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  • 19 Aug 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    दिवस 40: “आपातकाल तानाशाही के खिलाफ टीकाकरण की तरह था। यह दर्दनाक था और बुखार का कारण भी बना लेकिन इसने हमारे लोकतंत्र के प्रतिरोध को मज़बूत किया। टिप्पणी कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण

    • भारत सरकार द्वारा लगाए गए 1975 के आपातकाल का वर्णन कीजिये।
    • आपातकाल की पृष्ठभूमि की संक्षेप में चर्चा कीजिये।
    • आपातकाल से सीखे गए परिणामों और सबक की व्याख्या कीजिये।
    • उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।

    आपातकाल की अवधि की भारी आलोचना की गई और इसे "भारतीय लोकतंत्र के काले दिन" कहा गया। इंदिरा गांधी सरकार ने तर्क दिया कि राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित खतरों को संबोधित करने के लिये ऐसे सख्त उपायों की आवश्यकता थी। ऐसा माना जाता है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 1975 के फैसले के बाद आपातकाल लगाया गया था, जिसमें इंदिरा गांधी को चुनावी कदाचार का दोषी ठहराया गया था और उन्हें संसद द्वारा अयोग्य घोषित कर दिया गया था और कहा था कि वह अगले 6 वर्षों तक किसी भी निर्वाचित पद पर नहीं रह पाएँगी। इस फैसले के तुरंत बाद, उन्होंने आपातकाल की घोषणा कर दी थी।

    आपातकाल की पृष्ठभूमि

    1970 का दशक भारत में राजनीतिक उथल-पुथल का दौर था। इस अवधि में सरकार और न्यायपालिका के बीच संबंधों में तनाव देखा गया। कॉन्ग्रेस के भीतर वैचारिक मतभेद पैदा हो गए और इसने इंदिरा गांधी और उनके विरोधियों के बीच विभाजन को तेज कर दिया। कॉन्ग्रेस ने 1971 के चुनाव में गरीबी हटाओ का नारा दिया था। विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कारकों के कारण, 1971-72 के बाद देश में सामाजिक और आर्थिक स्थिति में बहुत सुधार नहीं हुआ।

    • गुजरात और बिहार आंदोलन: गुजरात और बिहार कॉन्ग्रेस शासित राज्य थे। इस तथ्य के बावजूद दोनों राज्यों के छात्रों ने खाद्यान्न, खाना पकाने के तेल और अन्य आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतों के और उच्च पदों पर भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया। बिहार के जयप्रकाश नारायण ने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया।
    • नक्सली आंदोलन: 1967 में चारू मजूमदार के नेतृत्त्व में सीपीआई (एम) के नेतृत्त्व में दार्जिलिंग (पश्चिम बंगाल) के नक्सलबाड़ी इलाके में एक किसान विद्रोह हुआ। नक्सली आंदोलन से निपटने के लिये सरकार ने कड़े कदम उठाए हैं।
    • 1974 की रेलवे हड़ताल: जॉर्ज फर्नांडिस के नेतृत्त्व में रेलवे के सभी कर्मचारियों द्वारा राष्ट्रव्यापी हड़ताल की गई। इसकी मुख्य मांग बोनस और सेवा शर्तों से संबंधित थी। सरकार ने हड़ताल को अवैध घोषित कर दिया और इसे बिना किसी समझौते के 20 दिनों के बाद वापस लेना पड़ा।
    • न्यायपालिका के साथ संघर्ष: 1970 के दशक में विधायिका और न्यायपालिका के बीच एक कड़वा संबंध देखा गया। 1973 में भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के मुद्दे ने और हालत खराब कर दी।
    • विवाद का सबसे बड़ा बिंदु तब आया जब हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के निर्वाचन को अवैध घोषित कर दिया।

    परिणाम

    • प्रेस की स्वतंत्रता और नागरिकों के कुछ मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया था। सभी चल रहे विरोध प्रदर्शन समाप्त हो गए, हड़तालों पर प्रतिबंध लगा दिया गया, विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया।
    • किसी भी लेख या मामले को प्रकाशित करने के लिये सरकार की पूर्व अनुमति की आवश्यकता होती थी जिसे प्रेस सेंसरशिप कहा जाता है।
    • व्यापक संवैधानिक संशोधन किये गए जैसे 39 वें संशोधन जो सुप्रीम कोर्ट को चुनाव याचिकाओं पर सुनवाई करने से रोक लगा दी और 42 वें संशोधन, जिसने घोषणा की कि संविधान में किसी भी संशोधन पर किसी भी अदालत में सवाल नहीं उठाया जा सकता है।
    • यहां तक कि विधायिकाओं का कार्यकाल भी बढ़ाकर छह वर्ष कर दिया गया था।

    आपातकाल से संबंधित विवाद:

    • आपातकाल के बाद शाह आयोग की ओर से जाँच की गई थी। इसमें पाया गया कि कुछ क्षेत्रों में आपातकाल के दौरान अतिरिक्त प्रतिबंध लगाए गए थे।
    • सरकार ने तर्क दिया कि लोकतंत्र में विपक्षी दलों को निर्वाचित सत्तारूढ़ दल को अपनी नीतियों के अनुसार शासन करने की अनुमति देनी चाहिये।
    • आलोचकों का कहना है कि इंदिरा गांधी ने अपनी निजी शक्ति को बचाने के लिये देश के संवैधानिक प्रावधानों का दुरुपयोग किया।
    • शाह आयोग ने अनुमान लगाया कि निवारक निरोध कानूनों के तहत लगभग एक लाख लोगों को गिरफ्तार किया गया था।
    • राजनीतिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी और प्रेस पर पाबंदी के अलावा आपातकाल ने कई मामलों में आम लोगों के जीवन को सीधे तौर पर प्रभावित किया।

    आपातकाल से सबक

    • आपातकाल ने भारत के लोकतंत्र की कमज़ोरियों और शक्तियों दोनों को उजागर किया।
    • आंतरिक अशांति के आधार पर लोकतंत्र का गला घोंटने के किसी भी प्रयास को रोकने के लिये, 1978 में 44वाँ संशोधन किया गया था। नतीजतन, राष्ट्रपति केवल बाहरी आक्रमण के कारण ही आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं और "आंतरिक अशांति" शब्द को सशस्त्र विद्रोह से बदल दिया गया था।
    • राष्ट्रपति की उद्घोषणा को एक महीने के भीतर संसद के दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित किया जाना आवश्यक है।
    • इस समय संविधान में आपातकालीन प्रावधान के बारे में कुछ अस्पष्टताएं सामने आईं जिन्हें तब से ठीक कर दिया गया है।
    • आपातकाल ने सभी को नागरिक स्वतंत्रता के मूल्य के बारे में अधिक जागरूक किया। आपातकाल द्वारा सिखाया गया एक महत्वपूर्ण सबक यह है कि भारत के लोग शांतिप्रिय होते हुए भी अधिनायकवाद को कभी बर्दाश्त नहीं करेंगे।
    • न्यायालयों ने भी, आपातकाल के बाद व्यक्तियों की नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा में सक्रिय भूमिका निभाई है। यह आपातकाल के दौरान नागरिक स्वतंत्रता की प्रभावी ढंग से रक्षा करने में न्यायपालिका की अक्षमता की प्रतिक्रिया है। इस अनुभव के बाद कई नागरिक स्वतंत्रता संगठन सामने आए।

    इस प्रकार, आपातकाल तानाशाही के खिलाफ टीकाकरण की तरह था।

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