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27 Jul 2023
सामान्य अध्ययन पेपर 2
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
दिवस-10. भारत को अपने व्यापारिक भागीदारों के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। व्याख्या कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- मुक्त व्यापार समझौते को बताते हुए इस पर हस्ताक्षर करने के भारत के हालिया उदाहरणों का परिचय दीजिये।
- भारत द्वारा हस्ताक्षरित पिछले FTA से संबंधित मुद्दों के बारे में बताते हुए चर्चा कीजिये कि भारत को अपने व्यापारिक साझेदारों के साथ मुक्त व्यापार समझौते के बारे में पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। इस संदर्भ में आगे की राह बताइये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
मुक्त व्यापार समझौता (FTA) दो या दो से अधिक देशों के बीच आयात और निर्यात संबंधी बाधाओं को कम करने के लिये एक समझौता है। मुक्त व्यापार नीति के तहत वस्तुओं और सेवाओं को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत कम या बिना किसी सरकारी टैरिफ, कोटा एवं विनिमय के स्वतंत्र रूप से खरीदा और बेचा जा सकता है। मुक्त व्यापार की अवधारणा, व्यापार संरक्षणवाद या आर्थिक अलगाववाद के विपरीत है। भारत द्वारा हस्ताक्षरित कुछ हालिया FTA के उदाहरण में भारत-UAE CEPA (2022), भारत-मॉरीशस CECPA (2021) शामिल हैं।
भारत को कई कारकों से अपने व्यापारिक भागीदारों के साथ अपने मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) का पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता है जैसे:
- व्यापार असंतुलन: इन समझौतों के तहत भारत को अपने कई प्रमुख व्यापारिक भागीदारों के साथ व्यापार घाटा हुआ है। इसके घरेलू उद्योगों पर नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं, क्योंकि उन्हें सस्ते आयात से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है, जिससे बेरोज़गारी में वृद्धि होती है।
- क्षेत्र-विशिष्ट मुद्दे: विभिन्न उद्योगों में प्रतिस्पर्धात्मकता और संवेदनशीलता के स्तर अलग-अलग होते हैं। कुछ क्षेत्रों को नए बाज़ारों तक पहुँच और निर्यात बढ़ाकर FTA से काफी फायदा हो सकता है जबकि अन्य में आयात के कारण प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ सकता है। भारत को विशिष्ट क्षेत्रों पर FTA के प्रभाव का सावधानीपूर्वक आकलन करने और उन क्षेत्रों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है जो अर्थव्यवस्था के लिये रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण हैं। उदाहरण के लिये भारत के डेयरी उद्योग को ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा।
- बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR): FTA में अक्सर बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित प्रावधान शामिल होते हैं। भारत को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि इन समझौतों में आईपीआर प्रावधानों की रक्षा एवं आवश्यक दवाओं, प्रौद्योगिकी और ज्ञान तक किफायती पहुँच के बीच संतुलन बनाए रखा जा सके।
- FTA को संशोधित करने से भारत के विकासात्मक लक्ष्यों एवं घरेलू हितों की रक्षा का ध्यान रखा जा सकेगा।
- गैर-टैरिफ बाधाएँ: टैरिफ को कम करना FTA का प्राथमिक उद्देश्य होता है लेकिन गैर-टैरिफ बाधाएँ (NTBs) भी व्यापार में बाधक हो सकती हैं।
- भारत को NTBs से संबंधित चुनौतियों का समाधान करने में मौजूदा FTAs की प्रभावशीलता का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिये और ऐसे समझौतों पर बल देना चाहिये जिससे निर्यातकों के लिये समान अवसर सुनिश्चित हो सकें। सीमा शुल्क प्रक्रियाओं, तकनीकी मानकों से संबंधित मुद्दों को हल करने के साथ सैनिटरी एवं फाइटोसैनिटरी उपायों को अपनाकर बाज़ार तक पहुँच बढ़ाने के साथ व्यापार को सुविधाजनक बनाया जा सकता है।
- घरेलू बाज़ार तक पहुँच: भारत को यह मूल्यांकन करने की आवश्यकता है कि उसके FTAs किस सीमा तक उसके घरेलू उद्योगों और सेवाओं के लिये बाज़ार तक पहुँच प्रदान करते हैं। विदेशी निवेश को आकर्षित करना तो महत्त्वपूर्ण है लेकिन यह सुनिश्चित करना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है कि घरेलू कंपनियाँ अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में निष्पक्ष रूप से प्रतिस्पर्धा कर सकें।
- FTAs पर पुनर्विचार करने से भारत के हितों के अनुकूल क्षेत्रों की पहचान करने के साथ पारस्परिक बाजार पहुँच को बढ़ावा देने वाले प्रावधानों पर बातचीत की जा सकती है।
- क्षेत्रीय और वैश्विक गतिशीलता: भू-राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य लगातार परिवर्तित होता रहता है। भारत को नियमित रूप से अपने व्यापारिक साझेदारों, क्षेत्रीय समूहों तथा वैश्विक व्यापार व्यवस्थाओं की बदलती गतिशीलता का आकलन करना चाहिये।
- यह आकलन उभरते अवसरों और चुनौतियों की पहचान करने में मदद करेगा और भारत को अपनी व्यापार नीतियों को तदनुसार परिवर्तित करने में सक्षम करेगा।
भारत अपनी FTA नीति में सुधार के लिये कुछ संभावित कदम उठा सकता है जैसे:
- अपने मौजूदा और प्रगतिशील FTA समझौतों की व्यापक समीक्षा और मूल्यांकन करना: भारत को व्यापार गतिशीलता, व्यापार संतुलन, मूल्य संवर्धन, रोजगार सृजन, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, पर्यावरण संरक्षण इत्यादि जैसे विभिन्न संकेतकों के आधार पर अपने FTA के प्रदर्शन और प्रभाव का मूल्यांकन करना चाहिये। इसे अपने FTA के कार्यान्वयन और उपयोग में अंतराल और चुनौतियों की भी पहचान करनी चाहिये जैसे कि ROO मुद्दे, NTBs मुद्दे, विवाद निपटान मुद्दे इत्यादि। इस मूल्यांकन के आधार पर भारत को अपने हितों की रक्षा के लिये जहाँ आवश्यक हो उसके अनुसार अपने FTA पर पुनर्विचार या संशोधन करना चाहिये।
- नए FTA समझौतों में गुणवत्ता को प्राथमिकता देना: भारत को अपने FTA साझेदारों को चुनने और नए FTA पर बातचीत करने में अधिक चयनात्मक और केंद्रित होना चाहिये। इसे उन देशों या क्षेत्रों को लक्षित करना चाहिये जो भारत के व्यापार और निवेश हितों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। इसे यह भी सुनिश्चित करना चाहिये कि नए FTA भारत के आर्थिक विकास के लिये सभी प्रासंगिक क्षेत्रों और मुद्दों को शामिल करने में व्यापक और संतुलित हैं। इसके अलावा इसे अन्य मौजूदा या प्रस्तावित FTA या बहुपक्षीय समझौतों के साथ विरोधाभासी प्रतिबद्धताओं से बचना चाहिये।
- FTA में संलग्न होने के लिये घरेलू क्षमता को मज़बूत करना: भारत को FTA पर बातचीत करने, इसका कार्यान्वयन करने और इसकी निगरानी से संबंधित अपनी संस्थागत क्षमता और समन्वय को बढ़ाना चाहिये। FTA संबंधी निर्णय लेने हेतु इसे व्यापार और निवेश से संबंधित मुद्दों पर अपने डेटा संग्रह और विश्लेषण में भी सुधार करना चाहिये। इसके अलावा इसे प्रमुख क्षेत्रों और उद्योगों में अपनी प्रतिस्पर्धात्मकता और उत्पादकता में सुधार करने एवं अर्थव्यवस्था या समाज के कुछ क्षेत्रों पर FTA के प्रतिकूल प्रभावों को हल करने के लिये आवश्यक नीतिगत सुधार और उपाय करने चाहिये।
- FTA प्रक्रिया में हितधारकों की भागीदारी के साथ परामर्श प्रक्रिया को बढ़ावा देना: भारत को FTA वार्ता और कार्यान्वयन प्रक्रिया में राज्य सरकारों, उद्योग संघों, नागरिक समाज समूहों और उपभोक्ताओं जैसे विभिन्न हितधारकों को शामिल करना और उनसे परामर्श करना चाहिये। इसे अपनी FTA नीति और गतिविधियों की पारदर्शिता को बढ़ाना चाहिये। इससे भारत के घरेलू क्षेत्रों के बीच FTA के लिये अधिक जागरूकता एवं समझ होने के साथ FTA से उत्पन्न होने वाली किसी भी चिंता या शिकायत का समाधान करने में मदद मिलेगी।
व्यापार को बढ़ावा देने और घरेलू उद्योगों की सुरक्षा के बीच संतुलन बनाने के लिये भारत के FTA पर पुनर्विचार करना आवश्यक है। इन समझौतों के प्रभाव का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करके, व्यापार असंतुलन को हल करके, संवेदनशील क्षेत्रों की रक्षा करके, निष्पक्ष बाजार पहुंच सुनिश्चित करके और उभरती क्षेत्रीय और वैश्विक गतिशीलता के साथ समन्वय स्थापित कर, भारत अपने व्यापार संबंधी लाभों को उच्चतम करने के साथ अपने समग्र आर्थिक विकास और संवृद्धि को बढ़ावा दे सकता है।