22 Jul 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | अंतर्राष्ट्रीय संबंध
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- अपने उत्तर की शुरुआत UNSC का परिचय देते हुए कीजिये साथ ही प्रमुख देशों द्वारा इसकी स्थायी सदस्यता की मांग क्यों की जाती हैे, यह भी बताइये।
- UNSC की स्थायी सदस्यता के लिये भारत के संदर्भ में चर्चा कीजिये।
- भारत की स्थायी सदस्यता में आने वाली बाधाओं पर चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
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सुरक्षा परिषद की स्थापना 1945 में संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा की गई थी। यह संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंगों में से एक है। यह मुख्य तौर पर अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने हेतु उत्तरदायी है।
सुरक्षा परिषद में कुल 15 सदस्य होते हैं: पाँच स्थायी सदस्य और दो वर्षीय कार्यकाल हेतु चुने गए दस अस्थायी सदस्य।
- संयुक्त राष्ट्र के अन्य 5 अंगों में शामिल हैं- संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA), ट्रस्टीशिप परिषद, आर्थिक और सामाजिक परिषद, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय एवं सचिवालय।
- यूएनएससी की स्थायी सदस्यता की मांग भारत, जापान, जर्मनी, ब्राजील आदि जैसे दुनिया के प्रमुख देशों द्वारा की जाती है।
- स्थायी सदस्यों को उपलब्ध वीटो पावर के प्रावधान के कारण दुनिया के प्रमुख देशों द्वारा इसकी मांग की जा रही है।
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्यों को किसी भी ठोस प्रस्ताव पर वीटो करने या ना कहने का अधिकार है।
- यह भी ध्यान देने योग्य है कि किसी सदस्य के मत का इस बात पर कोई असर नहीं पड़ता कि प्रस्ताव स्वीकार किया गया है या नहीं। प्रक्रियात्मक मतों से वीटो शक्ति का उपयोग प्रभावित नहीं होता है।
UNSC में भारत की स्थायी सदस्यता से संबंधित मुद्दे:
- संयुक्त राष्ट्र के साथ भारत का ऐतिहासिक संघ: भारत संयुक्त राष्ट्र का संस्थापक सदस्य है।
- भारत, अब तक UNSC में दो वर्ष की गैर-स्थायी सदस्य सीट के लिये आठ बार निर्वाचित हुआ है।
- सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है, कि विभिन्न अभियानों में तैनात, भारत के शांति सैनिकों की संख्या, P5 देशों की तुलना में लगभग दोगुनी है।
- भारत का आंतरिक मूल्य: भारत दुनिया में सबसे बड़ा लोकतंत्र और दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश (जल्द ही सबसे अधिक आबादी वाला देश) होना UNSC में स्थायी सदस्यता प्रदान करने का एक प्रमुख कारण हैं।
- साथ ही भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं और सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है।
- भारत का भू-राजनीतिक पदचिह्न: मई 1998 में भारत को एक परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र (Nuclear Weapons State – NWS) का दर्जा प्राप्त हुआ था और वह मौजूदा स्थायी सदस्यों के समान परमाणु हथियार संपन्न है, इस आधार पर भी भारत सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता का स्वभाविक दावेदार बन जाता है।
- इसके अलावा भारत को विभिन्न निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाओं जैसे एमटीसीआर, वासेनार व्यवस्था आदि में शामिल किया गया है।
- राजनीति, सतत् विकास, अर्थशास्त्र और संस्कृति तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी जैसे विविध क्षेत्रों में इसके लगातार बढ़ते वैश्विक पदचिह्न के कारण भारत की अंतर्राष्ट्रीय प्रो़ाफाइल और क्षमताओं में वृद्धि होती है।
- विकासशील विश्व का प्रतिनिधित्व: भारत, तीसरी दुनिया के देशों का निर्विवाद नेता है, और यह ‘गुटनिरपेक्ष आंदोलन’ में भारत द्वारा नेतृत्व की भूमिका से सपष्ट परिलक्षित होता है।
स्थायी सदस्यता हेतु भारत के लिये बाधाएँ:
- चीन की चुनौती:
- भारत ऐसे समय में UNSC में प्रवेश कर रहा है जब बीजिंग वैश्विक मंच पर पहले से कहीं अधिक मज़बूती से अपना दावा पेश कर रहा है। यह कम-से-कम छह संयुक्त राष्ट्र संगठनों का प्रमुख है और इसने वैश्विक नियमों को चुनौती दी है।
- भारत-प्रशांत के साथ-साथ भारत-चीन सीमा पर चीन का आक्रामक व्यवहार वर्ष 2020 के दौरान देखा गया।
- चीन ने UNSC में कश्मीर का मुद्दा उठाने की कोशिश की है।
- कोविड के बाद की वैश्विक व्यवस्था:
- वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी और स्वास्थ्य आपात स्थितियों का सामना कर रहे विभिन्न देशों के साथ जर्जर स्थिति में है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस व अस्थिर पश्चिम एशिया को संतुलित करना:
- अमेरिका और रूस के बीच बिगड़ते हालात तथा अमेरिका एवं ईरान के बीच बढ़ते तनाव को देखते हुए भारत के लिये इसे संभालना मुश्किल हो जाएगा।
- भारत को राष्ट्रीय हितों को सुनिश्चित करने वाले मानवाधिकारों के उचित सम्मान के साथ नियम आधारित विश्व व्यवस्था को बनाए रखने की आवश्यकता है।
अधिकांश देशों द्वारा भारत को एक उभरती हुई शक्ति के रूप में स्वीकार किया गया है। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र प्रणाली से लेकर बहुपक्षीय मंचों का लोकतंत्रीकरण करने की अत्यधिक आवश्यकता है। इस संदर्भ में भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सहित वैश्विक शासन के बदलते ढाँचे में अपने उचित स्थान के लिये वैध दावा कर रहा है।