11 Jul 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भारतीय समाज
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
दृष्टिकोण
- अधिनियम के अनुसार ट्रांसजेंडर के बारे में संक्षेप में समझाइये।
- अधिनियम के उन विभिन्न प्रावधानों पर चर्चा कीजिये जो समुदाय की सामाजिक स्थिति को सुधारने का प्रयास करते हैं।
- अधिनियम में दोषों को भी इंगित करिये जो 'भारत में अन्य लिंग से अलग' है उस समुदाय की स्थिति को कायम रखते हैं।
- समुदाय, समाज और देश के हित में इन समुदायों के सामाजिक एवं शैक्षिक उत्थान के लिए सुझाव देते हुए निष्कर्ष लिखिये।
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‘ट्रांसजेंडर’ शब्द का उपयोग प्राय: उन लोगों को संदर्भित करने के लिये किया जाता है जिनकी लैंगिक पहचान उनके जन्म लिंग से भिन्न होती है। भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय लंबे समय से पुरुष वर्चस्ववादी सामाजिक पूर्वाग्रहों और वैकल्पिक यौनिकता को अपराध मानने वाले क्रूर कानूनों का खामियाजा भुगत रहे हैं।
ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019 के प्रावधान
- इस विधेयक में कहा गया है कि एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को स्वयं लिंग पहचान का अधिकार होगा और यह विभिन्न आधारों पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है।
- प्रत्येक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को अपने परिवार के साथ रहने का अधिकार होगा और यदि निकटस्थ संबंधी उसकी देखभाल रखने में असमर्थ है तो उसे पुनर्वास केंद्र में रखा जा सकता है।
- सरकार ट्रांसजेंडर लोगों के लिये शिक्षा, खेल और मनोरंजक सुविधाएँ प्रदान करेगी। विधेयक के अनुसार, सरकार द्वारा उनके लिये अलग एच.आई.वी. निगरानी केंद्र और ‘सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी’ की सुविधा प्रदान की जानी चाहिये।
- ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2019 के प्रावधानों और कार्यों के अनुपालन के लिये सरकार राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर व्यक्ति परिषद (National Council for Transgender Persons–NCT) की स्थापना करेगी। यह निकाय केंद्र सरकार द्वारा ट्रांसजेंडर लोगों के लिये बनाई गई नीतियों और योजनाओं पर सलाह देने तथा निगरानी एवं समीक्षा का कार्य करेगा।
एक उदार और समग्र दृष्टिकोण के बावजूद ट्रांसजेंडर विधेयक की आलोचना निम्नलिखित कारणों से की जा रही है-
- यह व्यक्तियों को पहचान प्रमाण पत्र जारी करने के लिये विशेषज्ञों की एक ‘स्क्रीनिंग कमेटी’ का प्रस्ताव करता है जिसके बारे में कार्यकर्त्ताओं का मानना है कि यह ट्रांसजेंडर लोगों को दुर्व्यवहार के लिये भेद्य बना सकता है।
- भिक्षावृत्ति भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये आजीविका का एक प्राथमिक स्रोत रही है। इस गतिविधि को आपराधिक कृत्य घोषित करने वाला यह विधेयक उन्हें वंचना की ओर धकेलता है।
- ट्रांसजेंडर समुदाय के लिये शिक्षा तथा सकारात्मक कार्रवाई के बारे में किसी विशेष प्रावधान का अभाव इस विधेयक की एक और बड़ी कमी है।
- यह लैंगिक पहचान के आधार पर भेदभाव के खिलाफ कानूनी निषेध को लागू करने के लिये एक प्रभावी तंत्र की कमी को दूर करने में विफल रहता है।
- यह राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण नालसा बनाम भारत संघ (यूओआई) मामले (2014) में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद रोज़गार या शिक्षा में सकारात्मक कार्रवाई का प्रावधान नहीं करता है। जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि समुदाय को 'सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग' के रूप में माना जाना चाहिये।
- बिल कई आपराधिक अपराधों, जैसे "यौन शोषण" और "शारीरिक शोषण" के लिए हल्के वाक्यों को निर्धारित करता है, जब वे ट्रांसजेंडर लोगों के खिलाफ किये जाते हैं।
समुदाय के हित में निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
- उन्हें अपने लिंग का आत्मनिर्णय का अधिकार प्रदान करें और अन्य सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के समान स्वास्थ्य, शिक्षा, नौकरी में भी सकारात्मक कार्रवाई सुनिश्चित करें।
- बलात्कार के लिये लिंग तटस्थ कानून बनाने की आवश्यकता (लिंग तटस्थ दंड संहिता) और संपत्ति विरासत, विवाह, गोद लेने आदि हेतु कानूनी प्रावधान भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
- उनके सशक्तीकरण हेतु बच्चों, महिलाओं की तरह एक संवैधानिक आयोग का गठन किया जाए।
- समुदाय के अद्वितीय स्वास्थ्य मुद्दों को देखते हुए इनके लिये विशेष स्वास्थ्य सुविधाएँ होनी चाहिये।
यौन अभिविन्यास और लैंगिक पहचान प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा तथा मानवता के साथ अभिन्न है और यह किसी लोकतांत्रिक समाज में भेदभाव या दुर्व्यवहार का आधार नहीं होना चाहिये। इस प्रकार ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण ) विधेयक, 2019 इस दिशा में उठाया गया एक सराहनीय कदम है।
भविष्य में भारत जैसा प्रगतिशील लोकतांत्रिक समाज देर-सबेर समाज के हर वर्ग के हितों को समानुपातिक आधार पर पूरा करेगा।