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02 Sep 2022
सामान्य अध्ययन पेपर 1
इतिहास
दिवस 54: दुनिया के सबसे बड़े जीवंत लोकतंत्र के रूप में उभरने के आलोक में भारत को एक नए स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा? चर्चा कीजिये(250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण
- भारत के एक नए स्वतंत्र देश से विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में परिवर्तन के बारे में लिखिये।
- नए स्वतंत्र भारत के सामने बाहरी और आंतरिक दोनों चुनौतियों का उल्लेख कीजिये।
- भारत की लोकतांत्रिक साख के बारे में उल्लेख करते हुए निष्कर्ष निकालिये जिसने भारत को एक राष्ट्र के रूप में जीवित रहने में मदद की।
स्वतंत्रता के लिये एक लंबे संघर्ष के बाद भारत 15 अगस्त, 1947 को औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्र हुआ। हालाँकि यह स्वतंत्रता अपने साथ सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं के एक समूह के साथ आई।
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में भारत का उदय और द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद शायद सबसे जीवंत लोकतंत्र के रूप में उभरना वास्तव में असाधारण है।
- भारत की सफलता का एक हिस्सा शासन में लोगों की भागीदारी की ऐतिहासिक परंपरा में निहित है। इस अर्थ में लोकतांत्रिक परंपरा पूरी तरह से विदेशी नहीं थी।
स्वतंत्रता के बाद भारत के सामने उपस्थित विभिन्न चुनौतियाँ:
- आंतरिक चुनौतियाँ:
- विभाजन: विभाजन को बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा के रूप में चिह्नित किया गया था। इसके अलावा विभाजन के कारण ही कश्मीर समस्या की उत्पत्ति हुई और उसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान के साथ युद्ध भी भी हुआ। साथ ही भारत को बड़ी संख्या में शरणार्थियों को पुनर्वास प्रदान करने की आवश्यकता थी।
- बड़े पैमाने पर गरीबी: स्वतंत्रता के समय भारत में लगभग 80% या लगभग 250 मिलियन आबादी गरीब थी। अकाल और भूख ने भारत को अपनी खाद्य सुरक्षा के लिये बाहरी मदद लेने हेतु प्रेरित किया।
- निरक्षरता: स्वतंत्रता के समय भारत की जनसंख्या लगभग 340 मिलियन थी। उस समय साक्षरता का स्तर सिर्फ 12% था अर्थात् लगभग 41 मिलियन।
- कम आर्थिक क्षमता: भारत में स्थिर कृषि और निम्न औद्योगिक आधार जैसी समस्याएँ मौजूद थीं। वर्ष 1947 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का 54% हिस्सा था। स्वतंत्रता के समय भारत की 60% जनसंख्या जीविका के लिये कृषि पर निर्भर थी। केंद्रीय नियोजित अर्थव्यवस्था चरण के दौरान 1950 से 1980 के दशक तक वार्षिक विकास दर लगभग 3.5% (हिंदू विकास दर) स्थिर रही, जबकि प्रति व्यक्ति आय वृद्धि औसतन 1.3% थी।
- भाषाई पुनर्गठन: ब्रिटिश भारतीय प्रांतों की सीमाओं को सांस्कृतिक और भाषाई एकता के बारे में सोचे बिना बेतरतीब ढंग से खींचा गया था। भाषाई रूप से सजातीय प्रांतों की निरंतर मांग के कारण अलगाववादी प्रवृत्तियों का उदय हुआ।
- अलगाववादी आंदोलन: 1980 के दशक में पंजाब का खालिस्तान आंदोलन, उत्तर-पूर्व में विद्रोह और मध्य-पूर्वी भारत में नक्सल आंदोलन (1960) भारत के लिये सबसे बड़ी आंतरिक सुरक्षा चुनौतियाँ थीं।
- आपातकालीन: JP आंदोलन के प्रति सरकार की प्रतिक्रिया के रूप में 1975 के राष्ट्रीय आपातकाल को भारतीय लोकतंत्र का काला चरण (Dark Phases) माना जाता है। इसने नागरिकों के मौलिक अधिकारों में कटौती की और भारतीय लोकतांत्रिक साख की नींव हिला दी। वर्ष 1973 से आर्थिक स्थिति में तेज़ गिरावट आई, बढ़ती बेरोज़गारी, अत्यधिक मुद्रास्फीति और बुनियादी भोजन और आवश्यक वस्तुओं की कमी के संयोजन ने एक गंभीर संकट पैदा कर दिया।
- बाहरी चुनौतियाँ:
- शीत युद्ध के तनावों के साथ चिह्नित वैश्विक विश्व व्यवस्था: अधिकांश विकासशील देश संयुक्त राज्य अमेरिका या सोवियत संघ की दो महाशक्तियों में से किसी एक से जुड़े हुए थे। भारत ने शीत युद्ध की राजनीति से दूर रहने और इसके आंतरिक विकास पर ध्यान केंद्रित करने के लिये गुटनिरपेक्षता की नीति का पालन किया।
- शत्रुतापूर्ण पड़ोसी: भारत को अपनी स्वतंत्रता के प्रारंभिक चरणों के दौरान पाकिस्तान (1965, 1971) और चीन (1962) के साथ परिणामी युद्धों का सामना करना पड़ा। इसने न केवल भारत के विकास में बाधा डाली और क्षेत्रीय अस्थिरता पैदा की।
यह ध्यान दिया जाना चाहिये कि धर्मनिरपेक्षता और संघवाद के भारतीय संवैधानिक सिद्धांत भारतीय लोकतंत्र की नींव हैं। भारतीय लोकतंत्र एक विशाल सामाजिक-धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता वाला एक विषम मॉडल है। सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक चुनौतियों के कारण स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर कई ब्रिटिश विद्वानों ने भविष्यवाणी की थी कि भारत एक राष्ट्र के रूप में जीवित नहीं रहेगा।
हालाँकि यह इसके संवैधानिक सिद्धांतों के प्रति भारत की मज़बूत प्रतिबद्धता ही थी जिसने भारत को न केवल एक राष्ट्र के रूप में जीवित रहने के लिये बल्कि नए स्वतंत्र देशों के नेता के रूप में उभरने हेतु भी प्रेरित किया।