरी क्षेत्रों में हरित बुनियादी ढाँचे को लागू करना है।

NBS से भारत को सतत् विकास हेतु विभिन्न लाभ मिल सकते हैं जैसे:

  • यह कार्बन पृथक्करण को बढ़ाकर, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करके तथा चरम मौसमी घटनाओं के प्रति अनुकूलन बढ़ाकर जलवायु परिवर्तन की तीव्रता को कम करने पर केंद्रित है। NBS द्वारा पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये आवश्यक शमन में 37% तक का योगदान किया जा सकता है।
  • यह जल प्रवाह को विनियमित करने, जल से प्रदूषकों को हटाने तथा भूजल को रिचार्ज करके जल सुरक्षा तथा गुणवत्ता में सुधार करने में सहायक है। NBS द्वारा भारत में लाखों लोगों को प्रभावित करने वाले मुद्दों जैसे- जल की कमी, प्रदूषण और बाढ़ की चुनौतियों से निपटने में सहायता मिल सकती है।
  • यह फसल की पैदावार बढ़ाकर, आय स्रोतों में विविधता लाकर तथा इसमें उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशीलता को कम करके खाद्य सुरक्षा एवं आजीविका के अवसर बढ़ाने में सहायक है। NBS जलवायु-अनुकूल कृषि, मत्स्य पालन तथा वानिकी में भूमिका निभाकर हरित रोज़गार और उद्यम में सहायक हो सकता है।
  • यह जीवों के आवासों, प्रजातियों तथा आनुवंशिक विविधता को बनाए रखने या पुनर्स्थापित करके जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के संरक्षण में सहायक है। NBS भारत की समृद्ध प्राकृतिक विरासत के संरक्षण के साथ मानव कल्याण एवं विकास में भूमिका निभा सकता है।

हालाँकि भारत में NBS के समक्ष कुछ चुनौतियों भी विद्यमान हैं जैसे:

  • नीति निर्माताओं और लोगों के बीच NBS के महत्त्व एवं क्षमता के बारे में जागरूकता और मान्यता का अभाव है।
    • NBS को अक्सर विकास योजना और निर्णय लेने के अभिन्न घटकों के बजाय पारंपरिक समाधानों के द्वितीयक या वैकल्पिक विकल्प के रूप में देखा जाता है।
  • कई परिणामों पर NBS की प्रभावशीलता और प्रभाव का आकलन करने के लिये पर्याप्त डेटा, साक्ष्य तथा उपकरणों का अभाव है। NBS के लिये मज़बूत निगरानी और मूल्यांकन ढाँचे की आवश्यकता होती है।
  • NBS के डिज़ाइन, कार्यान्वयन और प्रबंधन हेतु पर्याप्त धन, क्षमता एवं शासन तंत्र का अभाव है। NBS को अक्सर अपनी स्थिरता तथा इक्विटी सुनिश्चित करने के लिये दीर्घकालिक निवेश, क्रॉस-सेक्टोरल समन्वय, हितधारक भागीदारी और अनुकूली प्रबंधन की आवश्यकता होती है।

निष्कर्ष:

  • प्रकृति-आधारित समाधान से सतत् विकास हेतु अपार संभावनाएँ होती हैं। पारिस्थितिकी तंत्र तथा प्राकृतिक प्रणालियों की शक्ति का उपयोग करते हुए NBS से पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान होने के साथ जलवायु परिवर्तन की तीव्रता में कमी लाकर जल प्रबंधन को बढ़ावा मिल सकता है। हालाँकि इसके प्रभावी कार्यान्वयन हेतु जागरूकता बढ़ाने, संसाधनों को सुरक्षित करने एवं विकास प्राथमिकताओं तथा संरक्षण उद्देश्यों के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता है।