दिवस 4: संगम और वैदिक साहित्य की तुलना कीजिये। (150 शब्द)
14 Jul 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | संस्कृति
हल करने का दृष्टिकोण:
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भारतीय साहित्य में परंपराओं और मौखिक मिथकों को व्यापक रूप से प्रसारित किया गया था तथा बड़े पैमाने पर भारतीय साहित्य को संरक्षित किया गया था। साहित्य के माध्यम से, आम जनता भारत की समृद्ध संस्कृति और कला के बारे में जान सकती है। मध्य युग से लेकर 20वीं शताब्दी तक का साहित्य भारतीय साहित्य में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
संगम साहित्य:
यह लगभग तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य की अवधि है। दक्षिण भारत (कृष्णा एवं तुंगभद्रा नदी के दक्षिण में स्थित क्षेत्र) में लगभग तीन सौ ईसा पूर्व से तीन सौ ईस्वी के बीच की अवधि को संगम काल के नाम से जाना जाता है
इसका नाम उस अवधि के दौरान आयोजित संगम अकादमियों/सभाओं के नाम पर रखा गया है जो मदुरै के पांड्य राजाओं के शाही संरक्षण में फली-फूली।
संगम साहित्य में तोलकाप्पियम, एट्टुटोगई, पट्टुप्पट्टू, पथिनेंकिलकनक्कु ग्रंथ और शिलप्पादिकारम् और मणिमेखलै नामक दो महाकाव्य शामिल हैं।
संगम काल के बारे में विवरण देने वाले अन्य स्रोत हैं:
वैदिक साहित्य:
वैदिक ग्रंथ मूलत: मौखिक थे व संस्कृत भाषा में रचे गए। काफी समय तक श्रुति परंपरा में रहने के पश्चात् इन्हें कलमबद्ध किया गया है।वैदिक ग्रंथ के अधीन चार वेद, आठ ब्राह्मण, छह अरण्यक और तेरह प्रारंभिक उपनिषद आते हैं।
चारों वेदों में ऋग्वेद सबसे प्राचीन है तथा अथर्ववेद सबसे नवीन है। ऋग्वेद मंत्रों का संकलन है जिसे यज्ञों के अवसर पर देवताओं की स्तुति के लिये ऋषियों द्वारा संगृहीत किया गया था। ऋग्वेद के कुल मंत्रों की संख्या 10 हज़ार से अधिक है।
यजुर्वेद ऐसे मंत्रों का संग्रह है जिनसे पुरोहित द्वारा यज्ञ विधि को संपन्न कराया जाता था। कर्मकांड प्रधान यजुर्वेद को मंत्रों की प्रकृति के आधार पर दो वर्गों में विभाजित किया जाता है- शुक्ल यजुर्वेद तथा कृष्ण यजुर्वेद। कृष्ण यजुर्वेद में छंदबद्ध मंत्र तथा गद्यात्मक वाक्यों का संग्रह है, जबकि शुक्ल यजुर्वेद में केवल मंत्र ही हैं।
सामवेद, ऋग्वेद से लिये गए एक खास प्रकार के स्तुति पद्यों का संग्रह मात्र है जिसे लय में ढाल दिया गया है।
अंतिम वेद अथर्ववेद है जिसमें लौकिक फल देने वाले कर्मकांड तथा जादू-टोना-टोटका और इंद्र मायाजाल से संबंधित मंत्रों की उपस्थिति है। अथर्ववेद की रचना (छठी शताब्दी ईसा पूर्व) आर्य तथा आर्येत्तर तत्त्वों के सम्मिलन के दौरान हुई है।
ब्राह्मण ग्रंथ सुव्यवस्थित गद्य में लिखे गए हैं तथा ऐसे संस्करणों में लिखे गए हैं जो एक-दूसरे से काफी भिन्न हैं। प्रमुख ब्राह्मणों में शामिल हैं-ऐतरेय ब्राह्मण, पंचविश ब्राह्मण, शतपथ ब्राह्मण आदि। ब्राह्मण ग्रंथों के उत्तरकालीन विकास के प्रतीक हैं अरण्यक ग्रंथ। ये ग्रंथ विशुद्ध रूप से विद्यापरक हैं। इनकी रचना वन (जंगल) में हुई थी।
वैदिक साहित्य में अरण्यकों का मुख्य महत्त्व यह है कि यह उपनिषदों की ओर एक स्वाभाविक संक्रमण है। उपनिषद् की शिक्षा है वेदांत जो सारे तत्त्वज्ञान का सार है जो दैवीय अभिव्यक्ति द्वारा सर्वोच्च तथा सबसे अव्यक्त उपदेश या ज्ञान है। उपनिषद् ऐसा साहित्य है जिसमें प्राचीन मनीषियों ने यह महसूस किया था कि अंतिम विश्लेषण में मनुष्य को स्वयं को पहचानना होता है। उपनिषदों का केंद्रीभूत सिद्धांत है ब्रह्म तथा आत्मा एक है तथा ब्रह्म को छोड़कर बाकी सब मिला हुआ है।
ऋग्वेद एवं सामवेद एक समतामूलक समाज के मनोभावों को व्यक्त करते हैं वहीं यजुर्वेद एवं अथर्ववेद उत्तरवैदिक समाज में शुरू हुए विभाजन को दर्शाते हैं।