31 Jul 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | अर्थव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- परिचय: राजकोषीय स्थिरता का संक्षिप्त परिचय देते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- मुख्य भाग: उन विभिन्न कारकों का उल्लेख कीजिये जिनके कारण राज्यों को राजकोषीय स्थिरता के मुद्दे का सामना करना पड़ रहा है। इनके निहितार्थ को बताते हुए राज्यों की राजकोषीय स्थिरता को बढ़ावा देने हेतु उपाय बताइये।
- निष्कर्ष: मुख्य बिंदुओं को बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।
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राजकोषीय स्थिरता का आशय सरकार द्वारा अपने राजस्व व्यय को विवेकपूर्ण और स्थिर तरीके से प्रबंधित करने की क्षमता से है। आर्थिक विकास को बढ़ावा देने, गरीबी को कम करने तथा अंतर-पीढ़ीगत समानता सुनिश्चित करने के लिये राजकोषीय स्थिरता आवश्यक है।
बारहवें वित्त आयोग के बाद के वित्त आयोगों के आकलन में तीन राज्यों अर्थात केरल, पंजाब और पश्चिम बंगाल को राजकोषीय रूप से तनावग्रस्त राज्यों के रूप में संदर्भित किया गया है। अब राजकोषीय रूप से तनावग्रस्त राज्यों की संख्या बढ़कर 7 हो गई है।
हालाँकि भारत में कई राज्यों को विभिन्न कारकों से राजकोषीय स्थिरता के मुद्दों का सामना करना पड़ा है जैसे:
- जीएसटी, आर्थिक मंदी और कोविड-19 महामारी के प्रभाव के कारण इनके कर राजस्व वृद्धि में होना।
- वेतन, पेंशन, ब्याज भुगतान और सब्सिडी पर अधिक खर्च होना।
- उच्च उधार आवश्यकताओं के कारण ऋण का बोझ बढ़ रहा है (विशेष रूप से विद्युत क्षेत्र में सुधारों के लिये उदय योजना के कार्यान्वयन तथा COVID-19 के कारण खर्च में होने वाली वृद्धि)।
- राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों और सार्वजनिक-निजी भागीदारी के तहत दी गई गारंटी जैसे ऑफ-बजट उधार एवं आकस्मिक देनदारियों की रिपोर्टिंग में पारदर्शिता एवं जवाबदेही का अभाव होना।
- चुनाव प्रचार के दौरान या सत्ता में आने के बाद राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त उपहार या लोकलुभावन योजनाएँ जैसे मुफ्त बिजली, पानी, खाद्यान्न, लैपटॉप, साइकिल, ऋण माफी आदि को शुरू करना।
- रिपोर्टों के अनुसार, विभिन्न राज्यों में मुफ्त में प्रदान की जाने वाली वस्तुओं पर व्यय सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) का 0.1 - 2.7 प्रतिशत के बीच है।
राजकोषीय स्थिरता संबंधी इन मुद्दों का अर्थव्यवस्था तथा सार्वजनिक सेवाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जैसे:
- उच्च ऋण सेवा लागत और राजकोषीय जोखिमों के कारण निजी निवेश में कमी के साथ क्रेडिट रेटिंग में कमी आना।
- अपर्याप्त पूंजीगत व्यय और रखरखाव परिव्यय के कारण बुनियादी ढाँचे, स्वास्थ्य, शिक्षा एवं सामाजिक कल्याण जैसी सार्वजनिक वस्तुओं तथा सेवाओं की गुणवत्ता और मात्रा में कमी आना।
- राज्यों के बीच संसाधनों और अवसरों के असमान वितरण के कारण क्षेत्रीय असमानताओं तथा सामाजिक अशांति में वृद्धि होना।
- अपनी विकास प्राथमिकताओं पर ध्यान देने में राज्यों का कमज़ोर होना।
राज्यों के राजकोषीय प्रदर्शन और स्थिरता को बढ़ाने के उपाय:
- कर अनुपालन में सुधार करना, कर आधार का विस्तार करना, कर दरों और छूटों को तर्कसंगत बनाना, गैर-कर स्रोतों में विविधता लाना और डिजिटल प्रौद्योगिकी का लाभ उठाकर अपने राजस्व संग्रहण को मज़बूत करना।
- फिजूलखर्ची और अनुत्पादक खर्चों को कम करना, सार्वजनिक सेवा वितरण की दक्षता एवं प्रभावशीलता को बढ़ाना, विकासात्मक क्षेत्रों में पूंजी परिव्यय में वृद्धि करना तथा ज़रूरतमंदों के लिये सब्सिडी सुनिश्चित कर उनके तार्किक खर्च को प्राथमिकता देना।
- बहुपक्षीय एजेंसियों से रियायती वित्तपोषण का लाभ उठाना, ऑफ-बजट उधार एवं आकस्मिक देनदारियों में कमी लाने के साथ अपने ऋण का विवेकपूर्ण प्रबंधन करना।
- समय पर और व्यापक तरीके से सभी प्रासंगिक राजकोषीय जानकारी का प्रदर्शन करना, परिणाम-आधारित बजट एवं प्रदर्शन संकेतकों को अपनाना, नियमित ऑडिट और मूल्यांकन करना तथा हितधारकों के साथ जुड़कर अपनी राजकोषीय पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देना।
राजकोषीय स्थिरता, किसी राज्य के आर्थिक एवं सामाजिक कल्याण का एक प्रमुख निर्धारक है। भारत में राज्यों को संरचनात्मक और चक्रीय कारकों के कारण राजकोषीय स्थिरता प्राप्त करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। हालाँकि उचित राजकोषीय नीतियों तथा सुधारों को लागू करके राज्य अपने राजकोषीय प्रदर्शन एवं स्थिरता में सुधार कर सकते हैं, जिससे देश के समग्र विकास में योगदान मिल सकता है।