28 Jul 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- अधिक सदस्यों के बैठने की क्षमता वाले नए संसद भवन के उद्घाटन के बारे में बताते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
- देश में संसद के सीट आवंटन का पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता पर चर्चा कीजिये जिसे पूर्व के संविधान संशोधनों के अनुसार वर्ष 2026 के बाद बढ़ाया जा सकता है।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
|
नए संसद भवन में लोकसभा के 888 और राज्यसभा के 384 सदस्यों के बैठने की क्षमता है। इसमें एक भव्य सभा कक्ष, एक पुस्तकालय, सांसदों के लिये एक लाउंज और कई समिति कक्ष तथा भोजन कक्ष हैं। इसे पर्यावरण-अनुकूल बनाने के साथ डिजिटल रूप से सुसज्जित किया गया है।
नए संसद भवन का महत्त्व:
- नए संसद भवन के निर्माण से भारत में संसद के सीट आवंटन की समीक्षा करने की आवश्यकता पर प्रकाश पड़ा है, जिसे अभी तक वर्ष 1971 के जनसंख्या आँकड़ों के आधार पर निर्धारित किया जाता है।
- संविधान संशोधन (84वाँ) अधिनियम, 2001 के अनुसार, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में सीटों की संख्या 2026 से पहले तक नहीं बदली जा सकती है।
- वर्ष 2021 की जनगणना (जिसे COVID-19 महामारी सहित कई कारणों से स्थगित कर दिया गया है) से भारत में नवीनतम जनसंख्या रुझान और गतिशीलता का पता चलने की उम्मीद है।
- जनगणना के आँकड़ों का निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन (जनसंख्या के आधार पर संसदीय एवं विधानसभा सीटों को निर्धारित करने की प्रक्रिया) पर प्रभाव पड़ेगा।
- निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन से संसद में विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों के प्रतिनिधित्व पर भी असर पड़ेगा। वर्तमान में जनसंख्या वृद्धि, प्रजनन दर तथा विकास संकेतकों के मामले में उत्तर एवं दक्षिण भारत के बीच व्यापक अंतर है।
- दक्षिणी राज्यों में उत्तरी राज्यों की तुलना में जनसंख्या वृद्धि कम है। इसका तात्पर्य यह है कि उन्हें लोकसभा और राज्यसभा की कुछ सीटों का नुकसान हो सकता है। इससे दक्षिणी राज्यों में क्षेत्रीय असंतुलन तथा अन्याय की भावना पैदा हो सकती है और वे यह महसूस कर सकते हैं कि जनसंख्या नियंत्रण में उनके बेहतर प्रदर्शन के लिये उन्हें दंडित किया जा रहा है।
उत्तर और दक्षिण भारत के बीच जनसंख्या असंतुलन के कारण संसद में सीटों की संख्या बढ़ने या घटने के कुछ सकारात्मक तथा नकारात्मक बिंदु हैं। कुछ सकारात्मक बिंदु निम्नलिखित हैं जैसे:
- सीटों की संख्या बढ़ाने से संसद में विभिन्न क्षेत्रों, संस्कृतियों, भाषाओं और समुदायों के प्रतिनिधित्व तथा विविधता को बढ़ावा मिल सकता है।
- सीटों की संख्या बढ़ाने से निर्वाचन क्षेत्रों का आकार भी कम हो सकता है जिससे सांसद अपने क्षेत्र के मतदाताओं की से सेवा प्रभावी ढंग से कर सकते हैं।
- सीटों की संख्या घटने से चुनाव कराने के साथ संसद के संचालन की लागत और जटिलता कम हो सकती है।
- सीटों की संख्या घटने से विभिन्न क्षेत्रों और दलों के सांसदों के बीच अधिक सहयोग तथा सहमति को भी बढ़ावा मिल सकता है।
कुछ नकारात्मक बिंदु निम्नलिखित हैं जैसे:
- सीटों की संख्या बढ़ने से चुनाव कराने और संसद के संचालन की लागत और जटिलता बढ़ सकती है।
- सीटों की संख्या बढ़ने से विभिन्न क्षेत्रों और दलों के सांसदों के बीच अधिक विखंडन और ध्रुवीकरण भी हो सकता है।
- सीटों की संख्या घटने से संसद में विभिन्न क्षेत्रों, संस्कृतियों, भाषाओं और समुदायों के प्रतिनिधित्व एवं विविधता में कमी आ सकती है।
- सीटों की संख्या घटने से निर्वाचन क्षेत्रों का आकार भी बढ़ सकता है जिससे सांसदों के लिये अपने मतदाताओं की सेवा प्रभावी ढंग से करना अधिक कठिन हो जाएगा।
इस समस्या के समाधान हेतु कुछ संभावित तरीके:
- राज्यों को सीटें आवंटित करने के क्रम में जनसंख्या आकार और मानव विकास के संतुलन पर आधारित फॉर्मूला अपनाया जाए।
- आनुपातिक प्रतिनिधित्व या मिश्रित चुनाव प्रणाली की शुरुआत की जाए जिससे विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों का उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो सके।
- अंतर-राज्यीय परिषदों, विशेष अनुदानों या संघीय नीतियों के माध्यम से क्षेत्रीय सहयोग और विकास को बढ़ावा दिया जाए।
- इस मुद्दे पर आम सहमति हेतु हितधारकों के बीच बातचीत और परामर्श को प्रोत्साहित किया जाए।
- उत्तर और दक्षिण के बीच जनसंख्या अंतर को कम करने के लिये वर्ष 2031 की जनगणना तक परिसीमन को विलंबित किया जाए।