दिवस 4: गांधार,मथुरा और अमरावती मूर्तिकला शैलियों की अनूठी विशेषताओं पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
14 Jul 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | संस्कृति
हल करने का दृष्टिकोण
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भारत में प्राचीन काल से ही मूर्तिकला की विभिन्न शैलियों का उदय हुआ लेकिन यह मौर्य काल के बाद के समय में अपने चरम पर पहुँच गई। पहली शताब्दी के बाद, उत्तरी भारत में मथुरा और आंध्र प्रदेश वेंगी कला के महत्त्वपूर्ण केंद्रों के रूप में उभरे। प्रतीकात्मक रूप में बुद्ध का मथुरा, अमरावती और गांधार में मानवीकरण किया गया। मथुरा में स्थानीय मूर्तिकला परंपरा इतनी मज़बूत हो गई कि यह परंपरा उत्तरी भारत के अन्य हिस्सों में भी फैल गई। इस संबंध में सबसे अच्छा उदाहरण पंजाब के संघोल में पाई जाने वाले स्तूप मूर्तियाँ हैं।
इन शैलियों की विभिन्न विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
गांधार, मथुरा व अमरावती कला शैलियों की तुलना | |||
आधार | गांधार शैली | मथुरा शैली | अमरावती शैली |
कालखंड | मौर्योत्तर काल | मौर्योत्तर काल | मौर्योत्तर काल |
संरक्षण | कुषाण शासकों का | कुषाण शासकों का | सातवाहन राजाओं का |
प्रभाव विस्तार | उत्तर-पश्चिम सीमांत, आधुनिक कंधार क्षेत्र | मथुरा, सोंख, कंकाली टीला और आसपास के क्षेत्रों में। | कृष्णा-गोदावरी की निचली घाटी में, अमरावती और नागार्जुनकोंडा में और उसके आसापास के क्षेत्रों में। |
बाह्य प्रभाव | यूनानी या हेलेनिस्टिक मूर्तिकला का व्यापक प्रभाव | यह शैली स्वदेशी प्रभाव लिये हुए है, यहाँ बाह्य प्रभाव नदारद है। | यह शैली भी स्वदेशी रूप से विकसित हुई। |
धार्मिक संबद्धता | ग्रीको-रोमन देवताओं के मंदिरों से प्रभावित मुख्य रूप से बौद्ध चित्रकला | उस समय के तीनों धर्मों, यानी हिंदू, जैन और बौद्ध का प्रभाव | मुख्य रूप से बौद्ध धर्म का प्रभाव |
प्रयुक्त सामग्री | प्रारंभिक गांधार शैली में नीले-धूसर बलुआ प्रस्तर का उपयोग, जबकि बाद की अवधि में मिट्टी और प्लास्टर के उपयोग का साक्षी बना। | चित्तीदार लाल बलुआ पत्थर का उपयोग | सफ़ेद संगमरमर का इस्तेमाल |
बुद्ध मूर्ति की विशेषताएँ | लहराते घुंघराले बाल, आध्यात्मिक या योगी मुद्रा, आभूषण रहित, जटायुक्त, आधी बंद-आधी खुली आँखें। | प्रसन्नचित्त चेहरा, तंग कपड़ा, हृष्ट-पुष्ट शरीर, बालमुंडित सर, पद्मासन मुद्रा और सिर के पीछे प्रभामंडल | मूर्तियाँ सामान्यत: बुद्ध के जीवन और जातक कलाओं की कहानियों को दर्शाती हैं। |
ये सभी शैलियाँ मुख्यतः धर्म से प्रेरित थी और यह एक समृद्ध विरासत को पीछे छोड़ गई हैं। भारत की कला मानव इतिहास में एक अद्वितीय अध्याय का गठन करती है। यह मानव मन के गहरे अंतराल का अनावरण करती है और भारतीय आत्मा को एक दर्पण प्रदान करती है। भारत की रचनात्मक प्रतिभा के आध्यात्मिक और धार्मिक आयामों को असंख्य सौंदर्य रचनाओं के माध्यम से पूर्ण अभिव्यक्ति मिली है।