28 Jul 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCSTs) और इसकी उत्पत्ति का परिचय दीजिये।
- उल्लेख कीजिये कि संवैधानिक संस्था होते हुए भी यह आयोग एक अकार्यात्मक वृद्ध बाघ कैसे बन गया है। इसके साथ ही इसे और अधिक कुशल संस्थान बनाने के लिये आगे की राह भी बताइये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCSTs) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 338A के तहत स्थापित एक संवैधानिक निकाय है।
इसकी स्थापना भारत में अनुसूचित जनजातियों (STs) के अधिकारों और हितों की रक्षा के उद्देश्य से की गई थी। NCSTs संवैधानिक सुरक्षा उपायों के कार्यान्वयन की निगरानी, कल्याणकारी उपायों की समीक्षा एवं शिकायतों का समाधान करके ST समुदायों के कल्याण और विकास को सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। संवैधानिक संस्था होने के बावजूद हाल के दिनों में NCSTs की असहाय वृद्ध बाघ के रूप में आलोचना की गई है। इस स्थिति के लिये कई कारण ज़िम्मेदार हैं।
- NCSTs, राजनीतिक हस्तक्षेप और नौकरशाही तथा लालफीताशाही के मुद्दों से त्रस्त है। इसके सदस्यों की नियुक्ति प्रक्रिया में अक्सर देरी होने के साथ यह राजनीतिक विचारों से प्रभावित रहा है, जिससे आयोग के अंदर मज़बूत और स्वतंत्र नेतृत्व की कमी देखी गई है।
- लंबे समय तक आयोग का क्रियाशील न रहना। उदाहरण: संसदीय समिति की रिपोर्ट के अनुसार, NCSTs पिछले चार वर्षों से निष्क्रिय है और उसने संसद को एक भी रिपोर्ट नहीं दी है।
- NCSTs को अपनी सलाहकारी प्रकृति के कारण अपनी सिफारिशों को लागू करने और उनके कार्यान्वयन सुनिश्चित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- इसकी कई रिपोर्टें और सिफारिशें लागू नहीं की गई हैं या संबंधित अधिकारियों द्वारा उन पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है।
- इसे मिलने वाली शिकायतों और उनके समाधान लंबित रहने की दर भी 50% के करीब है।
- NCSTs को अपर्याप्त फंडिंग और अपर्याप्त स्टाफ जैसी बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इन सीमाओं के कारण आयोग अपने कार्यों को प्रभावी ढंग से एवं कुशलतापूर्वक पूरा करने में विफल रहा है।
- पर्याप्त संसाधनों के अभाव के कारण यह आयोग किसी मामले की सही से जाँच करने, इनके कार्यान्वयन की निगरानी और समय पर हस्तक्षेप करने में विफल रहता है।
NCSTs को अधिक कुशल संस्थान बनाने हेतु कुछ कदम उठाए जा सकते हैं जैसे:
- नियुक्ति प्रक्रिया को मज़बूत करना: NCSTs के सदस्यों की नियुक्ति राजनीतिक प्रभावों के बजाय योग्यता और विशेषज्ञता पर आधारित होनी चाहिये। इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि जनजातीय मुद्दों की गहरी समझ रखने वाले सक्षम व्यक्ति ही आयोग का नेतृत्व करेंगे।
- स्वतंत्रता और स्वायत्तता को बढ़ावा देना: NCSTs को बिना किसी हस्तक्षेप के अपने कार्यों को पूरा करने के लिये अधिक स्वायत्तता प्रदान की जानी चाहिये। इसके पास अपनी सिफारिशों को लागू करने और उनके कार्यान्वयन हेतु ज़िम्मेदार अधिकारियों को जवाबदेह ठहराने की शक्ति होनी चाहिये।
- पर्याप्त धन और संसाधन उपलब्ध कराना: इस आयोग को अपनी ज़िम्मेदारियों को प्रभावी ढंग से पूरा करने के लिये पर्याप्त वित्तीय संसाधन और स्टाफ उपलब्ध कराया जाना चाहिये। इससे यह व्यापक अनुसंधान, जाँच और निगरानी गतिविधियों का संचालन करने में सक्षम होगा।
- सहयोग और समन्वय को मज़बूत करना: आदिवासी कल्याण और विकास के प्रति समन्वित दृष्टिकोण सुनिश्चित करने के लिये NCSTs को अन्य संबंधित सरकारी निकायों, नागरिक समाज संगठनों और आदिवासी समुदायों के साथ समन्वय से कार्य करना चाहिये। इससे नीतियों और कार्यक्रमों के प्रभावी कार्यान्वयन में मदद मिलेगी।
एक संवैधानिक निकाय होने के बावजूद NCSTs के समक्ष विद्यमान चुनौतियों के कारण भारत में अनुसूचित जनजातियों के समक्ष आने वाले मुद्दों को हल करने में इसकी प्रभावशीलता में बाधा उत्पन्न हुई है। इसे एक कुशल और उपयुक्त संस्थान में बदलने के लिये राजनीतिक हस्तक्षेप से संबंधित मुद्दों को हल करना, स्वतंत्रता एवं स्वायत्तता को बढ़ावा देना, पर्याप्त संसाधन आवंटित करना तथा हितधारकों के साथ सहयोग को बढ़ावा देना आवश्यक है। इन उपायों के माध्यम से NCSTs अपने संवैधानिक जनादेश को पूरा करने के साथ देश में अनुसूचित जनजातियों के कल्याण और विकास को सुनिश्चित कर सकता है।