17 Jul 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भारतीय समाज
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- वैश्वीकरण को बताते हुए भारतीय समाज पर इसके प्रभावों को बताइये।
- बताइये कि वैश्वीकरण ने भारत में कुछ सामाजिक मुद्दों जैसे वैवाहिक बलात्कार, LGBTQ+ के अधिकार आदि को किस प्रकार प्रभावित किया है।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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वैश्वीकरण का आशय अर्थव्यवस्था, संस्कृति, संचार और प्रौद्योगिकी का विश्व स्तर पर एकीकरण करने के साथ परस्पर निर्भरता को बढ़ाने की प्रक्रिया है। इसने भारत में सामाजिक संस्थाओं की मूल प्रकृति और इन सामाजिक संस्थाओं में व्यक्तिगत संबंधों की प्रकृति को काफी हद तक प्रभावित किया है। भारतीय समाज पर वैश्वीकरण के कुछ प्रभाव इस प्रकार हैं:
- आर्थिक प्रभाव: वैश्वीकरण से भारत में व्यापार, निवेश, वृद्धि और विकास के नए अवसर मिले हैं। हालाँकि इससे असमानता, बेरोज़गारी, गरीबी, पर्यावरणीय क्षरण जैसे जोखिम भी उत्पन्न हुए हैं।
- सांस्कृतिक प्रभाव: वैश्वीकरण से भारतीयों को विश्व की विविध संस्कृतियों, जीवन शैली, मूल्यों और विचारों का पता चला है। इससे विश्व स्तर पर भारतीय संस्कृति, कला, संगीत और व्यंजनों का भी प्रसार हुआ है।
- संचार प्रभाव: वैश्वीकरण के कारण विभिन्न मीडिया और प्रौद्योगिकियों के माध्यम से भारतीयों की सूचना, शिक्षा और मनोरंजन तक पहुँच में वृद्धि हुई है। इसने महिलाओं, दलितों और अल्पसंख्यकों जैसे हाशिये पर स्थित वर्गों को भी सशक्त बनाया है।
- व्यक्तिगत प्रभाव: इससे समाज के कुछ वर्गों की स्वायत्तता में वृद्धि हुई है। हालाँकि इससे तनाव और अलगाव को बढ़ावा मिलने के साथ सामाजिक बंधन कमजोर हुआ है।
वैश्वीकरण ने भारत के कुछ सामाजिक मुद्दों जैसे वैवाहिक बलात्कार, LGBTQ+ के अधिकार, समलैंगिक विवाह और ऐसे अन्य मुद्दों को भी प्रभावित किया है। जैसे:
- वैवाहिक बलात्कार: वैवाहिक बलात्कार का आशय अपने जीवनसाथी के साथ उनकी सहमति के बिना या उनकी इच्छा के विरुद्ध यौन संबंध बनाने से है। यह घरेलू हिंसा और यौन हिंसा का एक रूप है जिससे महिलाओं के मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है। हालाँकि भारत में किसी भी कानून के तहत वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं माना गया है। वैश्वीकरण ने महिला समूहों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के बीच इस मुद्दे के बारे में जागरूकता बढ़ाई है जिन्होंने वैवाहिक बलात्कार को अपराध के रूप में मान्यता देने के लिये कानूनी सुधारों की मांग पर बल दिया है। हालाँकि इसे समाज के कुछ वर्गों के विरोध का भी सामना करना पड़ा है जो वैवाहिक बलात्कार को एक निजी मामला या एक सांस्कृतिक मानदंड के रूप में देखते हैं और चाहते हैं कि इसमें बाहरी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिये।
- LGBTQ+ के अधिकार: LGBTQ+ का तात्पर्य लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल, ट्रांसजेंडर, क्वीर, इंटरसेक्स और एसेक्सुअल लोगों से है। इन्हें भारत में सामाजिक और कानूनी बाधाओं के कारण भेदभाव, हिंसा और कलंक का सामना करना पड़ता है। वैश्वीकरण ने LGBTQ+ लोगों को मीडिया, इंटरनेट, सामाजिक आंदोलनों और नागरिक समाज संगठनों जैसे विभिन्न प्लेटफार्मों के माध्यम से अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बनाया है। वैश्वीकरण द्वारा LGBTQ+ के अधिकारों को मान्यता देने के क्रम में कानूनी प्रणाली भी प्रभावित हुई है जैसे कि वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को हटाकर (नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ) समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया। यह मामला अमेरिकी संघीय न्यायालय के लॉरेंस बनाम टेक्सास मामले के फैसले से प्रेरित था)।
- प्राइड मंथ की विश्वव्यापी मान्यता और विभिन्न देशों में LGBTQ+ के समान अधिकारों एवं समानता पर बल देने के कारण भारत में LGBTQ+ की स्वीकार्यता में वृद्धि हुई है।
- समलैंगिक विवाह: समलैंगिक विवाह का आशय सामान लिंग के दो लोगों के बीच विवाह होने से है। यह LGBTQ+ के अधिकारों की मान्यता और सुरक्षा का एक रूप है जो उन्हें विषमलैंगिक विवाह के समान दर्जा और लाभ प्रदान करने पर केंद्रित है। हालाँकि भारत में किसी भी कानून के तहत समलैंगिक विवाह वैध नहीं है। वैश्वीकरण ने कुछ LGBTQ+ लोगों को न्यायालयों में याचिकाओं या सार्वजनिक प्रदर्शनों के माध्यम से अपने विवाह की कानूनी मान्यता की मांग करके इस यथास्थिति को चुनौती देने के लिये प्रेरित किया है। वैश्वीकरण के कारण समाज के कुछ वर्गों के द्वारा भी इसको समर्थन मिला है जो समलैंगिक विवाह को व्यक्तिगत पसंद और मानवीय गरिमा का मामला मानते हैं। हालाँकि वैश्वीकरण के कारण समाज के कुछ वर्गों के द्वारा इसका विरोध भी किया गया है जो समलैंगिक विवाह को पारंपरिक पारिवारिक मूल्यों या सामाजिक व्यवस्था के विपरीत समझते हैं।
इसलिये वैश्वीकरण का भारतीय समाज और इसकी सामाजिक संस्थाओं पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार से ही प्रभाव पड़ा है। भारतीय संस्कृति और समाज की विविधता और समृद्धि को संरक्षित करते हुए समावेशी और सतत् विकास को बढ़ावा देने वाली उचित नीतियों और रणनीतियों को अपनाकर वैश्वीकरण के लाभों और हानियों को संतुलित करना महत्त्वपूर्ण है।