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  • 27 Jul 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    दिवस-10. एक वैश्विक संगठन होने के बावजूद, G20 अभी भी एक समावेशी और प्रभावी संगठन नहीं बन पाया है। G20 को भविष्य हेतु और अधिक प्रासंगिक बनाने के लिये इसकी कार्यप्रणाली एवं संरचना में कौन से सुधार किये जाने की आवश्यकता है? (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • G20 और भारत द्वारा इसकी अध्यक्षता करने को बताते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • स्पष्ट कीजिये कि कैसे G20 संगठन अभी तक अफ्रीका जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के प्रतिनिधित्व के संदर्भ में समावेशी नहीं हो पाया है। इसे और अधिक कुशल एवं समावेशी बनाने हेतु उपाय बताइये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    G20 की स्थापना वर्ष 1997-98 के एशियाई वित्तीय संकट के बाद वर्ष 1999 में सबसे महत्त्वपूर्ण औद्योगिक और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों के लिये अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक और वित्तीय स्थिरता पर चर्चा करने के लिये एक अनौपचारिक मंच के रूप में की गई थी।

    G20 शिखर सम्मेलन में प्रतिवर्ष चक्रीय स्तर पर सदस्यों द्वारा अध्यक्षता की जाती है। इसके तहत शुरू में व्यापक आर्थिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया गया था और तब से इसका विस्तार करते हुए इसमें अन्य आयामों जैसे व्यापार, जलवायु परिवर्तन, सतत विकास, स्वास्थ्य, कृषि, ऊर्जा, पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और भ्रष्टाचार विरोधी पहलों को शामिल किया है।

    • 1 दिसंबर 2022 से 30 नवंबर 2023 तक G20 की अध्यक्षता भारत कर रहा है।

    हालाँकि आधुनिक विश्व की जटिल चुनौतियों से निपटने हेतु G20 की समावेशिता और दक्षता बढ़ाने के साथ इसमें सुधारों की आवश्यकता है। G20 को वर्तमान समय के लिये और अधिक प्रासंगिक बनाने के लिये कई प्रमुख सुधारों पर विचार किया जा सकता है।

    • G20 की समावेशिता को बढ़ाना: यह संगठन विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं का प्रतिनिधित्व करता है, लेकिन इसमें छोटे और विकासशील देशों (जो अक्सर G20 द्वारा लिये गए निर्णयों से प्रभावित होते हैं) को पर्याप्त रूप से शामिल नहीं किया गया है। इसका समाधान करने के लिये G20 में गैर-सदस्य देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के समन्वय को बढ़ावा देने हेतु औपचारिक तंत्र स्थापित करना चाहिये।
    • G20 के संस्थागत ढाँचे और शासन को मज़बूत करना: G20 एक अनौपचारिक मंच के रूप में कार्य करता है जो सर्वसम्मति और स्वैच्छिक अनुपालन पर निर्भर करता है। इसमें लचीलेपन से G20 की जवाबदेहिता भी सीमित होती है। इसमें अधिक औपचारिक संरचना और नियम होने चाहिये जैसे कि एक स्थायी सचिवालय, चार्टर, विवाद निपटान तंत्र और एक निगरानी तथा मूल्यांकन प्रणाली आदि। इससे G20 निर्णयों और प्रतिबद्धताओं के समन्वय एवं कार्यान्वयन को बढ़ावा मिल सकता है।
    • सबसे महत्त्वपूर्ण और प्रासंगिक वैश्विक मुद्दों पर ध्यान देना: G20 की स्थापना वर्ष 2008 के वित्तीय संकट की प्रतिक्रया में की गई थी और यह मुख्य रूप से वित्तीय विनियमन और स्थिरता पर केंद्रित था। तब से व्यापक विषयों को कवर करने के लिये G20 का विस्तार किया गया है। हालाँकि इसका आशय यह भी है कि एक साथ कई मुद्दों को हल करने की कोशिश से G20 की प्रभावशीलता कम होने का जोखिम है। G20 को ऐसी सबसे जरूरी और आम चुनौतियों को प्राथमिकता देनी चाहिये जिनके लिये सामूहिक कार्रवाई और बहुपक्षीय सहयोग की आवश्यकता है।
    • सहभागिता को बढ़ना: G20 को नागरिक समाज और गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) के साथ अपनी सहभागिता बढ़ानी चाहिये। नागरिक समाज के विविध दृष्टिकोणों से G20 की निर्णय लेने की प्रक्रिया को तार्किक करने हेतु मूल्यवान अंतर्दृष्टि और विशेषज्ञता प्राप्त हो सकती है। गैर सरकारी संगठनों और नागरिक समाज संगठनों के साथ बातचीत और परामर्श के लिये मंच बनाने से यह सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है कि G20 के कार्य व्यापक वैश्विक समुदाय के हितों और आकांक्षाओं के अनुरूप हों।

    वर्तमान समय में अधिक प्रासंगिक और प्रभावी संगठन बनने हेतु G20 में महत्त्वपूर्ण सुधार करने की आवश्यकता है। समावेशिता, जवाबदेहिता, स्थिरता और नागरिक समाज के साथ समन्वय को बढ़ाकर, G20 द्वारा विश्व के समक्ष आने वाली जटिल चुनौतियों का बेहतर ढंग से समाधान हो सकता है और यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि उसके फैसलों का वैश्विक समुदाय पर सकारात्मक प्रभाव पड़े।

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