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18 Aug 2022
सामान्य अध्ययन पेपर 2
सामाजिक न्याय
दिवस 39: भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में परिणत करने के लिये महिला उद्यमिता को इसके आर्थिक विकास में एक बड़ी भूमिका निभानी होगी। इस संदर्भ में महिला उद्यमियों के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में स्टार्टअप्स की स्थिति के बारे में संक्षिप्त परिचय देकर अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- महिला उद्यमियों की स्थिति और अर्थव्यवस्था में उनके योगदान का उल्लेख कीजिये।
- भारतीय महिला उद्यमियों के सामने आने वाली चुनौतियों की चर्चा कीजिये।
- आगे की राह का सुझाव देते हुए अपने उत्तर को समाप्त कीजिये।
लाखों संभावनाओं और विशाल प्रतिभाओं वाले इस देश में नौकरी पाने की आकांक्षा के बजाय अब स्टार्ट-अप और रोज़गार सृजन की ओर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। युवा उद्यमियों के नेतृत्त्व में भारत में यूनिकॉर्न की अभूतपूर्व वृद्धि देश में हज़ारों महत्त्वाकांक्षी स्टार्टअप्स को प्रेरित कर रही है। संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद भारत विश्व के तीसरे सबसे बड़े स्टार्टअप पारितंत्र के रूप में उभरा है। हालाँकि उद्यमिता को प्रायः पुरुष प्रधान कार्यक्षेत्र के रूप में देखा जाता है और महिलाओं की अनदेखी की जाती है।
महिला उद्यमियों के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ:
- बाज़ार पूंजीकरण में वृद्धि:
- अनुमान है कि भारत आने वाले वर्षों में सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना रहेगा और भारत का बाज़ार पूंजीकरण इसके नॉमिनल जीडीपी से भी अधिक तेज़ी से बढ़ रहा है।
- आर्थिक सुधार के गति पकड़ने के साथ कंज्यूमर ड्यूरेबल्स से लेकर टेक्सटाइल, फूड से लेकर फुटवियर, एग्रो-प्रोडक्ट्स से लेकर ऑटोमोबाइल तक सभी बाज़ार खंडों में दोहरे अंकों के विकास की उम्मीद है।
- ‘आइडिया’ और ‘मेंटरशिप’ की उपलब्धता में वृद्धि:
- बाज़ार की मांग को देखते हुए स्टार्टअप्स को तीन बुनियादी अवयवों की आवश्यकता होती है: आइडिया, मेंटरशिप और फाइनेंस।
- ये तीनों ही तत्त्व आज भारत में महत्त्वाकांक्षी महिला उद्यमियों के लिये इस तरह उपलब्ध हैं जैसे अतीत में कभी नहीं रहे थे।
- वित्तीय समावेशिता के अवसर:
- भारत सरकार और कई राज्य सरकारें महिलाओं के वित्तीय समावेशन में सुधार के लिये योजनाएँ चला रही हैं।
- ‘प्रधानमंत्री मुद्रा योजना’ महिलाओं के लिये ऐसी ही एक उच्च-क्षमता योजना है जो संपार्श्विक-मुक्त ऋण प्रदान करती है।
महिला उद्यमियों के सामने आने वाली चुनौतियाँ:
- महिला सलाहकारों की कमी:
- व्यवसाय संस्थापकों के रूप में कुछ ही महिलाओं की उपस्थिति के कारण साथी उद्यमियों को सलाह और प्रेरणा देने के लिये उनकी कमी रह जाती है।
- बुद्धिमत्ता क्षमताओं का आकलन करने वाले जैविक पहलू:
- एक लंबे समय से चली आ रही धारणा यह रही है कि पुरुष नैसर्गिक रूप से अधिक तार्किक होते हैं (इस प्रकार जोखिम-युक्त उपक्रमों के लिये अधिक उपयुक्त होते हैं), जबकि महिलाओं के सहानुभूतिपूर्ण होने की संभावना अधिक होती है (इसलिये वे केवल कुछ निश्चित व्यवसायों के लिये उपयुक्त होती हैं)।
- पितृसत्तात्मक संरचना और पारिवारिक बाधाएँ:
- जबकि बहुत सी महिलाओं में ऐसे क्षेत्रों में शीर्ष तक पहुँचने की क्षमता और महत्त्वाकांक्षा होती है जो आम तौर पर पूर्णरूपेण पुरुष उपस्थिति से निर्देशित होते रहे हैं, लेकिन समाज की पितृसत्तात्मक संरचना द्वारा प्रायः उन्हें उनके सपनों को साकार करने से वंचित कर दिया जाता है।
- वित्त और प्रबंधन जुटाना:
- वित्त जुटाना और उसका प्रबंधन एक अन्य कठिन विषय है, क्योंकि अधिकांश मामलों में महिलाओं को क्रेडिट-योग्य नहीं माना जाता है।
स्टार्टअप्स में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के उपाय:
- जोखिम लेने की क्षमता को बढ़ाना:
- चूँकि महिलाओं के पास कई वित्तीय विकल्प मौजूद हैं, सर्वप्रथम उनके जोखिम लेने की क्षमता को बढ़ाने की ज़रूरत है, फिर वे स्टार्टअप की दौड़ में पुरुषों को पीछे छोड़ने को तैयार होंगी।
- महिलाओं को नेतृत्त्वकारी भूमिका में लाना:
- महिला उद्यमिता के प्रमुख चालक अवसंरचना और शिक्षा में निवेश होंगे जो भारत में महिलाओं द्वारा शुरू किये गए व्यवसायों के उच्च अनुपात का निर्माण करेंगे।
- बेहतर शिक्षा एवं स्वास्थ्य, वेतन अंतराल में कमी लाने जैसे प्रयास और अधिक प्रयास को प्रोत्साहित करते हैं और बेहतर करियर-उन्नति अभ्यासों के रूप में परिणाम देते हैं; इस प्रकार प्रतिभाशाली महिलाओं को नेतृत्त्व और प्रबंधकीय भूमिकाओं में बढ़ावा मिलता है।
- महिलाओं के लिये महिला रोल मॉडल:
- संबंधित उद्योगों में स्थानीय व्यवसायों का उच्च महिला स्वामित्व अधिक सापेक्षिक महिला प्रवेश दर की संभावना रखता है।
- मौजूदा महिला उद्यमी सक्रिय रूप से अन्य इच्छुक महिला उद्यमियों की ओर हाथ बढ़ा सकती हैं। यदि अधिक नहीं तो कम से कम वे अपने उद्योगों या कार्यक्षेत्र में उन्हें मार्गदर्शन प्रदान कर सकती हैं।
- महिला निवेशकों को प्रोत्साहित करना:
- अधिकांश निवेशक समूहों में पुरुषों का वर्चस्व है और उनके नेतृत्त्व में संचालित हैं, जबकि निवेश समितियाँ भी प्रायः पुरुष-प्रधान होती हैं।
- एंजल इनवेस्टर्स में महिलाओं की उपस्थिति मात्र 2% है।
ऐसे अचेतन पूर्वाग्रहों को दूर करने के लिये कम से कम एक या अधिक महिला निवेशकों को निवेश समूह में शामिल किया जाना चाहिये। यदि निर्णय लेने वाले समूह में लैंगिक विविधता होगी तो इस बात की संभावना बनेगी कि निधि की मांग रखने वाली महिलाओं पर अधिक निष्पक्ष तरीके से विचार किया जाएगा और संभवतः वे अधिक अनुकूल निर्णय प्राप्त करने में सफल होंगी।