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  • 03 Sep 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    दिवस 55: टाइगर बायोस्फीयर रिज़र्व वाले क्षेत्र में, आपको वन रेंज अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया है। बायोस्फीयर रिज़र्व से गुजरने वाले राजमार्ग के निर्माण के कारण बाघों का आवास हाल ही में सिकुड़ गया है, और बाघों की आबादी में तेज़ी से वृद्धि हुई है। नतीजतन, बाघों के जंगल से भागने और आस-पास के गांवों में घुसपैठ करने, जानवरों को मारने के मामले सामने आए हैं। इससे आक्रोशित स्थानीय लोगों ने बाघों को जहर देकर मारना शुरू कर दिया है।

    (1) क्या आपको लगता है कि इस स्थिति में ग्रामीणों द्वारा की गई कार्रवाई सही है? अपने उत्तर के समर्थन में कारण दीजिये।
    (2) इस स्थिति को हल करने के लिये आपके पास क्या विकल्प उपलब्ध हैं? (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण

    • पशु संरक्षण से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों का उपयोग करते हुए परिचय दीजिये ।
    • इस केस में निहित नैतिक चिंताओं का वर्णन कीजिये।
    • इस स्थिति से संबंधित विभिन्न हितधारकों के साथ-साथ लागू होने वाले नैतिक मानकों पर विचार कीजिये।
    • ग्रामीणों के कृत्यों पर अपने पक्ष को न्यायोचित ठहराइये।
    • आगे आने वाली समस्या के समाधान के सर्वोत्तम तरीके के रुप में अपने विचार प्रस्तुत कीजिये।
    • हमारे संविधान का अनुच्छेद 48 (A) पर्यावरण की रक्षा और वन और वन्य जीवों की रक्षा के लिये सरकार पर कर्तव्य आरोपित करता है जबकि अनुच्छेद 51A नागरिकों पर समान दायित्व आरोपित करता है। इसलिये बाघों की रक्षा करना हमारा संवैधानिक कर्तव्य बन जाता है।
    • किसी को भी मारना चाहे वह इंसान हो या जानवर को किसी नैतिक आधार पर उचित नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि जीवन का अधिकार एक सार्वभौमिक अधिकार है।

    इस मामले में शामिल नैतिक दुविधाएँ:

    • विकास बनाम पर्यावरण नैतिकता: यह मामला विकास और पर्यावरण के संरक्षण के बीच संघर्ष को प्रस्तुत करता है। इसमें बायोस्फीयर रिज़र्व में सड़कों के चौड़ीकरण के कारण बाघों का आवास नष्ट हुआ है।
    • उत्तरजीविता बनाम जानवरों के प्रति करुणा: जानवरों के निवास स्थान के विनाश के कारण, बाघ ग्रामीण क्षेत्र में अतिक्रमण कर रहे हैं जो कि बाघों और ग्रामीणों के बीच बढ़ते संघर्ष का मूल कारण है जिसके परिणामस्वरूप दोनों ओर से अपनी रक्षा के लिये हत्याएँ हो रही हैं।

    हितधारक:

    • सरकार
    • वन विभाग
    • ग्रामीण
    • नागरिक समाज

    इसमें शामिल नैतिक मूल्य:

    • पर्यावरण नैतिकता
    • जानवरों के प्रति करुणा
    • चेतना

    A. किसी भी नैतिक आधार पर हत्याओं को उचित नहीं ठहराया जा सकता है। चूंकि भारत में मनुष्यों और वन्य जीवों के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का एक लंबा इतिहास रहा है, इसलिये इस प्रकार के संकट के कारणों को गहनता से देखना आवश्यक है।

    • बढ़ते मानव और वन्यजीव संघर्ष का मुख्य कारण बढ़ती आबादी के कारण जानवरों के आवास क्षेत्र का अतिक्रमण होना और जंगली प्रजातियों के बीच बीमारी की बढ़ती घटनाओं के कारण जानवरों के शिकार के लिये जंगली प्रजातियों की संख्या में कमी आना है।
    • अन्य सभी जंगली जानवरों की तरह बाघ भी हमेशा लोगों से बचने की प्रवृत्ति रखते हैं और यह केवल अपने बचाव में हमला करते हैं ।
    • मानव ने जानवरों के आवास क्षेत्र का अतिक्रमण किया है। इसलिये जानवरों के मारने को उचित नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि प्रकृति के नियमों में इन्हें भी जीवन का अधिकार प्रदान किया गया है।

    B. वन रेंज अधिकारी होने के नाते, वन्यजीवों की रक्षा करना मेरा संवैधानिक कर्तव्य है और जानवरों के प्रति दया रखना मेरा नैतिक दायित्व भी है इसलिए इस संकट को हल करने के लिए, मैं निम्नलिखित कार्रवाई को प्राथमिकता दूंगा।

    • इस स्थिति में दोनों तरफ से हत्याओं को रोकने और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये तत्काल आवश्यक कदम उठाने की आवश्यकता है। इसमें सबसे पहली बात तो यह है कि गाँवों की सीमाओं की घेराबंदी की जाए और बाघों को भोजन उपलब्ध कराया जाए ताकि वे मवेशियों पर हमला न करें या गाँवों में प्रवेश न करें।
    • दूसरी बात, बाघ को मारना वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत अपराध है, इसलिये हत्या के लिये ज़िम्मेदार लोगों को कानून के तहत सजा मिलनी चाहिये। इससे ग्रामीणों के बीच अन्य बाघों की हत्या न करने का कड़ा संदेश जाएगा।
    • तीसरी बात, ग्रामीणों को उनके नुकसान की भरपाई के लिये संवैधानिक सीमा के तहत सभी उपाय प्रदान करना आवश्यक है।
    • चौथी बात, निर्दोष ग्रामीणों पर बाघों के किसी भी हमले को रोकने के लिये पर्याप्त कर्मियों, उपकरणों और संचार प्रणाली से लैस वन्यजीव निगरानी बल को तैनात करना आवश्यक है।

    दीर्घकालिक उपाय:

    • उन क्षेत्रों से ग्रामीणों का पुनर्वास करना आवश्यक है जहाँ संघर्ष की आवृत्ति अधिक होती है।
    • दूसरा, संघर्ष को कम करने हेतु वन्यजीवों के गुजरने के लिये उपयुक्त कॉरिडोर बनाएँ जाएं ।
    • तीसरा, उचित सरकारी योजनाओं जैसे फसल बीमा या जीवन बीमा योजनाओं आदि के तहत पंजीकृत करके ग्रामीणों को किसी भी नुकसान से बचाना आवश्यक है।
    • चौथा, सतत् वन्यजीव प्रबंधन में ग्रामीणों को शामिल किया जाए जिससे इनके लिये वैकल्पिक आजीविका सुनिश्चित हो सके ।
    • हालाँकि संघर्ष को हल करने की कुंजी समुदायों के बीच उचित संवेदनशीलता में निहित है।

    इसलिये व्यवहारिक मनोविज्ञान के सिद्धांतों का उपयोग किया जाए जिससे ग्रामीण भावनात्मक रूप से खुद को बाघों के साथ जोड़ सकें क्योंकि इन्हें हिंदू पौराणिक कथाओं में दुर्गा देवी के वाहन के रूप में संदर्भित कर महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है । इससे बाघों को शत्रु प्रजाति के रुप में संदर्भित करने के बजाय पृथ्वी पर अपने सह-आवास के रूप में मानने के रुप में ग्रामीणों के दृष्टिकोण में परिवर्तन आ सकता है।

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