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  • 01 Sep 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृति

    दिवस 53: चट्टानों ने मानव इतिहास को संरक्षित किया है। विचार-विमर्श कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण :

    • रॉक कट वास्तुकला के बारे में संक्षिप्त परिचय लिखिये।
    • रॉक कट वास्तुकला के विभिन्न रूपों और इसके महत्त्व का वर्णन कीजिये।
    • निष्पक्ष निष्कर्ष लिखिये।

    रॉक-कट वास्तुकला (Rock-Cut Architecture) शैल चित्र का एक प्रकार है जिसमें ठोस प्राकृतिक चट्टान पर नक्काशी करके एक संरचना बनाई जाती है। गुफा मंदिर और मठ भारत के कई हिस्सों में पाए जाते हैं, लेकिन पश्चिमी दक्कन क्षेत्र में सबसे बड़ी और सबसे प्रसिद्ध कृत्रिम गुफाओं का निर्माण किया गया था। इन गुफाओं का निर्माण सातवाहन शासकों और उनके उत्तराधिकारियों के शासन के दौरान किया गया था।

    इस वास्तुकला के तीन निश्चित चरण थे:

    • सबसे पुराना काल-निर्धारण दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से दूसरी शताब्दी ईस्वी तक का है।
    • दूसरा 5वीं से 7वीं शताब्दी तक।
    • अंतिम चरण 7वीं से 10वीं शताब्दी तक।

    महत्त्व:

    • रॉक-कट वास्तुकला, भारतीय वास्तुकला के इतिहास में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है क्योंकि यह प्राचीन भारतीय कला का सबसे शानदार नमूना पेश करती है।
    • अधिकांश रॉक-कट संरचनाएँ विभिन्न धर्मों और धार्मिक गतिविधियों के साथ निकटता से जुड़ी हुई थीं।
    • प्रार्थना और निवास उद्देश्यों के लिये बौद्ध भिक्षुओं द्वारा कई गुफाओं का निर्माण किया गया था।

    गुफाओं की डिज़ाइन योजना और उनके कार्य:

    • चट्टान को एक पहाड़ से बाहर निकाला गया था और नकारात्मक स्थान का उपयोग दो प्रकार के क्षेत्रों को बनाने के लिये किया गया था।
    • इनमें से एक था चैत्य गृह, जिसका अर्थ चैत्य से है स्तूप और गृह के लिये घर । चैत्य गृह मण्डली का स्थान था।
    • बीच में एक खुला आंगन और उसके चारों ओर कमरे थे। यह घर की एक विशिष्ट भारतीय योजना है, जो आपको हड़प्पा काल से प्राप्त होती है।
    • बौद्ध धर्म 600 ईसा पूर्व में शुरू हुआ था लेकिन हमें सबसे पुरानी बौद्ध गुफाएँ ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी की हैं।

    रॉक-कट गुफाएँ:

    • मौर्य काल: भारत में सबसे प्रारंभिक रॉक-कट गुफाओं के निर्माण का श्रेय मौर्य काल को जाता है, मुख्य रूप से अशोक (273-232 ईसा पूर्व) और उनके पौत्र दशरथ को।
      • इस अवधि में गुफाओं का उपयोग आमतौर पर जैन और बौद्ध भिक्षुओं द्वारा विहार के रूप में किया जाता था।
        • गुफाओं का उपयोग पहले आजीवक संप्रदाय और बाद में बौद्धों द्वारा मठों के रूप में किया गया था।
    • बिहार में बराबर और नागार्जुनी गुफाएँ (Barabar caves and Nagarjuni caves) अशोक के पौत्र दशरथ के समय में बनाई गई थीं।
    • मौर्योत्तर काल : मौर्योत्तर काल में शैल गुफाओं का निर्माण जारी रहा। हालाँकि इस अवधि में विहार और चैत्य कक्ष का विकास देखा गया।
      • चैत्य कक्ष मुख्य रूप से समतल छतों वाले चतुष्कोणीय कक्ष थे और प्रार्थना कक्ष के रूप में उपयोग किये जाते थे।
      • गुफाओं में बारिश से बचने के लिये आँगन और पत्थरों के आवरण वाली दीवारें भी थीं और इन्हें मानव तथा जानवरों की आकृतियों से सजाया गया था।
        • उदाहरण : कार्ले का चैत्य हॉल, अजंता की गुफाएँ (29 गुफाएँ- 25 विहार + 4 चैत्य) आदि।
    • गुप्त काल: चौथी शताब्दी में हुए गुप्त साम्राज्य के उद्भव को अक्सर "भारतीय वास्तुकला का स्वर्णिम युग" कहा जाता है।
      • गुप्त काल के दौरान गुफाओं का स्थापत्य विकास निरंतर बना रहा।
        • हालाँकि गुफाओं की दीवारों पर भित्ति चित्रों का उपयोग इस काल की एक अतिरिक्त विशेषता के रूप में सामने आई।
    • गुप्त काल की महत्त्वपूर्ण गुफाएँ:
      • उदयगिरी की गुफाएँ: यह मध्य प्रदेश में विदिशा के पास स्थित हैं। यहाँ से प्राप्त लेखों के अनुसार, इन गुफाओं का निर्माण चंद्रगुप्त द्वितीय और कुमार गुप्त प्रथम के समय में हुआ था। यहाँ कुल 20 गुफाएँ हैं।
        • प्रायः प्रत्येक गुफा में वैदिक और पौराणिक देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित हैं।
        • गुफा संख्या 5 में भगवान विष्णु के वाराह अवतार की मूर्ति है जिसे गुप्त कला का एक सर्वाधिक उपयुक्त उदाहरण माना जाता है।
        • वाराह अवतार की कहानी भगवान विष्णु द्वारा देवी पृथ्वी को हिरण्याक्ष राक्षस से बचाने से संबंधित है। इन गुफा मंदिरों को भारत में धार्मिक वास्तुकला का सबसे अच्छा और प्रारंभिक उदाहरण माना जाता है।
    • अजंता की गुफाएँ: अजंता महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद ज़िले में वाघोरा नदी के पास सह्याद्रि पर्वतमाला में शैल चित्र गुफाओं की एक शृंखला है।
      • इन गुफाओं का निर्माण चौथी शताब्दी में ज्वालामुखी चट्टानों को काटकर किया गया था।
      • इसमें 29 गुफाओं का एक समूह है, जो घोड़े की नाल के आकार में उकेरी गई हैं।
        • इनमें से 25 को विहारों या आवासीय गुफाओं के रूप में तथा 4 को चैत्य या प्रार्थना स्थलों के रूप में प्रयोग किया जाता था।
    • एलोरा की गुफाएँ: एलोरा गुफाएँ गुफा-वास्तुकला का एक और महत्त्वपूर्ण स्थल है।
      • यह स्थल अजंता की गुफाओं से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
      • यह 34 गुफाओं का एक समूह है, जिसमें से 17 ब्राह्मणी शैली, 12 बौद्ध शैली और 5 जैन शैली की गुफाएँ हैं।
      • इन गुफाओं का निर्माण 5वीं से 11वीं शताब्दी के बीच किया गया था।
    • बाघ की गुफाएँ: यह विंध्य शृंखला में नर्मदा की सहायक बाघ नदी के तट पर स्थित है।
      • बाघ एक गाँव है, जो बाघ नदी के तट पर मांडू (मध्य प्रदेश) से लगभग 30 किमी. पश्चिम में है।
      • ये गुफाएँ लगभग छठी शताब्दी में विकसित की गई 9 बौद्ध गुफाओं का एक समूह है।
        • यह वास्तुशास्त्रीय रूप से अजंता की गुफाओं के समान ही है।
        • यहाँ उल्लेखनीय और रोचक शैल चित्र मंदिर तथा मठ हैं।
    • आधुनिक समय में इन गुफाओं को पहली बार वर्ष 1818 में खोजा गया था।
    • रॉक-कट मंदिर वास्तुकला:
      • वर्गाकार गर्भगृह और खंभों से युक्त द्वारमंडप के विकास के साथ गुप्त काल में मंदिरों की वास्तुकला का आविर्भाव हुआ। प्रारंभिक चरणों में मंदिर सपाट छत वाले, एक ही पत्थर को काट कर बनाए गए होते थे।
        • पल्लव राजवंश के वास्तुकारों ने मंदिरों के समान अखंड संरचनाएँ बनाने के लिये शैल नक्काशी की शुरुआत की।
    • दक्षिण भारत में रॉक-कट मंदिर वास्तुकला:
      • दक्षिण भारत में मंदिर वास्तुकला पल्लव शासक महेंद्रवर्मन के अधीन शुरू हुई थी।
      • पल्लव वंश के दौरान विकसित मंदिरों में व्यक्तिगत शासकों के शैलीगत रुचि को प्रतिबिंबित किया और उन्हें चार चरणों में कालानुक्रमिक रूप से वर्गीकृत किया जा सकता है।
    • महेंद्र समूह:
      • यह पल्लव मंदिर वास्तुकला का पहला चरण था।
      • महेंद्रवर्मन के शासन में बनाए गए मंदिर मूल रूप से रॉक-कट मंदिर थे।
      • उसके अधीन निर्मित मंदिरों को मंडप के रूप में जाना जाता था जबकि नागर शैली में मंडप का अर्थ केवल सभा-हॉल होता था।
    • नरसिंह समूह:
      • इसे दक्षिण भारत में मंदिर वास्तुकला के विकास का दूसरा चरण कहा जाता है।
      • रॉक-कट मंदिरों को जटिल मूर्तियों द्वारा सजाया गया था।
      • मंडप को अलग-अलग रथों में विभाजित क्या गया।
      • सबसे बड़े रथ को धर्मराज रथ कहा जाता था, जबकि सबसे छोटे रथ को द्रौपदी रथ कहा जाता था।
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