दिवस 12: अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद से अफगानिस्तान में राजनीतिक उथल-पुथल की स्थिति है, जैसे मुस्लिम शरिया कानून लागू करना, लोगों को बुनियादी अधिकारों से वंचित करना, सामूहिक हत्याएँ आदि। भारत द्वारा इस क्षेत्र में अपने सामरिक हितों की रक्षा के लिये कौन-से नीतिगत रुख या कदम उठाए जा सकते हैं, सुझाव दीजिये। (150 शब्द)
22 Jul 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | अंतर्राष्ट्रीय संबंध
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- अपने उत्तर की शुरुआत तालिबान द्वारा अफगानिस्तान पर कब्ज़ा करने के बारे में बताकर कीजिये।
- भारत के लिए अफगानिस्तान के महत्व पर चर्चा कीजिये।
- तालिबान से निपटने के लिए भारत के सामने उपलब्ध नीतिगत विकल्पों पर चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
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अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद तालिबान ने लोगों की सामूहिक हत्याओं का सहारा लेते हुए लोगों के बुनियादी अधिकारों तथा स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के लिये एक सख्त शरिया कानून लागू किया और अफगानिस्तान का प्रशासन अपने हाथ में ले लिया।
तालिबान द्वारा अफगानिस्तान पर कब्ज़ा करने से भारत के लोगों और उसके सामरिक हितों के लिये कई मुद्दे और चुनौतियाँ भी उत्पन्न हुई हैं
अफगानिस्तान भारत के लिये महत्त्वपूर्ण क्यों है?
- आर्थिक और रणनीतिक हित: अफगानिस्तान तेल और खनिज समृद्ध मध्य एशियाई गणराज्यों का प्रवेश द्वार है।
- अफगानिस्तान भू-रणनीतिक दृष्टि से भी भारत के लिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि अफगानिस्तान में जो भी सत्ता में रहता है, वह भारत को मध्य एशिया (अफगानिस्तान के माध्यम से) से जोड़ने वाले भू- मार्गों को नियंत्रित करता है।
- ऐतिहासिक सिल्क रोड के केंद्र में स्थित: अफगानिस्तान लंबे समय से एशियाई देशों के बीच वाणिज्य का केन्द्र था, जो उन्हें यूरोप से जोड़ता था तथा धार्मिक, सांस्कृतिक और वाणिज्यिक संपर्कों को बढ़ाव देता था।
- विकास परियोजनाएंँ: इस देश के लिये बड़ी निर्माण योजनाएँ भारतीय कंपनियों को बहुत सारे अवसर प्रदान करती हैं।
- तीन प्रमुख परियोजनाएंँ: अफगान संसद, जरंज-डेलाराम राजमार्ग और अफगानिस्तान-भारत मैत्री बांध (सलमा बांध) के साथ-साथ सैकड़ों छोटी विकास परियोजनाओं (स्कूलों, अस्पतालों और जल परियोजनाओं) में 3 बिलियन अमेरीकी डॅालर से अधिक की भारत की सहायता ने अफगानिस्तान में भारत की स्थिति को मज़बूत किया है।
- सुरक्षा हित: भारत इस क्षेत्र में सक्रिय पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी समूह (जैसे हक्कानी नेटवर्क) से उत्पन्न राज्य प्रायोजित आतंकवाद का शिकार रहा है। इस प्रकार अफगानिस्तान में भारत की दो प्राथमिकताएंँ हैं:
- पाकिस्तान को अफगानिस्तान में मित्रवत सरकार बनाने से रोकने के लिये।
- अलकायदा जैसे जिहादी समूहों की वापसी से बचने के लिये, जो भारत में हमले कर सकता है।
अफगानिस्तान में भारत के पास उपलब्ध विकल्प
- तालिबान से संवाद: तालिबान से संवाद भारत को निरंतर विकास सहायता या अन्य प्रतिबद्धताओं की पूर्ति के बदले विद्रोहियों से सुरक्षा की गारंटी का अवसर प्रदान कर सकता है; साथ ही पाकिस्तान से तालिबान की स्वायत्तता की संभावना के अवसर तलाश किये जा सकते हैं।
- इस समय तालिबान से वार्ता करना अपरिहार्य नज़र आ रहा है। लेकिन भारत को पाकिस्तान के सुरक्षा प्रतिष्ठान और हक्कानी नेटवर्क (तालिबान के अंदर सक्रिय एक प्रमुख गुट) के बीच के गहरे संबंधों को नज़रअंदाज नहीं करना चाहिये।
- अमेरिका ने तालिबान से संघर्ष में इस पक्ष की अनदेखी की थी और उसे इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी।
- अफगान सरकार को विश्वास में लेना: इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि तालिबान को वार्ता में संलग्न कर इच्छित परिणाम पाने का भारत का कोई प्रयास वांछनीय परिणाम ही लाएगा। इसलिये भारत को अपने विकल्पों को व्यापक बनाए रखना चाहिये, जिसमें अफगान सरकार को विश्वास में लेना भी शामिल है।
- अपने हितों की रक्षा के लिये तालिबान से संवाद करते हुए भी भारत को अफगानिस्तान की वैध सरकार तथा सुरक्षा बलों की सहायता में वृद्धि करनी चाहिये और देश में दीर्घकालिक स्थिरता के लिये अन्य क्षेत्रीय शक्तियों के साथ सहयोग करना चाहिये।
- अफगान सैन्य बलों का समर्थन: अफगान सेना में उच्च-प्रशिक्षित विशेष बलों सहित लगभग 200,000 युद्ध-अनुभवी सैनिक शामिल हैं। अफगान राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा बल ही एकमात्र सैन्य बल है जो तालिबान के सामने डटकर खड़ा है।
- भारत को तत्काल अफगान बलों के प्रशिक्षण में सहयोग देना चाहिये और सैन्य हार्डवेयर, खुफिया सूचनाएँ तथा सैन्य एवं वित्तीय सहायता प्रदान करनी चाहिये ताकि अफगान सेना शहरों की रक्षा करना जारी रख सके।
- भारत को अफगान सरकार का समर्थन करने के लिये अन्य क्षेत्रीय शक्तियों के साथ भी समन्वय करना चाहिये क्योंकि अगर तालिबान के समक्ष सरकारी सेना कमज़ोर पड़ जाती है तो राजनीतिक समाधान की संभावनाएँ कम हो जाएँगी।
- क्षेत्रीय समाधान: अफगानिस्तान में एक राजनीतिक समाधान हेतु भारत और तीन अन्य प्रमुख क्षेत्रीय शक्तियों- चीन, रूस तथा ईरान के बीच हितों का अभिसरण हो रहा है।
- इनमें से कोई भी देश अफगानिस्तान पर तालिबान के सैन्य नियंत्रण की इच्छा नहीं रखेगा क्योंकि इसका अर्थ होगा खंडित जातीय समीकरण वाले देश में एक अलग-थलग सुन्नी इस्लामवादी शासन की स्थापना।
- इसलिये इस विषय में समान विचारधारा वाले देशों से सहयोग की आवश्यकता है।