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20 Aug 2022
सामान्य अध्ययन पेपर 1
इतिहास
दिवस 41: द्वितीय विश्व युद्ध के प्रसार के लिये किस हद तक 'तुष्टिकरण' की नीति को दोषी ठहराया जा सकता है? (150 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण
- ब्रिटेन और फ्राँस की तुष्टीकरण की नीति का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
- इस नीति की तर्कसंगतता को समझाइये।
- तुष्टीकरण के कुछ उदाहरण दीजिये।
- द्वितीय विश्व युद्ध के प्रादुर्भाव में तुष्टीकरण की भूमिका का आकलन कीजिये।
1930 के दशक के दौरान आंग्ल-फ्राँसीसी विदेश नीति का संचालन तुष्टीकरण, संघर्ष से बचने के लिये तानाशाही शक्तियों को रियायतें देने की नीति के साथ हुआ। प्रथम विश्वयुद्ध से प्राप्त सीख ने ब्रिटेन और फ्राँस को एक और वैश्विक प्रसार के प्रति सशंकित कर दिया था और वे किसी भी तरह से युद्ध जैसी स्थिति से बचना चाहते थे।
फ्राँस और ब्रिटेन ने तुष्टीकरण का सहारा क्यों लिया?
- इसे युद्ध से बचने के लिये आवश्यक समझा गया था, जिसके पहले से कहीं अधिक विनाशकारी होने की संभावना थी।
- बहुत से विशेषज्ञों का मानना था कि जर्मनी और इटली की शिकायतें कुछ हद तक उचित थी। वर्साय संधि में इटली के साथ छल किया गया और जर्मनी के साथ बहुत कठोर व्यवहार किया गया था।
- चूँकि इस समय राष्ट्र संघ असहाय प्रतीत हो रहा था, ब्रिटेन और फ्राँस का मानना था कि विवादों को निपटाने का एकमात्र तरीका नेताओं के बीच व्यक्तिगत संपर्क था।
- इसके अलावा साम्यवादी रूस से विश्व के अन्य देशों में साम्यवाद के प्रसार का भय बढ़ता जा रहा था, उस समय बहुत से लोगों का मानना था कि साम्यवाद का खतरा हिटलर से उत्पन्न खतरे से बड़ा था।
तुष्टीकरण के उदाहरण:
- जर्मनी के शस्त्रीकरण की जाँच के लिये कोई कार्रवाई नहीं की गई थी।
- ऑस्ट्रिया और चेकोस्लोवाकिया पर जर्मनी के कब्जे को ब्रिटेन या फ्राँस से कोई प्रतिरोध नहीं मिला।
- एबिसिनिया (इथियोपिया) पर इतालवी आक्रमण के खिलाफ ब्रिटेन की कार्रवाई अपर्याप्त थी।
- मित्र राष्ट्र, राइनलैंड में जर्मनी के अभ्युदय को नियंत्रित करने में विफल रहे।
किस सीमा तक तुष्टीकरण ने द्वितीय विश्व युद्ध के प्रादुर्भाव को प्रेरित करने का कार्य किया:
- तुष्टीकरण की नीति ने हिटलर को विद्रोह के लिये खुली छूट प्रदान की।
- इसने जर्मनी, इटली और जापान को बर्लिन-रोम-टोक्यो धुरी के निर्माण के लिये एक-दूसरे से जुड़ने का अवसर व स्थिति प्रदान की। इस गठबंधन के उभरने से सत्ता संतुलन बिगड़ गया।
- आरंभिक सफलताओं और पश्चिमी शक्तियों से प्रतिरोध की अनुपस्थिति ने हिटलर को और आगे बढ़ने तथा बड़े जोखिम उठाने के लिये प्रेरित किया।
- भले ही युद्ध के लिये हिटलर के पास कोई निश्चित योजना नहीं थी, किंतु म्यूनिख में चेकोस्लोवाकिया के आत्मसमर्पण के बाद, उसे विश्वास हो गया कि ब्रिटेन और फ्राँस फिर से निष्क्रिय रहेंगे, इस तरह उसने पोलैंड के साथ युद्ध की जोखिम भरी बाजी खेलने का फैसला किया।
- तुष्टीकरण की नीति ने हिटलर को आश्वस्त किया कि पश्चिमी लोकतंत्रों की न तो वैश्विक शांति की इच्छा थी, न ही उनकी जर्मनी के सामने टिकने की क्षमता थी।
द्वितीय विश्व युद्ध की पूर्वावधि में ब्रिटेन और फ्राँस इस बात का सही आकलन नहीं कर पाए कि एडोल्फ हिटलर विजय पाने की लालसा में कितना दृढ़ है। नतीजतन ब्रिटिश प्रधानमंत्री नेविल चेम्बरलेन की तुष्टीकरण की नीति की विफलता का ही परिणाम था कि युद्ध अपरिहार्य हो गया।