Mains Marathon

दिवस-10. उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) में एक सदस्य के रूप में भारत के शामिल होने से भारत की कूटनीतिक पहुँच को बढ़ावा मिलने के साथ भूमि एवं महासागरीय क्षेत्र में इसकी सुरक्षा को मज़बूती मिलेगी। आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)

27 Jul 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | अंतर्राष्ट्रीय संबंध

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • NATO और NATO+5 जैसी अन्य संबंधित अवधारणाओं को बताते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
  • मुख्य भाग में यह बताइये कि NATO अपने सदस्यों और अपने सुरक्षा उपायों की सुरक्षा हेतु क्या नीति अपनाता है साथ ही यह भी बताइये कि यदि भारत NATO और NATO से संबंधित संगठन में शामिल हो जाता है तो इसके क्या प्रभाव होंगे।
  • उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) एक अंतरसरकारी सैन्य गठबंधन है जिसका गठन सदस्य देशों की सामूहिक रक्षा सुनिश्चित करने के लिये वर्ष 1949 में किया गया था। NATO का प्राथमिक उद्देश्य राजनीतिक और सैन्य सहयोग के माध्यम से अपने सदस्यों की स्वतंत्रता तथा सुरक्षा को सुनिश्चित करना है।

NATO+5 वैश्विक रक्षा सहयोग को बढ़ावा देने के लिये NATO और पाँच अन्य देशों - ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, जापान, इज़राइल और दक्षिण कोरिया का समूह है। ये देश NATO के सदस्य नहीं हैं लेकिन अमेरिका के साथ इनकी द्विपक्षीय रक्षा तथा सुरक्षा संधियाँ हैं और ये सामान्य मूल्यों एवं हितों को साझा करते हैं।

मुख्य भाग:

भारत, NATO या NATO+5 का सदस्य नहीं है लेकिन आपसी हितों से संबंधित वैश्विक मुद्दों पर विभिन्न हितधारकों के साथ समन्वय करने की अपनी पहल के तहत यह इस गठबंधन के संपर्क में रहता है। भारत ने दिसंबर 2019 में ब्रुसेल्स में NATO के साथ अपनी पहली राजनीतिक वार्ता की और इस दौरान क्षेत्रीय तथा वैश्विक चुनौतियों एवं सहयोग के अवसरों पर चर्चा की गई। भारत ने मार्च 2020 में रायसीना डायलॉग में भी भाग लिया, जहाँ उसने NATO अधिकारियों के साथ अनौपचारिक वार्ता की।

NATO में भारत का शामिल होना कई कारणों से महत्त्वपूर्ण है:

  • यह अंतर्राष्ट्रीय मामलों में भारत की बढ़ती भूमिका और ज़िम्मेदारी को दर्शाता है (खासकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में,जहाँ उसे चीन तथा अन्य पक्षों से सुरक्षा चुनौतियों का सामना करना पड़ता है)।
  • इससे अमेरिका और अन्य समान विचारधारा वाले देशों (जो NATO के सदस्य या भागीदार हैं) जैसे फ्राँस, ब्रिटेन, जापान, ऑस्ट्रेलिया आदि के साथ भारत की रणनीतिक साझेदारी को बढ़ावा मिलेगा।
  • इससे भारत को आतंकवाद, साइबर सुरक्षा, समुद्री सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन आदि जैसे विभिन्न मुद्दों पर अपने दृष्टिकोण और अंतर्दृष्टि साझा करने का अवसर मिलेगा, जो उसके हितों एवं मूल्यों को प्रभावित करते हैं।
  • इससे भारत को रक्षा और सुरक्षा के विभिन्न क्षेत्रों जैसे संकट प्रबंधन, अंतरसंचालनीयता, क्षमता निर्माण आदि में NATO के अनुभव एवं विशेषज्ञता से सीखने का अवसर मिलेगा।
  • इससे वैज्ञानिक अनुसंधान, नवाचार, शिक्षा आदि जैसे पारस्परिक लाभ के क्षेत्रों में भारत एवं NATO के बीच सहयोग के नए रास्ते सृजित होंगे।

हालाँकि NATO में शामिल होने से संबंधित भारत की कुछ सीमाएँ और चुनौतियाँ भी हैं जैसे:

  • NATO या NATO+5 में सदस्य या भागीदार के रूप में शामिल होना भारत के लिये आसान नहीं है, क्योंकि भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता एवं स्वतंत्र विदेश नीति को महत्त्व देता है। भारत नहीं चाहता कि यह माना जाए कि वह किसी ऐसे गुट या गठबंधन के साथ जुड़ा है जो अन्य देशों या क्षेत्रों के साथ उसके संबंधों को प्रभावित कर सकता हो।
  • भारत एवं इस गठबंधन के देशों के समक्ष खतरे या रणनीतिक उद्देश्यों में भी अंतर है। अन्य देशों के साथ रक्षा सहयोग हेतु भारत के पास द्विपक्षीय या बहुपक्षीय तंत्र भी हैं।
  • भारत को NATO में शामिल होने से ऐसे अन्य संगठनों के साथ अपने जुड़ाव को संतुलित करना होगा जिनके कुछ मुद्दों पर भिन्न या परस्पर विरोधी विचार या हित हो सकते हैं। उदाहरण के लिये, भारत शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का सदस्य है, जिसमें चीन और रूस के साथ-साथ मध्य एशियाई देश भी शामिल हैं। SCO ने अक्सर विभिन्न मामलों पर NATO के कार्यों या नीतियों की आलोचना की है।
  • भारत को 31 संप्रभु राज्यों के गठबंधन के रूप में NATO की जटिलता और विविधता का सामना करना होगा, जिनकी कुछ मुद्दों पर अलग-अलग राय या स्थिति हो सकती है। उदाहरण के लिये कुछ NATO सदस्यों के पाकिस्तान या तुर्की के साथ घनिष्ठ संबंध हैं, जो भारत के हितों के लिये चुनौतियाँ पैदा कर सकते हैं।

भारत को रणनीतिक स्वायत्तता को सर्वोच्च प्राथमिकता देने के साथ अपनी गुटनिरपेक्ष विदेश नीति के दृष्टिकोण को बरकरार रखना चाहिये। हालांकि विशिष्ट मामलों पर NATO+ देशों के साथ सहयोग करना महत्त्वपूर्ण है लेकिन इसकी पूर्ण सदस्यता के परिणामस्वरूप भारत को सुरक्षा एवं विदेश नीति से संबंधित फायदे की तुलना में अधिक कीमत चुकानी होगी। इसके बजाय भारत को अपने राष्ट्रीय हितों और उद्देश्यों के अनुरूप, स्थितिजन्य आधार पर NATO+ देशों के साथ संबंधों को बढ़ावा देना चाहिये।