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15 Jul 2022
सामान्य अध्ययन पेपर 1
इतिहास
दिवस 5: सरदार पटेल की तुलना अक्सर जर्मनी के बिस्मार्क से की जाती है। स्वतंत्रता के बाद के भारत में सरदार पटेल के कार्य के संदर्भ में इस कथन का विश्लेषण कीजिये (150 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- स्वतंत्रता के बाद के भारत में सरदार पटेल के योगदान को बताते हुए परिचय दीजिये
- समानताओं और विभिन्न अंतरों को बताते हुए बिस्मार्क के योगदान के साथ भारत को एकजुट करने में सरदार पटेल के योगदान की तुलना कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
1947 के भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम (माउंटबेटन योजना पर आधारित) ने भारतीय राज्यों पर ब्रिटिश क्राउन की सर्वोपरिता को समाप्त किया। इसने भारत की रियासतों के शासकों को नव-जन्मे देशों भारत या पाकिस्तान में शामिल होने या एक स्वतंत्र संप्रभु राज्य के रूप में बने रहने का विकल्प भी दिया। विभाजन के बाद, पटेल ने नौकरशाही का पुनर्गठन किया और रियासतों को एकीकृत किया। पटेल ने भारतीय संविधान के मसौदे में एक प्रमुख सदस्य बनकर राजनीतिक लोकतंत्र की नींव रखी। इस प्रकार, वह एक चतुर नेता और एक बुद्धिमान राजनेता के रूप में उभरे जिसे 'लौह पुरुष' और आधुनिक भारत के संस्थापक के रूप में स्वीकार किया गया।
सरदार पटेल की तुलना अक्सर जर्मनी के बिस्मार्क से क्यों की जाती है
ओटो वॉन बिस्मार्क ने 1871 में कई स्वतंत्र जर्मन राज्यों को एकीकृत किया। 1871 में अपने एकीकरण से पहले, जर्मनी एक राष्ट्र नहीं था; यह केवल लगभग 300 राज्यों का एक समूह था। प्रशा एकमात्र जर्मन राज्य था जो ऑस्ट्रियाई साम्राज्य की शक्ति और प्रभाव से मेल खा सकता था। जर्मन राज्यों के एकीकरण में ओटो वॉन बिस्मार्क ने एक प्रमुख भूमिका निभाई। बिस्मार्क की तरह, सरदार पटेल ने 562 रियासतों को भारत संघ के साथ एकीकृत किया और नव-स्वतंत्र देश के बाल्कनीकरण को रोका।
अपने देश को एकजुट करने में सदर पटेल और बिस्मार्क के बीच निम्नलिखित समानताएँ देखी जा सकती हैं:
दोनों ही महान नेता थे। दोनों ने अपने-अपने देशों, भारत और जर्मनी के एकीकरण के लिये काम किया। दोनों ने अपने-अपने देशों में विघटित राज्यों को समेकित किया। बिस्मार्क ने राजनीतिक रणनीति तथा "रक्त और लौह नीति" नामक एक प्रसिद्ध नीति का उपयोग किया। दूसरी ओर पटेल ने हैदराबाद के एकीकरण में बिस्मार्क की इस नीति का इस्तेमाल किया और जूनागढ़ को एकजुट करने के लिये जनमत संग्रह जैसे हथकंडे भी अपनाए।
सदर पटेल की नीति और बिस्मार्क नीति में अंतर
ओटो वॉन बिस्मार्क (1815-1898) एकीकृत जर्मनी के पहले चांसलर थे। उन्हें 'आयरन चांसलर' के रूप में जाना जाता है, उन्होंने एक मज़बूत और समृद्ध राष्ट्र बनाने के लिये छोटे बिखरे हुए जर्मन राज्यों को एकीकृत किया। बिस्मार्क ने कहा कि रक्त का बहाव ही इन राज्यों को एकजुट कर सकता है और इसलिये उन्होंने "लौह और रक्त " नामक प्रसिद्ध नीति को अपनाया। बिस्मार्क ने युद्ध में अपनी सभी रणनीतियों का इस्तेमाल किया जिसे वह जीतना चाहता था और एक एकीकृत जर्मनी बनाना चाहता था। लेकिन पटेल ने भारत की रियासतों को पहले कई प्रस्ताव प्रदान करने की अपनी रणनीति का इस्तेमाल किया ताकि वे खुद भारत के रूप में एकीकृत हो जाएँ लेकिन जब इसने काम नहीं किया, तो उन्होंने भी कुछ रियासतों के संदर्भ में युद्ध की नीति अपनाई। बिस्मार्क ने शांतिपूर्ण साधनों के बारे में अधिक नहीं सोचा था।
सरदार वल्लभभाई पटेल, पहले उप प्रधानमंत्री और स्वतंत्र भारत के पहले गृहमंत्री, बिस्मार्क से अलग थे क्योंकि बिस्मार्क के 36 राज्यों के मुकाबले, सरदार ने जर्मनी की तुलना में कम से कम दस गुना बड़े क्षेत्र में फैले 535 विविध रियासतों को एकीकृत किया, उन्हें कम से कम संभव समय सीमा के भीतर भारत के नवगठित संघ में आसानी से एकीकृत किया। आधुनिक भारत की जिस भौगोलिक इकाई और पहचान पर आज हमें गर्व है, वह काफी हद तक उनकी वजह से संभव हो पाई। उन्होंने अहिंसा के माध्यम से यानी शांतिपूर्ण तरीकों से भारत को एकीकृत किया।
इस प्रकार, हालाँकि सरदार पटेल और बिस्मार्क महान व्यक्तित्व थे, लेकिन पटेल का योगदान बिस्मार्क की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण था क्योंकि भारत अपने धर्म, भाषा, संस्कृति आदि के मामले में एक बहुत ही विविध कारण एक विविधताओं से भरा देश रहा है।