दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण
- जनजातीय पंचशील की अवधारणा के साथ उत्तर का परिचय दीजिये।
- हाल की द्वीप विकास परियोजनाओं के संबंध में जनजातीय पंचशील नीति की चर्चा कीजिये।
- भारत की जनजातीय नीति को और अधिक जनजातीय केंद्रित, टिकाऊ और जनजातीय पंचशील नीति के अनुरूप बनाने के लिये विभिन्न उपाय सुझाइये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
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जनजातियों को आदिवासी के रूप में भी जाना जाता है, जो भूमि के मूल निवासी थे और जंगलों के समीप रहते थे। जवाहरलाल नेहरू ने आदिवासियों की नीति हेतु निम्नलिखित पाँच सिद्धांत तैयार किये जिन्हें जनजातीय पंचशील सिद्धांत के रूप में जाना जाता है:
- लोगों को अपनी प्रतिभा के अनुरूप विकास करना चाहिये और विदेशी मूल्यों को थोपने से बचना चाहिये।
- भूमि और जंगल के मामले में आदिवासियों के अधिकारों का सम्मान किया जाना चाहिये।
- आदिवासियों को प्रशासन और विकास के कार्यों में प्रशिक्षित किया जाना चाहिये।
- जनजातीय क्षेत्रों को अति-प्रशासित या योजनाओं की बहुलता से अभिभूत नहीं होना चाहिये।
- परिणामों का आकलन आँकड़ों या खर्च की गई राशि से नहीं, बल्कि विकसित हुए मानवीय चरित्र से किया जाना चाहिये।
हाल ही में भारत सरकार द्वारा स्वीकृत आदिवासी विकास परियोजना:
- वर्ष 2018 में भारत सरकार ने पर्यटन को बढ़ावा देने के एक बड़े प्रयास में उत्तरी प्रहरी सहित 29 द्वीपों को प्रतिबंधित क्षेत्र परमिट (आरएपी) से बाहर रखा।
- ग्रेट निकोबार में नीति आयोग द्वारा संचालित 72,000 करोड़ रुपए की एकीकृत परियोजना में एक मेगा पोर्ट, एक हवाई अड्डा परिसर, 130 वर्ग किलोमीटर के प्राचीन जंगल में एक टाउनशिप और एक सौर तथा गैस आधारित बिजली संयंत्र का निर्माण शामिल है।
- अंडमान और निकोबार द्वीप समूह एकीकृत विकास निगम लिमिटेड (एएनआईआईडीसीओ) परियोजना के बारे में विचार कर रहा है।
- लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण (एलडीए) के निर्माण के लिये नवीनतम मसौदा लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण विनियमन, 2021।
द्वीप विकास परियोजनाओं से उत्पन्न होने वाली चिंताएँ हैं:
- पर्यटन के नाम पर 29 द्वीपों को प्रतिबंधित क्षेत्र के परमिट से बाहर किये जाने से आदिवासियों की पवित्रता और उनकी अद्वितीय जीवनशैली का उल्लंघन हुआ।
- अंडमान ट्रंक रोड जो जारवा रिज़र्व के बीच से गुज़रती है , "मानव सफारी" के नाम पर जारवाओं का व्यावसायिक शोषण की सुविधा प्रदान करती है।
- पर्यटन और रक्षा उद्देश्यों के लिये द्वीपों के विकास का नीति आयोग का प्रस्ताव जैवविविधता के विनाश को बढ़ावा देगा जिस पर मुख्य रूप से आदिवासियों की आजीविका निर्भर करती है, साथ ही आदिवासी भूमि पर विदेशी घुसपैठियों की आवाजाही बढ़ेगी जिसका जनजातियों द्वारा विरोध किया जाता है।
- लक्षद्वीप में द्वीप विकास परियोजनाओं ने द्वीपवासियों की आजीविका को दाँव पर लगा दिया है।
- भारत ने ILO के 1989 के सम्मेलन का अनुसमर्थन नहीं किया है जो सरकार द्वारा जनजातीय क्षेत्रों में गैर-हस्तक्षेप की नीति के संबंध में सरकार की मंशा में अस्पष्टता को दर्शाता है।
विभिन्न नीतियों में आदिवासी पंचशील के उद्देश्यों की झलक :
- हालाँकि भारत सरकार ने 1989 के ILO सम्मेलन, जिसमें आदिवासी क्षेत्रों के गैर-हस्तक्षेप की नीति पर ज़ोर दिया गया है, की पुष्टि नहीं की है लेकिन भारत सरकार की नीतियों ने 5वीं अनुसूची और 6वीं अनुसूची जैसे संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार जनजातीय क्षेत्रों में हस्तक्षेप को रोका है।
- प्रतिबंधित क्षेत्र के परमिट से 29 द्वीपों का बहिष्करण अनुसंधान, अध्ययन और पर्यटन को सुविधाजनक बनाने के लिये है जो जनजातियों के आर्थिक विकास, जनजातियों के लिये नीति निर्माण तथा जनजातीय पंचशील के अनुसार शासन में उनके समावेश एवं प्रशिक्षण की सुविधा प्रदान करेगा।
- द्वीप विकास परियोजनाएँ सड़कों तथा अन्य सुविधाओं जैसे- निर्माण द्वारा द्वीपों के रणनीतिक स्थानों के महत्त्व को बढ़ाकर जनजातियों और राष्ट्र दोनों के पारस्परिक हित में वृद्धि होती है, यह उपलब्ध बुनियादी ढाँचे और आपस में जुड़ाव की भावना के चलते जनजातियों को स्वयं आदिवासी क्षेत्रों के बेहतर प्रशासन की सुविधा प्रदान करता है। यह आदिवासी पंचशील के अनुरूप भी है।
- हालाँकि नीतियों के साथ कई चिंताएँ भी हैं लेकिन आज भी भारत की जनजातीय नीतियाँ आदिवासी पंचशील की पुरानी परंपरा और आदिवासी निवासियों के हित में सतत् विकास के दृष्टिकोण का पालन करती हैं।
इसके अलावा आदिवासी द्वीपवासियों के विकास के लिये पंचशील से प्रेरित अन्य नीतियाँ भी हैं:
- स्थानीय मछुआरों को बेहतर पारिश्रमिक प्रदान करने के लिये लक्षद्वीप के द्वीपों को जैविक क्षेत्र के रूप में घोषित करना।
- अंडमान और निकोबार में लगभग 14,491 हेक्टेयर क्षेत्र को पीजीएस (पार्टिसिपेटरी गारंटी सिस्टम)-इंडिया प्रमाणन कार्यक्रम (प्रमाणित होने वाला पहला बड़ा सन्निहित क्षेत्र) की बड़े क्षेत्र प्रमाणन (एलएसी) योजना के तहत जैविक के रूप में प्रमाणित किया गया है।
- अंडमान और निकोबार की चार जनजातियों को विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (पीवीटीजी) घोषित किया गया है।
जनजातियों का संरक्षण:
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989
- पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996
- अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006
- जनजातीय द्वीपों की रणनीतिक स्थिति सुरक्षा, पर्यटन और द्वीपों तथा जनजातीय लोगों के भविष्य के विकास के संबंध में राष्ट्रीय हितों के साथ-साथ जनजातीय हितों को भी सामने लाती है।
- एक प्रगतिशील और लोकतांत्रिक समाज के रूप में हमें आदिवासियों के सर्वोत्तम हित के लिये कुछ पहलें करनी होंगी, जैसे:
- आईएलओ के 1989 के सम्मेलन का अनुसमर्थन जिसने जनजातियों के संबंध में गैर-हस्तक्षेप की नीति "इन लोगों की अपनी संस्थाओं, जीवन के तरीकों और आर्थिक विकास पर नियंत्रण रखने की आकांक्षाओं को पहचानना" पर ज़ोर दिया है।
- द्वीपीय आदिवासियों के संबंध में संवैधानिक प्रावधानों का कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
- सभी हितधारकों के बीच पर्याप्त प्रक्रिया और आम सहमति का पालन सुनिश्चित करना।
- आदिवासी पंचशील के लोकाचार के अनुसार द्वीपवासियों की विशिष्टता और पवित्रता को बनाए रखना।