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दिवस-1:  पारंपरिक सामाजिक-सांस्कृतिक पहलुओं से परे आजीविका संबंधी चिंताओं तक विस्तृत होने के क्रम में क्षेत्रवाद में नए आयाम शामिल हो रहे हैं। उपयुक्त उदाहरणों के साथ अपने विचार स्पष्ट कीजिये। (150 शब्द)

17 Jul 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भारतीय समाज

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • क्षेत्रवाद और इसे प्रभावित करने वाले कारकों का परिचय दीजिये।
  • उन विभिन्न आयामों पर चर्चा कीजिये जो क्षेत्रीयता के पारंपरिक कारकों से परे हैं।
  • उचित निष्कर्ष दीजिये।

क्षेत्रवाद एक ऐसी राजनीतिक विचारधारा है जो किसी विशेष क्षेत्र, क्षेत्रों के समूह या अन्य उपराष्ट्रीय इकाई के हितों पर केंद्रित है। भारत में क्षेत्रवाद भूगोल, इतिहास, संस्कृति, अर्थव्यवस्था और राजनीति जैसे विभिन्न कारकों से प्रभावित होता है।

क्षेत्रवाद को विकास, संसाधनों, अवसरों और प्रतिनिधित्व के संदर्भ में विभिन्न क्षेत्रों के बीच कथित या वास्तविक असमानताओं और अन्याय की प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा सकता है। क्षेत्रवाद को विभिन्न भाषाई, जातीय, धार्मिक और आदिवासी समूहों के बीच सांस्कृतिक पहचान और गौरव की अभिव्यक्ति के रूप में भी देखा जा सकता है।

  • असमान विकास, उप-क्षेत्रवाद और उप-राष्ट्रवाद के उदय एवं वैश्वीकरण आदि के कारण क्षेत्रवाद पारंपरिक सामाजिक-सांस्कृतिक पहलुओं से परे आजीविका संबंधी चिंताओं तक विस्तृत हुआ है।

क्षेत्रवाद के कुछ नए आयाम निम्नलिखित हैं जो पारंपरिक सामाजिक-सांस्कृतिक से परे आजीविका संबंधी चिंताओं तक विस्तृत हैं जैसे:

  • आर्थिक क्षेत्रवाद: यह उन क्षेत्रों द्वारा अधिक स्वायत्तता या अलग राज्य के दर्जा की मांग करने से संबंधित है जो आर्थिक विकास, वित्तीय अंतरण, संसाधन आवंटन और बुनियादी ढाँचे के मामले में केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा उपेक्षित या शोषित महसूस करते हैं। उदाहरण के लिये लद्दाख और हिमाचल प्रदेश द्वारा अलग राज्यों की मांग उनकी विशिष्ट आर्थिक क्षमता और आकांक्षाओं पर आधारित थी। इसी प्रकार पूर्वोत्तर राज्यों द्वारा अधिक क्षेत्रीय सहयोग की मांग उनकी सामान्य आर्थिक चुनौतियों और अवसरों पर आधारित है।
  • पर्यावरणीय क्षेत्रवाद: यह उन क्षेत्रों द्वारा प्राकृतिक पर्यावरण और जैव विविधता की अधिक सुरक्षा या संरक्षण की मांग किये जाने से संबंधित है जो पारिस्थितिकी संसाधनों से समृद्ध होने के साथ पर्यावरणीय जोखिमों का सामना करते हैं। उदाहरण के लिये उत्तराखंड और तेलंगाना द्वारा अलग राज्य की मांग आंशिक रूप से उनकी पर्यावरणीय चिंताओं और शिकायतों पर आधारित थी।
  • सामाजिक क्षेत्रवाद: यह विशिष्ट भाषाई, जातीय, धार्मिक या सांस्कृतिक विशेषताओं वाले क्षेत्रों द्वारा सामाजिक पहचान और विविधता की अधिक मान्यता की मांग किये जाने से संबंधित है। उदाहरण के लिये गोरखालैंड और बोडोलैंड द्वारा अलग-अलग राज्यों की मांग उनकी भाषाई और जातीय पहचान और आकांक्षाओं पर आधारित थी।
  • राजनीतिक क्षेत्रवाद: यह उन क्षेत्रों द्वारा राजनीतिक प्रणाली में अधिक प्रतिनिधित्व या भागीदारी की मांग करने से संबंधित है जो केंद्र या राज्य सरकारों में कम प्रतिनिधित्व या उपेक्षा महसूस करते हैं। यह उन क्षेत्रों द्वारा अधिक स्वायत्तता या स्व-शासन की मांग से भी संबंधित हो सकता है जो अपने स्वयं के मामलों पर अधिक नियंत्रण चाहते हैं या बाहरी हस्तक्षेप का विरोध करते हैं। उदाहरण के लिये नागालैंड द्वारा अलग राज्य की मांग उनकी राजनीतिक पहचान और आकांक्षाओं पर आधारित थी।
  • सांस्कृतिक क्षेत्रवाद: यह अद्वितीय कलात्मक, साहित्यिक, संगीत या पाक परंपराओं वाले क्षेत्रों द्वारा सांस्कृतिक विरासत और विविधता के अधिक संरक्षण या प्रचार की मांग से संबंधित है। सांस्कृतिक क्षेत्रवाद उन क्षेत्रों के बीच सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों के प्रदर्शन या आदान-प्रदान की मांग से भी संबंधित हो सकता है जो सामान्य सांस्कृतिक हितों को साझा करते हैं। उदाहरण के लिये विदर्भ और मराठवाड़ा द्वारा अलग राज्यों की मांग आंशिक रूप से उनकी सांस्कृतिक पहचान और गौरव पर आधारित थी।

वर्तमान में भारत में क्षेत्रवाद पारंपरिक सामाजिक-सांस्कृतिक क्षेत्रों से परे आजीविका संबंधी चिंताओं जैसे नए पहलुओं तक विस्तृत हो रहा है। ये आयाम वैश्वीकरण और आधुनिकीकरण के संदर्भ में भारत के विभिन्न क्षेत्रों की बदलती आकांक्षाओं और चुनौतियों को दर्शाते हैं। क्षेत्रवाद यदि राष्ट्रीय एकता और अखंडता का सम्मान करने वाले लोकतांत्रिक ढाँचे के अनुरूप हो तो यह विकास और विविधता हेतु सकारात्मक प्रेरक शक्ति साबित हो सकता है।