21 Jul 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | सामाजिक न्याय
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- गरीबी उन्मूलन हेतु सरकार के विभिन्न प्रयासों को समझाकर उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- गरीबी और इसके पीछे के कारण बताइये।
- चर्चा कीजिये कि उच्च गरीबी और निम्न जीवन स्तर अभी भी भारत में क्यों मौजूद हैं।
- आगे की राह बताते हुए अपने उत्तर को समाप्त कीजिये।
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विश्व बैंक के अनुसार, कल्याण में अभाव को गरीबी कहा जाता है और इसमें कई आयाम शामिल हैं। इसमें निम्न आय और गरिमा के साथ जीवित रहने के लिये आवश्यक बुनियादी वस्तुओं और सेवाओं को प्राप्त करने में असमर्थता शामिल है। भारत में 2011 में 21.9% आबादी राष्ट्रीय गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करती है।
गरीबी और निम्न जीवन स्तर के बने रहने का कारण केवल एक कारक पर आधारित नहीं है बल्कि इसके पीछे कई कारण हैं।
भारत सरकार ने एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम (IRDP), जवाहर रोज़गार योजना/जवाहर ग्राम समृद्धि योजना, राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना (NOAPS), महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) 2005 आदि जैसी भारत में गरीबी और भुखमरी उन्मूलन हेतु कई पहलें कार्यक्रम और नीतियाँ शुरू की हैं। लेकिन भारत में गरीबी अभी भी कायम है।
भारत में गरीबी के कारण
- जनसंख्या विस्फोट: भारत की जनसंख्या में वर्षों से लगातार वृद्धि हुई है। पिछले 45 वर्षों के दौरान जनसंख्या में 2.2% प्रति वर्ष की दर से वृद्धि हुई है, जिसका अर्थ है कि प्रत्येक वर्ष औसतन 1.7 मिलियन लोग देश की आबादी में जुड़ जाते हैं। इससे उपभोग की वस्तुओं की मांग में भी अत्यधिक वृद्धि हो जाती है।
- निम्न कृषि उत्पादकता: कृषि क्षेत्र में कम उत्पादकता गरीबी का एक प्रमुख कारण है। कृषि में कम उत्पादकता का कारण मुख्य रूप से यह खंडित और उप-विभाजित भूमि जोत, पूंजी की कमी, खेती में नई तकनीकों के बारे में निरक्षरता, खेती के पारंपरिक तरीकों का उपयोग, भंडारण के दौरान अपव्यय आदि है।
- अकुशल संसाधन उपयोग: देश में विशेष रूप से कृषि क्षेत्र में अल्प रोज़गार और प्रच्छन्न बेरोज़गारी है। इसके परिणामस्वरूप कृषि उत्पादकता में कमी तथा जीवन स्तर में गिरावट आई है।
- आर्थिक विकास की निम्न दर: भारत में आर्थिक विकास विशेष रूप से 1991 में एलपीजी सुधारों से पहले स्वतंत्रता के पहले 40 वर्षों में निम्न रहा है।
- बेरोज़गारी: बेरोज़गारी भारत में गरीबी का एक अन्य कारक है। लगातार बढ़ती आबादी के कारण नौकरी चाहने वालों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है। जबकि नौकरियों की इस मांग को पूरा करने के लिये अवसरों में पर्याप्त विस्तार नहीं हुआ है।
- पूंजी और उद्यमिता की कमी: पूंजी और उद्यमिता की कमी के परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था में निवेश और रोज़गार सृजन के स्तर में कमी आई है।
- सामाजिक कारक: आर्थिक कारकों के अलावा भारत में गरीबी के उन्मूलन में बाधा डालने वाले सामाजिक कारक जैसे वंशानुगत कानून, जाति व्यवस्था, कुछ परंपराएँ आदि भी हैं।
- औपनिवेशिक शोषण: ब्रिटिश उपनिवेशवाद और भारत पर लगभग दो शताब्दियों तक शासन ने अपने पारंपरिक हस्तशिल्प और कपड़ा उद्योगों को बर्बाद कर भारत को गैर-औद्योगिक बना दिया है। औपनिवेशिक नीतियों ने भारत को यूरोपीय उद्योगों के लिये केवल कच्चे माल के उत्पादक के रूप में बदल दिया था।
- जलवायु कारक: भारत के अधिकांश गरीब, बिहार, यूपी, एमपी, छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखंड आदि राज्यों से संबंधित हैं। प्राकृतिक आपदाएँ जैसे बार-बार बाढ़, भूकंप और चक्रवात इन राज्यों में कृषि को भारी नुकसान पहुँचाते हैं।
आगे की राह:
- तीव्र वृद्धि और विकास के बावजूद, हमारी आबादी का अस्वीकार्य रूप से उच्च अनुपात गंभीर और बहुआयामी अभाव से पीड़ित है। इस प्रकार भारत में गरीबी उन्मूलन के लिये अधिक व्यापक और समावेशी दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
- राजनीतिक आर्थिक संतुलन: भारतीय राजनीतिक, नीति और प्रशासनिक प्रणालियों को एक मध्यम आय वाले देश में संक्रमण की नई वास्तविकताओं के साथ समायोजित करना होगा, जिसमें गरीबी का मतलब भूखमरी नही बल्कि बढ़ती अर्थव्यवस्था द्वारा अवसरों का लाभ उठाने के लिये आय की कमी है।सरकारी खर्च का ध्यान सब्सिडी के बजाय सार्वजनिक वस्तुओं के प्रावधान पर होना चाहिये
- कृषि विकास और गरीबी उन्मूलन: कृषि विकास को एक महत्त्वपूर्ण कारक के रूप में मान्यता प्रदान की गई है जो गरीबी उन्मूलन में उल्लेखनीय योगदान देता है। कृषि विकास और गरीबी विपरीत रूप से संबंधित हैं, उच्च कृषि विकास निम्न गरीबी अनुपात को इंगित करता है। साठ के दशक के अंत और सत्तर के दशक में पंजाब और हरियाणा ने कृषि विकास और गरीबी के बीच इस विपरीत संबंध की पुष्टि की है।
- बुनियादी ढाँचे का त्वरित विकास: गरीबों के लिये रोज़गार के अवसर पैदा करने और उनकी उत्पादकता बढ़ाने का एक महत्त्वपूर्ण उपाय बुनियादी ढाँचे का त्वरित विकास है। चूँकि निजी क्षेत्र बुनियादी ढाँचे में पर्याप्त निवेश करने के लिये आकर्षित नहीं होता है, इसलिये इसके विकास के लिए सार्वजनिक निवेश को बढ़ाने की ज़रूरत है। बुनियादी ढाँचे के विकास में सड़कों, राजमार्गों, बंदरगाहों, दूरसंचार, बिजली और सिंचाई का निर्माण कार्य शामिल है जो अत्यधिक श्रम गहन है।