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  • 28 Jul 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस-11. केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम और दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम में हाल ही में हुए संशोधन से केंद्रीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों के कार्य में किस प्रकार से बदलाव आएगा? विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • केंद्रीय सतर्कता आयोग और दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम का परिचय दीजिये।
    • बताइये कि संसद द्वारा वर्ष 2021 में केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम और दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम में किया गया संशोधन, केंद्रीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों (मुख्य रूप से केंद्रीय सतर्कता आयोग एवं प्रवर्तन निदेशालय) की कार्यप्रणाली को किस प्रकार प्रभावित करेगा।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) केंद्र सरकार में भ्रष्टाचार को रोकने के लिये मुख्य एजेंसी है, जिसकी स्थापना वर्ष 1964 में भ्रष्टाचार निवारण पर गठित संथानम समिति (1962-64) की सिफारिश पर एक कार्यकारी प्रस्ताव द्वारा की गई थी।

    केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो को अन्वेषण करने की शक्ति दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 से प्राप्त होती है।

    • केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम और दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम में हाल ही में किये गए संशोधन:
      • केंद्रीय सतर्कता आयोग (संशोधन) विधेयक, 2021: इसमें लोक हित में प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक के कार्यकाल को एक बार में एक वर्ष तक बढ़ाने का प्रावधान किया गया है, जब तक कि इसमें उल्लिखित अवधि सहित कुल मिलाकर पाँच वर्ष पूरे नहीं हो जाते हैं।
      • दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (संशोधन) विधेयक, 2021: इसमें लोक हित में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो के निदेशक के कार्यकाल को एक बार में एक वर्ष तक बढ़ाने का प्रावधान किया गया है, जब तक कि उल्लिखित अवधि सहित कुल मिलाकर पाँच वर्ष पूरे नहीं हो जाते हैं।
        • इससे पहले राष्ट्रपति ने दो अध्यादेश जारी किये थे जिसके द्वारा केंद्र सरकार को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो और प्रवर्तन निदेशालय के निदेशकों का कार्यकाल दो साल से बढ़ाकर पाँच साल तक करने की अनुमति मिली।
        • इन संशोधनों का उद्देश्य केंद्रीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों की दक्षता और प्रभावशीलता को बढ़ाना था।

    केंद्रीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर इन संशोधनों का प्रभाव:

    सकारात्मक प्रभाव:

    • इन संशोधनों से CBI और ED के निदेशकों को सरकार या अन्य बाहरी कारकों के बिना किसी रुकावट या दबाव के अपनी जाँच जारी रखने की क्षमता प्राप्त होगी।
    • संशोधनों से इन एजेंसियों की स्वायत्तता और स्वतंत्रता में वृद्धि हो सकती है क्योंकि इन्हें अपने कार्यकाल में कटौती या इसे मनमाने ढंग से समाप्त किये जाने के बारे में चिंता नहीं करनी होगी।
    • ये संशोधन इन एजेंसियों के नेतृत्व और कार्यप्रणाली में निरंतरता तथा स्थिरता सुनिश्चित कर सकते हैं, जिससे उनकी दक्षता एवं प्रभावशीलता में सुधार हो सकता है।
    • संशोधनों से उन निदेशकों की विशेषज्ञता और अनुभव को बनाए रखने में भी मदद मिल सकती है, जिन्होंने अपने संबंधित डोमेन में ज्ञान और कौशल प्राप्त किया है।

    नकारात्मक प्रभाव:

    • ये संशोधन इन निदेशकों के संबंध में निश्चित कार्यकाल के सिद्धांत को कमज़ोर कर सकते हैं, जिसे राजनीतिक हस्तक्षेप को रोकने और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये विनीत नारायण (1997) एवं कॉमनकॉज़ (2021) मामलों में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्थापित किया गया था।
    • इन संशोधनों से सरकार द्वारा शक्ति के दुरुपयोग किये जाने की संभावना है, क्योंकि वह बिना किसी वस्तुनिष्ठ मानदंड या पारदर्शी प्रक्रिया के अपनी पसंद के आधार पर इन निदेशकों के कार्यकाल का विस्तार कर सकती है।
    • इन संशोधनों से अन्य पात्र अधिकारियों (जो इन एजेंसियों के निदेशक के रूप में नियुक्त होने के उचित अवसर से वंचित हो सकते हैं) के समानता के अधिकार का भी उल्लंघन हो सकता है, क्योंकि इस पद पर व्यक्ति लंबे समय तक बने रह सकते हैं।
    • किसी एक व्यक्ति के लंबे समय तक पद पर बने रहने के कारण इन संशोधनों से एजेंसियों के अन्य अधिकारियों के मनोबल और प्रेरणा पर भी प्रभाव पड़ सकता है क्योंकि वे जीवन में उन्नति की कम संभावना जैसी भावना से ग्रसित हो सकते हैं।

    केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम और दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम में संशोधन केंद्रीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों की कार्यप्रणाली में महत्त्वपूर्ण बदलावों का प्रतीक है। इन एजेंसियों के स्वायत्त एवं कुशल कामकाज के लिये एक ऐसी संस्था की आवश्यकता है जो इनके प्रदर्शन और विश्वसनीयता में सुधार ला सके। हालाँकि यह सुनिश्चित करने की भी आवश्यकता है कि इससे इन एजेंसियों को निर्देशित करने वाले संवैधानिक मूल्यों और सिद्धांतों से समझौता न हो।

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